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दिल्ली विश्वविद्यालय में 65वीं वार्षिक पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन

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Published : Mar 2, 2023, 4:51 PM IST

दिल्ली विश्वविद्यालय में 65वीं वार्षिक पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन
दिल्ली विश्वविद्यालय में 65वीं वार्षिक पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन

दिल्ली विश्वविद्यालय में गुरुवार को 65वीं वार्षिक पुष्प प्रदर्शनी के दौरान मुख्य अतिथि सतीश उपाध्याय ने अपने संबोधन में कहा कि फूलों के संपर्क में आने से अपार खुशी मिलती है. उन्होने कहा कि पूजा-अर्चना से लेकर सामाजिक समारोहों तक हर जगह फूलों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है.

नई दिल्ली: दिल्ली विश्वविद्यालय में गुरुवार को 65वीं वार्षिक पुष्प प्रदर्शनी का आयोजन विश्वविद्यालय के गौतम बुद्ध शताब्दी उद्यान में किया गया. इसमें विश्वविद्यालय से जुड़े अनेक कॉलेजों ने हिस्सा लिया. प्रदर्शनी का आयोजन “पुष्पोत्सव 2023: दिल्ली विश्वविद्यालय के खिलखिलाते सौ वर्ष” रखा गया था. इस दौरान सबसे अच्छे प्रदर्शन के लिए इस वर्ष शताब्दी कप मिरांडा हाउस कॉलेज को गया. समारोह में मुख्य अतिथि के तौर पर पहुंचे एनडीएमसी के उपाध्यक्ष सतीश उपाध्याय ने कहा कि फूलों से हमें समर्पण और निस्वार्थ भाव से लोगों को खुशी देने का संदेश मिलता है. समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने कहा कि आज के समय में फूलों के कारोबार में भी करियर की अपार संभावनाएं हैं.

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मुख्य अतिथि सतीश उपाध्याय ने अपने संबोधन में कहा कि फूलों के संपर्क में आने से अपार खुशी मिलती है. उन्होने कहा कि पूजा-अर्चना से लेकर सामाजिक समारोहों तक हर जगह फूलों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है. साहित्य के माध्यम से हमें फूलों को लेकर बहुत से संदेश मिलते हैं. उन्होंने बताया कि हमारे देश में ट्यूलिप को विदेशों से मंगवाना पड़ता है. इन्हें लाना आसान नहीं होता. अब हम कोशिश कर रहे हैं कि एक बार आए ट्यूलिप के फूलों को अगले साल दोबारा प्रयोग प्रयोग लिए संरक्षित किया जा सके. शायद कश्मीर में इसके अनुकूल संभावनाएं हो सकती हैं. अगर यह संभव हुआ तो 35-40 रुपए में आए एक ट्यूलिप बल्ब को मात्र दो रुपए में संरक्षित किया जा सकेगा. इस अवसर पर उन्होंने कुलपति प्रोफेसर योगेश सिंह के नेतृत्व में दिल्ली विश्वविद्यालय में हो रहे अच्छे कामों को लेकर कुलपति और उनकी पूरी टीम को बधाई दी.

समारोह की अध्यक्षता करते हुए कुलपति प्रो. योगेश सिंह ने हिमाचल के चायल के एक गांव मगो का उल्लेख करते हुए बताया कि 1998 में उस गांव में एक शख्स द्वारा फूलों की खेती शुरू की गई और आज वहां से करीब 40 करोड़ रुपये के फूलों का कारोबार होता है. उन्होने बताया कि विश्व में फूलों की मांग 90 हजार करोड़ रुपए की है, जिसमें भारत का हिस्सा कुल एक प्रतिशत का है. इतने बड़े वैश्विक बाज़ार में हम अपनी हिस्सेदारी और बढ़ा सकते हैं. परंपरागत खेती के साथ फूलों की खेती अपनाने से अच्छा भविष्य बन सकता है. उन्होंने बताया कि डीयू आगे से ऐसी व्यवस्था कर रहा है कि सज्जा के लिए फूलों को कम से कम तोड़ा जाए. अगर सज्जा करनी है तो गमलों से की जाए ताकि उन्हें वापस सुरक्षित रखा जा सके और फूलों को कोई नुकसान न हो.

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