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आप के नॉलेज शेयरिंग एग्रीमेंट ने बढ़ाया दिल्ली का सियासी पारा

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Published : Apr 27, 2022, 2:33 PM IST

दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पंजाब के सीएम सरदार भगवंत मान के बीच हुए नॉलेज शेयरिंग एग्रीमेंट ने सियासी पारे को बढ़ा दिया है. दिल्ली और पंजाब दोनों ही राज्यों में लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी का मानना है कि यह पंजाब और दिल्ली की सरकारों के बीच नॉलेज शेयरिंग एग्रीमेंट पंजाब सरकार को केजरीवाल द्वारा रिमोट कंट्रोल से असंवैधानिक रूप से चलाने तरीका है.

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नई दिल्ली: दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और पंजाब के सीएम सरदार भगवंत मान के बीच हुए नॉलेज शेयरिंग एग्रीमेंट ने सियासी पारे को बढ़ा दिया है. भारत के इतिहास में संभवत: पहली बार दो सरकारों ने नॉलेज शेयरिंग एग्रीमेंट किया है. दोनों ही राज्यों के बीच हुए इस समझौते से क्या वाकई आमलोगों को लाभ मिलेगा यह बड़ा सवाल बन गया है. अरविंद केजरीवाल और भगवंत मान सरकार की मानें तो इस समझौते से दिल्ली और पंजाब के लोगों की तरक्क़ी के लिए एक-दूसरे के अच्छे काम सीखेंगे. एक-दूसरे के अच्छे कामों को सींखेंगे और सिखाएंगे. ऐसे ही दिल्ली और पंजाब आगे बढ़ेगा, ऐसे ही देश आगे बढ़ेगा. हम सब मिलकर बाबा साहब और सरदार भगत सिंह के सपनों को साकार करेंगे.

वहीं, दिल्ली और पंजाब दोनों ही राज्यों में लंबे समय तक राज करने वाली कांग्रेस पार्टी का मानना है कि यह पंजाब और दिल्ली की सरकारों के बीच 'नॉलेज शेयरिंग एग्रीमेंट' पंजाब सरकार को केजरीवाल द्वारा रिमोट कंट्रोल से असंवैधानिक रूप से चलाने तरीका है. दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष चौधरी अनिल कुमार के अनुसार अरविन्द केजरीवाल ने दिल्ली से पंजाब चलाने के लिए नॉलेज शेयरिंग एग्रीमेंट पर पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान के साथ हस्ताक्षर किए हैं, जो एक असंवैधानिक एग्रीमेंट है. इससे पहले केजरीवाल द्वारा पंजाब के अधिकारियों को बुलाकर मीटिंग लेने का विरोध हुआ था. इसलिए पंजाब सरकार चलाने की औपचारिकताओं को पूरा करने के लिए एग्रीमेंट किया है. उन्होंने कहा कि केजरीवाल दिल्लीवालों के प्रति अपनी जिम्मेदारियों को नजरअंदाज करके पंजाब सरकार दिल्ली से चला रहे हैं. अनिल कुमार ने कहा कि दिल्ली और पंजाब की सरकारों के नॉलेज शेयरिंग एग्रीमेंट द्वारा अधिकारियों, मंत्रियों और अन्य कर्मियों को सार्वजनिक कल्याण और ज्ञान, अनुभव और कौशल को सीखने के लिए जानकारी व नॉलेज साझा की जाएगी. यह एग्रीमेंट दो राज्यों के संवैधानिक अधिकारों के अनुसार कानूनी रूप से लागू करने योग्य नहीं है.

