ETV Bharat / state

किंग मेकर से पहले और बाद में भी एक शिक्षक थे चाणक्य: प्रो. योगेश सिंह

author img

By

Published : Dec 2, 2022, 12:34 PM IST

Etv Bharat
Etv Bharat

दिल्ली विश्वविद्यालय शताब्दी वर्ष समारोह की कड़ी में ‘चाणक्य' का मंचन “धर्माजम” टीम द्वारा मनोज जोशी के निर्देशन में दिल्ली विश्वविद्यालय सांस्कृतिक परिषद द्वारा करवाया गया. इस दौरान दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रो. योगेश सिंह नाटक के मंचन में मुख्य अतिथि के रूप में मौजूद रहे.

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि चाणक्य को एक किंग मेकर और विचारक के रूप में जाना जाता है, लेकिन इस सबसे पहले और बाद में भी वह एक शिक्षक थे. प्रो. योगेश सिंह दिल्ली विश्वविद्यालय में ‘चाणक्य' नाटक के मंचन से पूर्व मुख्य अतिथि के रूप में बोल रहे थे. गौरतलब है कि दिल्ली विश्वविद्यालय शताब्दी वर्ष (Delhi University Centenary Year Celebrations) समारोह की कड़ी में ‘चाणक्य' का मंचन “धर्माजम” टीम द्वारा मनोज जोशी के निर्देशन में दिल्ली विश्वविद्यालय सांस्कृतिक परिषद द्वारा करवाया गया था.

इस अवसर पर कुलपति ने चाणक्य के शिक्षा में महत्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि शिक्षक का कार्य नई पीढ़ी के निर्माण का होता है. यह नाटक इसी के मूल को बताता है. उन्होने चाणक्य के संवादों से उदाहरण देते हुए कहा कि शिक्षक कभी साधारण नहीं होता, सृजन एवं प्रलय उसकी गोद में पलते हैं. कुलपति ने ‘चाणक्य’ नाटक के बारे में चर्चा करते हुए कहा कि चाणक्य की प्रासंगिकता जितनी पहले थी, आज उससे भी अधिक है. इसीलिए विश्वविद्यालयों में भी चाणक्य की आवश्यकता जितनी पहले थी, उससे बहुत ज्यादा आज है. उन्होने कहा कि एक शिक्षक को कैसा होना चाहिए? उसकी प्राथमिकताएँ क्या होनी चाहियें? राष्ट्र प्रेम और राष्ट्र की चिंता के भाव का निर्माण कैसे करना चाहिए? ये प्रश्न प्राध्यापकों के मनों में आने ही चाहियें.

प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि नई पीढ़ी के निर्माण का दायित्व हमारे ऊपर है और इन्हीं बातों को सोचने के लिए ‘चाणक्य’ नाटक मजबूर करता है. उन्होने चाणक्य के शब्दों के माध्यम से कहा कि शिक्षा सबसे अच्छी मित्र है. शिक्षित व्यक्ति हर जगह सम्मान पाता है. कुलपति ने कहा कि चाणक्य को समझना और उसे विश्वविद्यालयों में जिंदा करना आवश्यक है. ये जिम्मेवारी शिक्षकों की है. उन्होने नाटक के निर्देशक मनोज जोशी को दिल्ली विश्वविद्यालय में इस नाटक के 1780वें शो की बधाई भी दी.


करीब 2400 वर्ष पहले सिकंदर (अलेक्जेंडर) को रोकने और भारतीय संस्कृति को बचाने के साथ-साथ खंड-खंड हो चुके भारत को अखंड, सचेत, बलशाली और वैभवशाली राष्ट्र बनाने के लिए चाणक्य ने बहुत कार्य किए थे. प्रख्यात रंगकर्मी पद्मश्री मनोज जोशी ने नाटक के मंचन के दौरान तथ्यों को बहुत ही रोचक ढंग से प्रस्तुत किया. मनोज जोशी ने चाणक्य की भूमिका में राज्य के साथ सत्य के संबंधों की व्याख्या अपने संवादों से कुछ इस प्रकार की, “सत्य राज्य द्रोही नहीं होता महामात्य; किन्तु जो राज्य सत्ता से विपरीत होता है, वो राज्य सत्य द्रोही है”. अखंड भारत के गठन में चाणक्य विष्णुगुप्त की सोच को उनके इस संवाद में स्पष्ट देखा जा सकता है, “ब्राह्मणों का अधिकार होता है दान मांगने का मंत्री श्रेष्ठ, दान देने का नहीं; किन्तु मैं विष्णुगुप्त चाणक्य उस नियम को यहाँ पर भंग कर रहा हूँ.. हाँ चन्द्रगुप्त! यदि तुम में पात्रता है तो मैं आर्य विष्णुगुप्त चाणक्य तुम्हें केवल मगध नहीं, ये सम्पूर्ण भारत वर्ष का चक्रवर्ती पद देने के लिए तत्पर हूँ”. नाटक के दौरान चंद्रगुप्त और चाणक्य संवाद ने तो महाभारत में कृष्ण-अर्जुन संवाद का सा दृश्य प्रस्तुत कर दिया. मनोज जोशी ने चाणक्य के पात्र में अनेकों बार अपने संवादों के व्यंग्य बाणों से इस गंभीर नाटक के दौरान भी दर्शकों के लिए हास्य के अवसर पैदा किये. विषय की रोचकता और कलाकारों के सराहनीय अभिनय के चलते नाटक ने दर्शकों को करीब ढाई घंटे तक बांधे रखा.

ये भी पढ़ें: Exclusive Interview: बीजेपी ने दिल्ली को कूड़ा-कूड़ा कर दिया है, एमसीडी में मारेंगे डबल सेंचुरी- आतिशी

नाटक के मंचन से पूर्व ‘चाणक्य’ ने निर्देशक मनोज जोशी ने कहा कि चाणक्य केवल एक पात्र नहीं, अपितु एक विचारधारा और एक आंदोलन है. उन्होने कहा कि हमारा दुर्भाग्य यह रहा कि इतने सारे वर्षों में चाणक्य को पढ़ाया नहीं गया. दिल्ली विश्वविद्यालय से जुड़े अनेकों शिक्षक एवं गैर शिक्षक अधिकारियों, कर्मचारियों और विद्यार्थियों सहित करीब 5 हजार लोग इस दौरान मौजूद रहे.

ऐसी ही जरूरी और विश्वसनीय खबरों के लिए डाउनलोड करें ईटीवी भारत ऐप

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.