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जरूर लगवाएं टीका, कुछ मौत हैं अपवादः विशेषज्ञ

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Published : May 24, 2021, 10:52 PM IST

कोरोना के मामले अब काफी हद तक कम हो गये हैं, लेकिन तीसरी लहर की आशंका ने सबको फिर डरा दिया है. कोरोना टीका के दोनों डोज लेने वाले मरीजों की हो रही मौत से भी लोग घबराने लगे हैं. आखिर ऐसा क्यों हुआ? कोरोना का टीका लेने वालों को डरना चाहिए या नहीं? विशेषज्ञ बता रहे हैं.

Vaccination
टीकाकरण

नई दिल्लीः कोरोना से बचाव के लिए तेजी से टीकाकरण अभियान चलाया जा रहा है. जिन लोगों का टीका 16 जनवरी के बाद लगना शुरू हुआ. उन सभी ने दूसरा डोज भी ले लिया है. दोनों डोज लेने के बावजूद कुछ के कोरोना संक्रमित होने और उसके बाद मृत्यु होने के बाद, लोगों में डर का माहौल बन गया है. हार्ट केयर फाउंडेशन ऑफ इंडिया के अध्यक्ष डॉ. केके अग्रवाल की कोरोना संक्रमण से असामयिक मृत्यु हो गई. उन्होंने कोरोना के दोनों टीके लगवाये थे. ऐसे में विशेषज्ञ डॉक्टरों का कहना है कि कुछ हुई मौतों से अधिक डरने की जरूरत नहीं है.

कोराना वैक्सीनेशन जरूरी.


डॉ. अग्रवाल के शरीर में नहीं बन पाई थी एंटीबाडी

डॉक्टर केके अग्रवाल टीके के दोनों डोज लेने के बाद एंटीबॉडी की जांच की, तो उन्हें यह जानकर हैरानी हुई कि शरीर में कोरोना का एंटीबॉडी नहीं बन पाई है. शायद इसीलिए वह कोरोना से संक्रमित हुए और फिर उनकी मृत्यु हो गई.आम लोगों के मन में भी डर लगा है, जिन्होंने कोरोना के दोनों डोज ले लिये हैं. वे इस बात को लेकर आशंकित हैं कि क्या उनके शरीर के अंदर कोरोना के एंटीबॉडी बन पाये हैं या नहीं. उन्हें कोरोना संक्रमण से कितनी सुरक्षा मिल पाएगी.

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अपवाद स्वरूप हुई कुछ मौतों को देखकर टीका से डरने की जरूरत नहीं

राजीव गांधी कैंसर इंस्टीट्यूट के कंसल्टेंट डॉक्टर डॉ अभिषेक बंसल बताते हैं कि ज्यादातर लोगों के मन में यह सवाल उठ रहा है कि उन्होंने कोरोना संक्रमण से बचने के लिए, जो टीका लिया है, उसकी एफिकेसी कितनी है ? उनके बॉडी के अंदर कितनी मात्रा में एंटीबॉडी बनी है, जो उन्हें कोरोना संक्रमण से सुरक्षा देगी ? देश के जाने-माने कार्डियोलॉजिस्ट डॉ. केके अग्रवाल और डॉ शेखर अग्रवाल कोरोना की टीका के दोनों डोज लेने के बावजूद ना सिर्फ कोरोना के संक्रमण का शिकार हुए, बल्कि उनका संक्रमण काफी गंभीर अवस्था में पहुंच गया, जिसकी वजह से दोनों डॉक्टर्स की असामयिक मृत्यु हो गई. आम जनमानस के मन में अपनी सुरक्षा को लेकर सवाल उठना बिल्कुल जायज है, क्योंकि उनके मन में यह जरूर सवाल आएगा कि जब डॉक्टर सुरक्षित नहीं हैं, जिन्होंने कोरोना के टीका के दोनों डोज लिए थे, तो वो कैसे सुरक्षित हो सकते हैं ?


टीका लगाने के बावजूद दिल्ली के 100 डॉक्टर्स की कोरोना संक्रमण से मौत

डॉ. अभिषेक ने बताया कि भले ही कुछ डॉक्टर्स की मृत्यु टीका लगाने के बावजूद हो गई, लेकिन फिलहाल कोरोना महामारी से बचने का सबसे बढ़िया उपाय टीकाकरण ही है, इसलिए वैक्सीन जरूर लगवाएं. कोरोना की दूसरी लहर काफी घातक है. इंडियन मेडिकल एसोसिएशन ने भी कोरोना संक्रमण से मरने वाले डॉक्टर की सूची निकाली, जिसमें दिल्ली में अब तक 100 डॉक्टर्स की मृत्यु हो चुकी है. इनमें से सभी डॉक्टर्स ने कोरोना के टीके लगवाए थे. डॉक्टर अभिषेक बताते हैं कि अगर टीका नहीं लगाया हुआ होता, तो मरने वाले लोगों की इतनी संख्या होती कि लोग गिन भी नहीं मिल पाते. टीकाकरण की वजह से ही मृत्यु दर को नियंत्रित किया जा सका है.


