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दिल्ली के झंडेवालान देवी मंदिर में सावन की धूम, पांच बार किया जा रहा रुद्राभिषेक

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Published : Jul 24, 2023, 5:49 PM IST

jhandewalan temple performing rudrabhishek
jhandewalan temple performing rudrabhishek

दिल्ली में इन दिनों शिवालयों में श्रद्धालुओं का भारी भीड़ देखी जा रही है. वहीं, झंडेवालान देवी मंदिर में सावन पर प्रत्येक सोमवार पांच बार रुद्राभिषेक किया जा रहा है. इस बारे में मंदिर के मीडिया प्रभारी ने कई बातें बताईं. आइए जानते हैं उन्होंने क्या कहा..

झंडेवालान देवी मंदिर में भक्तों की भीड़

नई दिल्ली: सावन का तीसरा और अधिक मास के पहले सोमवार के मौके पर दिल्ली के झंडेवालान देवी मंदिर में भगवान शंकर का रुद्राभिषेक विधि-विधान से किया गया. इन दिनों गुफा वाले शिवालय में दिन में पांच बार अभिषेक किया जा रहा है. आज दिन भर मंदिर के ऊपर वाले नए शिवालय में भक्तों द्वारा पूजन-अर्चन किया जाएगा.

पांच बार किया जा रहा रुद्राभिषेक: झंडेवालान मंदिर के मीडिया प्रभारी नंद किशोर सेठी ने 'ईटीवी भारत' को बताया कि सावन के सभी सोमवार को भगवान भोलेनाथ का दिन में पांच बार श्रृंगार व रुद्राभिषेक किया जाता है. इसका समय इस प्रकार है- 1- प्रात: 6:30 बजे, 2- प्रात: 10:00 बजे, 3- दोपहर 2:00 बजे, सायं 4:30 बजे और रात्रि 8:00 बजे. उन्होंने बताया कि गुफा वाले शिवालय में रुद्राभिषेक करने वाले भक्तों को एडवांस बुकिंग करनी होती है, जो दो महीने पहले से शुरू हो जाती है.

कोरोना में किया गया था डिजिटल प्रसारण: बुकिंग करवाने के लिए मंदिर में विशेष व्यवस्था की गई है. सावन में किए जाने वाले अभिषेक के लिए भक्तों को पूजा विधि में इस्तेमाल होने वाली सामग्री की एक लिस्ट दी जाती है. लिस्ट में पुजारी को दी जाने वाली दक्षिणा भी लिखी होती है. इसके अलावा भक्तों से किसी भी तरह का अन्य शुल्क नहीं लिया जाता है. कोरोना महामारी के दौरान भगवान शिव के श्रृंगार व रुद्राभिषेक का सीधा प्रसारण मंदिर के यूट्यूब व फेसबुक पेज के साथ, वेबसाइट एवं झंडेवालान मंदिर एप्लीकेशन के माध्यम से किया गया था.

उन्होंने बताया कि अधिकमास के पहले सोमवार पर रुद्राभिषेक करना बहुत शुभ माना जाता है. झंडेवालान देवी मंदिर का इतिहास करीब 100 साल पुराना है और यहां आज भी दूर-दूर से श्रद्धालु शीश नवाने आते हैं. दिल्ली के पहाड़गंज में स्थित इस मंदिर में हमेशा भक्तों का तांता लगा रहता है, जिसमें विशेष अवसरों पर वृद्धि हो जाती है. मंदिर के कपाट सुबह 5 खुल जाते हैं.

मंदिर का इतिहास: इसके इतिहास की बात करें तो 100 साल से पहले दिल्ली के एक व्यापारी बद्री भगत को माता ने सपने में दर्शन दिए थे और कहा था कि इस बंजर जमीन में तुम्हें मेरी मूर्ति मिलेगी. जिस जगह मेरी मूर्ति होगी वहां एक झंडा होगा. इसके बाद जब बद्री भगत ने जब मूर्ति ढूंढी तो इसी जगह उन्हें झंडे के नीचे माता की मूर्ति मिली. तब उन्होंने मूर्ति की स्थापना की और इस मंदिर का नाम झंडेवालान मंदिर पड़ गया.

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मंदिर परिसर में माता झंडेवाली के अलावा स्वयंभू शिवलिंग, भगवान हनुमान, भगवान गणेश व माता सरस्वती की प्रतिमा है. बताया जाता है कि जब बदरी भगत को माता की मूर्ति मिली थी तब वह खंडित थी. इसके बाद माता ने फिर उनके सपने में आकर प्रतिमा में चांदी का हाथ लगाकर स्थापित करने को कहा, जिस पर उन्होंने ठीक वैसा ही कर मूर्ती की स्थापना कराई.

बता दें, आमतौर पर खंडित मूर्ति की स्थापना नहीं की जाती, लेकिन पूरे भारत में झंडेवालान मंदिर एक मात्र ऐसा मंदिर है जहां खंडित मूर्ति की पूजा होती है. नंद किशोर सेठी ने बताया कि यह मंदिर एक पहाड़ी चट्टान पर बनी है. जब माता की मूर्ति निकाली गई थी, उसी दौरान गुफा वाले शिवलिंग को भी स्थापित किया गया था.

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