आप के नॉलेज शेयरिंग एग्रीमेंट ने बढ़ाया दिल्ली का सियासी पारा

कांग्रेस मानती है कि शिक्षा का विकास करने के नाम पर केजरीवाल और भाजपा दोनों शिक्षा के महत्व को ही खत्म करने का काम कर रहे हैं. भाजपा की मोदी सरकार आए दिन शिक्षा पाठ्यक्रमों से इतिहास और संस्कृति से जुड़े अध्यायों को हटाकर शिक्षा व्यवस्था को कमजोर करके दूसरी धुरी की ओर ले जा रही है, जिस पर केजरीवाल पूरी तरह चुप्पी साधे हुए हैं, जबकि वे शिक्षा स्तर को बेहतर बनाने का राग अलापते हैं. प्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष का कहना है कि केजरीवाल का यह कहना कि हमारा लक्ष्य एक दूसरे से सीखकर आगे बढ़ना है पूरी तरह से गलत है, क्योंकि दिल्ली के सरकारी विद्यालयों की जो तस्वीर दिखाई जा रही है उसकी वास्तविकता कुछ और ही है. केजरीवाल की झूठ की राजनीति का अनुसरण पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान भी कर रहे हैं, उन्होंने भी जनता से जुड़े शिक्षा, स्वास्थ्य, बिजली को प्राथमिकता से रखने की बात कर रहे हैं जबकि पंजाब में पिछली कांग्रेस सरकार के समय से ही शिक्षा, स्वास्थ्य व बिजली व्यवस्थाऐं दुरस्त हैं. भगवंत मान उन्हें सिर्फ केजरीवाल का चोला पहनाने की कोशिश कर रहे हैं.

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उधर दिल्ली बीजेपी अध्यक्ष आदेश गुप्ता का कहना है कि पंजाब के मुख्यमंत्री भगवंत मान दिल्ली के शिक्षा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था के मॉडल को देखने आए हैं. वो अलग बात है कि पिछले आठ सालों से वह पंजाब से सांसद रहते हुए एक बार भी दिल्ली के स्कूलों एवं स्वास्थ्य व्यवस्था मॉडल देखने नहीं गए. अगर दिल्ली का शिक्षा एवं स्वास्थ्य व्यवस्था इतनी ही अच्छा है तो भगवंत मान सात साल पहले ही एक सांसद के रूप में भी इन सभी व्यवस्थाओं को अपने संसदीय क्षेत्र में लागू कर सकते थे. यह महज इत्तेफाक नहीं है कि भगवंत मान को एक सांसद के रूप में दिल्ली मॉडल पसंद नहीं आया और मुख्यमंत्री बनते ही वह इस तथाकथित मॉडल के मुरीद हो गए.

उन्होंने कहा कि केजरीवाल सरकार शिक्षा व्यवस्था के बजट का आधा पैसा भी शिक्षा पर खर्च नहीं कर पाती है. 2015-16 के अंदर शिक्षा व्यवस्था के लिए आवंटित 3350 करोड़ रुपये में सिर्फ 1964 करोड़ रुपये खर्च हो पाया. इसी प्रकार 2016-17 में 3499.50 करोड़ रुपये में से सिर्फ 2666.48 करोड़ रुपये, 2017-18 में 2204 करोड़ रुपये में से खर्च सिर्फ 2200 करोड़, 2018-19 में 4789 करोड़ रुपये में से सिर्फ 1874 करोड़ रुपये, 2019-20 में 4591 करोड़ रुपये में से सिर्फ 2836 करोड़ रुपये 2020-21 3626 करोड़ रुपये में से 1760 करोड़ रुपये ही खर्च हो पाया. इसी हकीकत को फसाना बनाकर भगवंत मान के सहारे पूरे देश और दिल्ली के सामने झूठ परोसने का काम अरविंद केजरीवाल कर रहे हैं, जो सच्चाई से कोसों दूर है.

दिल्ली बीजेपी ने केजरीवाल सरकार पर आरोप लगाया कि यह सरकार अपनी वाहवाही लूटने के लिए बच्चों के भविष्य के साथ खिलवाड़ करने से भी परहेज नहीं किया. सबको दसवीं का रिजल्ट बेहतर दिखाने के लिए साल 2015-16 में दिल्ली सरकार ने वर्ग 9वीं के 13 लाख 2 हजार 741 बच्चे को फेल कर दिए. इसी प्रकार 2106-17 में 116732 छात्र, 2017-18 में 11 लाख 7 हजार 271 बच्चों को, 2018-19 में 11 लाख 2 हजार 937 बच्चों को 2019-20 में 99 हजार 205 बच्चों को 9वीं कक्षा में फेल किया गया. उन्होंने कहा कि अगर इसी व्यवस्था को भगवंत मान देखने आए हैं और इसे पंजाब में लागू करना चाहते हैं तो आप सोच सकते हैं कि वहां के बच्चों का भविष्य कैसा होगा?