गाइडलाइन में एंटीबॉडी टेस्ट करवाने का नहीं है प्रावधान

जहां तक टीका लगाने के बाद एंटीबॉडी टेस्ट कराने की बात है, तो फिलहाल यह सुविधा कोरोना ट्रीटमेंट प्लान के तहत नहीं दी गई है. ऐसी कोई गाइडलाइंस नहीं है कि आप अपना एंटीबॉडी टेस्ट करवा सकें. डॉ. अभिषेक कहते हैं कि उन्हें भी एंटीबॉडी टेस्ट नहीं करवानी चाहिए, क्योंकि इससे उन्हें गलतफहमी होगी कि उनके शरीर में तो एंटीबॉडी बन गई है, इसलिए वह कभी कोरोना संक्रमित नहीं हो सकते हैं, जबकि यह सच नहीं है. टीका लेने के बाद भी कोरोना संक्रमित हो सकते हैं, लेकिन टीका का यही फायदा है कि यह आपको आईसीयू या वेंटीलेटर पर जाने नहीं देगी. हालांकि अपवाद हर जगह है. कुछ अपवाद को छोड़कर वैक्सीन पूरी तरह से कारगर है.


घर में ताला लगाने के बावजूद चोरी होने की बनी रहती है आशंका

दिल्ली मेडिकल काउंसिल के अध्यक्ष डॉक्टर अरुण गुप्ता बताते हैं कि वैक्सीन लगाने के बाद कुछ लोगों के कोरोना संक्रमित होने और उनमें से कुछ की मृत्यु हो जाने के बाद, जो लोग घबराए हुए हैं, उन्हें घबराने की जरूरत नहीं है. उन्होंने इसे आसान शब्दों में समझाते हुए कहा कि जब घर से बाहर जाते हैं, तो चोरी से बचने के लिए घर में ताला लगाकर जाते हैं. क्या ताला लगाने के बावजूद चोरी नहीं होती है ? ताला लगने के बावजूद, जिस तरह से चोरी हो सकती है. उसी तरह से वैक्सीन लगने के बावजूद कुछ मामले में लोग संक्रमित हो सकते हैं और उनमें से कुछ की मृत्यु भी हो सकती है. इसे अपवाद मानकर चलें. डॉ. गुप्ता ने बताया कि कोई भी वैक्सीन 100 फ़ीसदी प्रभावी नहीं होती है. 60- 90 फीसदी तक यह प्रभावी हो सकती है.


वैक्सीन का दूसरा डोज लेने के 15 दिनों के बाद बनता है एंटीबॉडी

वैक्सीन को लेकर, कुछ लोगों के मन में गलतफहमी है कि पहला डोज लेते ही सुरक्षा मिलनी शुरू हो जाती है. यह सच नहीं है. वैक्सीन के दोनों डोज लेने के बाद, दूसरे डोज के 15 दिनों के बाद शरीर में पर्याप्त मात्रा में एंटीबॉडी बनी शुरू होती है, जो हमें संक्रमण से सुरक्षा प्रदान कर सकती है, लेकिन जो लोग पहला ही डोज लेने के बाद सारे गाइडलाइंस को भूल जाते हैं. इसका परिणाम होता है कि वह कोरोना संक्रमित हो जाते हैं. डॉ गुप्ता ने कहा कि दोनों डोज लेने के बाद इसकी आशंका नगण्य होती है कि आप कोरोना संक्रमित हों, अगर हो भी जाए, तो इसकी गंभीर रूप से संक्रमित नहीं होंगे और आईसीयू व वेंटिलेटर की जरूरत नहीं पड़ेगी.


भारत में दिए जाने वाले वैक्सीन की एफिकेसी 60-70 फीसदी

दिल्ली मेडिकल एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष डॉ. अनिल बंसल बताते हैं कि भारत में कोवैक्सीन और कोविशील्ड, सिर्फ दो ही वैक्सीन लोगों को लगाए जा रहे हैं, जिनकी एफीकेसी 60 से 70 फ़ीसदी तक है. 30 फीसदी लोगों में कोरोना संक्रमण की आशंका बची रह जाती है. इनमें कौन लोग होंगे, यह कहना मुश्किल है. जरूरी है कि कोरोना का टीका लेने के बाद भी सभी गाइडलाइंस का पालन करें.

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