बता दें कि नॉलेज शेयरिंग एग्रीमेंट से पहले दिल्ली सरकार के शिक्षा और स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों ने पंजाब के सीएम भगवंत मान और उनकी टीम को प्रजेंटेशन के माध्यम से स्कूलों और अस्पतालों में हुए क्रांतिकारी बदलाव के बारे में विस्तार से बताया. इस दौरान सीएम अरविंद केजरीवाल ने पंजाब के सीएम सरदार भगवंत मान और उनकी टीम को बताया कि पिछले साल दिल्ली सरकार के स्कूलों के 12वीं के नतीजे 99.7 फीसद आए थे. जब हम बताते हैं कि दिल्ली के सरकारी स्कूलों के नतीजे 99.7 फीसद आए हैं, तो लोगों को लगता है कि दिल्ली के सरकारी स्कूल अच्छे हो गए हैं. हमारा दूसरा ध्यान अकादमिक और सह-पाठ्यचर्या पाठ्यक्रम की सामग्री पर है. छात्रों को क्या पढ़ाया जा रहा है? देशभक्ति, हैप्पीनेस करिकुलम और ईएमसी जैसे विभिन्न अनूठे पाठ्यक्रमों के माध्यम से हम छात्रों में समग्र विकास के लिए महान मूल्यों को विकसित कर रहे हैं. पंजाब में 19 हजार से ज्यादा सरकारी स्कूल हैं और 23 लाख के आसपास बच्चे पढ़ते हैं. दिल्ली में 18 लाख बच्चे हैं और 1000 से 1100 सरकारी स्कूल हैं.

दिल्ली और पंजाब सरकार के बीच यह हुआ नॉलेज शेयरिंग एग्रीमेंट

दिल्ली सरकार (जीएनसीटीडी) और पंजाब सरकार (जीओपी) इस नॉलेज शेयरिंग एग्रीमेंट (बाद में केएसए के रूप में संदर्भित) में प्रवेश करती है, ताकि वे जन कल्याण के लिए सहयोग कर सकें. यह केएसए दोनों सरकारों को अपने प्रदेश की जनता के हित में काम करने के लिए नॉलेज, अनुभव और कौशल साझा करता है. केएसए दो सरकारों के अधिकारियों, मंत्रियों और अन्य कर्मियों को सोशल वेलफेयर के लिए अपने नॉलेज, अनुभव और कौशल को सीखने और साझा करने में सक्षम बनाता है.

दिल्ली शिक्षा मॉडल क्या है?

दिल्ली सरकार द्वारा संचालित 1068 स्कूलों में दिल्ली के करीब 18 लाख बच्चे पढ़ते हैं. दिल्ली सरकार द्वारा दो तरह के स्कूल चलाए जाते हैं - यूनिवर्सल और स्पेशलाइज्ड. यूनिवर्सल स्कूल दिल्ली के सभी बच्चे के लिए खुले हैं, जबकि विशेष स्पेशलाइज्ड एक्सैलेन्स स्कूल कक्षा 9-12 के लिए है और यहां प्रवेश एक योग्यता परीक्षा के माध्यम से होता है. डॉ. बी आर अम्बेडकर स्कूल ऑफ स्पेशलाइज्ड एक्सीलेंस दिल्ली सरकार द्वारा शिक्षा के क्षेत्र में निरंतर किए जा रहे सुधारों का एक नमूना है. एसटीईएम, ह्यूमिनिटी, हाई एंड 21वीं सदी के कौशल, प्रदर्शन और दृश्य कला और सशस्त्र बल तैयारी स्कूल के क्षेत्र में 31 विशेष स्कूल हैं. स्पेशलाइज्ड स्कूल दिल्ली बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन से जुड़ा हैं, जो इंटरनेशनल बैकलॉरिएट के साथ साझेदारी में काम कर रहे हैं.

दिल्ली सरकार द्वारा राज्य के कुल बजट का लगभग 25 फीसद हिस्सा हर साल शिक्षा पर खर्च किया जा रहा है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल का कुशल नेतृत्व और उप मुख्यमंत्री द्वारा संचालित शिक्षा के प्रति मजबूत राजनीतिक प्रतिबद्धता, दिल्ली के शिक्षा मॉडल की सफलता का कारण है. सरकारी प्रणाली के भीतर और बाहर के शिक्षकों के साथ एक मजबूत टीम शिक्षाशास्त्र को बेहतर बनाने में मदद करती है. स्कूल स्तर तक सत्ता का विकेंद्रीकरण और निर्णय लेने की क्षमता का विस्तार इस मॉडेल की सफलता का राज़ है. किसी के काम को मान्यता देने और प्रोत्साहित करने की संस्कृति का निर्माण करना, दिल्ली की शिक्षा नीति का एक अहम हिस्सा है. दिल्ली बोर्ड ऑफ स्कूल एजुकेशन (डीबीएसई) की स्थापना तीन उद्देश्यों के साथ की गई है. अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप शिक्षा प्रदान करना, जो रटने की व्यवस्था पर ध्यान केंद्रित नहीं करता है. ऐसी शिक्षा देना जो अंत: विषय प्रकृति की हो और बाल केंद्रित शिक्षा शास्त्र पर आधारित हो. निरंतर मूल्यांकन स्थापित करना, जो शिक्षण और सीखने की प्रथाओं को सूचित करता है. डीबीएसई को 10 के 8 स्कूलों और 31 एएसओएसई में संचालित किया गया था. उन्नत शिक्षा शास्त्र के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर के स्नातक के साथ एक समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए गए. डीबीएसई का लक्ष्य अगली पीढ़ी के मूल्यांकन सुधारों को शुरू करना है, ताकि शिक्षा व्यवस्था को रटने की व्यवस्था से अलग किया जा सके.

दिल्ली हेल्थ मॉडल क्या है?

दिल्ली हेल्थ मॉडल का मकसद आम आदमी के लिए मोहल्लों से अस्पतालों तक सुलभ, सस्ती और गुणवत्तापूर्ण स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराना है. करीब 2 करोड़ की आबादी वाली दिल्ली में 13 हजार 500 व्यक्ति/वर्ग किमी के जनसंख्या घनत्व है. लोगों को उच्च स्तरीय हेल्थकेयर प्रदान करने के लिए, दिल्ली सरकार ने 12 हजार 603 बिस्तरों वाले 38 अस्पताल स्थापित किए हैं, जिनमें से 34 एलोपैथी और 4 आयुष अस्पताल हैं. दिल्ली सरकार के कुल 30 पॉलीक्लिनिक और 414 औषधालय हैं. वहीं, 28 हजार 862 बिस्तरों के साथ 1,068 निजी अस्पताल और नर्सिंग होम हैं. केजरीवाल सरकार ने दिल्ली में हेल्थकेयर के कैपिटल बजट में 5.5 गुना बढ़ोतरी की है. दिल्ली सरकार ने 442 मीट्रिक टन बफर रिजर्व, 6 हजार डी प्रकार के सिलेंडर, 97 पीएसए प्लांट्स और 2 क्रायोजेनिक प्लांट्स के साथ अपने ऑक्सीजन के बुनियादी ढांचे को बढ़ाया है.

इनोवेटिव हेल्थ इंफ्रास्ट्रक्चर का एक उदाहरण पेश करते हुए, केजरीवाल सरकार ने शहर भर में 519 मोहल्ला क्लीनिक और 20 स्कूल स्वास्थ्य क्लीनिक भी स्थापित किए हैं. सेवाओं में अंतराल को भरने के लिए, केजरीवाल सरकार ने हेल्थ केयर सेवाओं के पुनर्गठन में एक चार टायर हेल्थकेयर सिस्टम बनाया है. जोकि इस प्रकार हैं-

  • प्राथमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए आम आदमी मोहल्ला क्लिनिक.
  • डायग्नोस्टिक्स सहित विशेषज्ञ डॉक्टरों द्वारा ओपीडी परामर्श के रूप में माध्यमिक स्वास्थ्य देखभाल के लिए मल्टी स्पेशलिटी पॉली क्लिनिक
  • आईपीडी देखभाल के लिए मल्टी-स्पेशलिटी अस्पताल, जिसे पहले सेकेंडरी लेवल अस्पताल कहा जाता था.

सुपर-स्पेशलिटी अस्पताल, जिसे पहले तृतीयक स्तर का अस्पताल कहा जाता था.

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