नई दिल्ली : जिस अनुपात में मरीजों की संख्या है, उस अनुपात में मरीजों के गुणवत्ता पूर्ण इलाज के लिए न विशेषज्ञ डॉक्टर हैं और न ही हॉस्पिटल. ऊपर से सरकार ने नेशनल मेडिकल कमीशन के माध्यम से ऐसी पॉलिसी लाई है कि 1 साल में अधिकतम 2,500 ही सुपर स्पेशलिटी डॉक्टर्स तैयार हो पाते हैं. ऐसे में मरीजों को गुणवत्तापूर्ण इलाज मिल पाना, कहां तक संभव हो सकेगा. पूरे देश में 609 सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल्स हैं, जबकि दिल्ली-एनसीआर में सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल्स की संख्या 64 है. फेडरेशन ऑफ ऑल इंडिया मेडिकल एसोसिएशन (फेमा) ने इस तरफ विशेषज्ञों का और सरकार का ध्यान खींचा है.
फेमा के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष रोहन कृष्ण बताते हैं कि अभी हाल ही में नेशनल मेडिकल कमिशन ने नीट सुपर स्पेशलिटी कोर्स में दाखिले के लिए जो क्राइटेरिया है उसका ड्राफ्ट तैयार किया है. इसमें बड़ी-बड़ी त्रुटियां है, जिसकी वजह से योग्य डॉक्टर सुपर स्पेशलिटी कोर्स में दाखिला के लिए वंचित कर दिए जाते हैं. उन्होंने कहा कि अपने देश में सुपर स्पेशलिटी डॉक्टरों की पहले से ही कमी है.
रोहन कृष्ण ने बताया कि विश्व स्वास्थ्य संगठन के गाइडलाइंस के मुताबिक स्पेशलिस्ट और एमबीबीएस डॉक्टरों की संख्या मरीजों के अनुपात में जरूरत के मुताबिक नहीं है. गाइडलाइंस के मुताबिक प्रति एक हजार आबादी पर एक एमबीबीएस डॉक्टर होना चाहिए, लेकिन हमारे देश में प्रति 1456 लोगों पर एक डॉक्टर है. इससे साफ जाहिर है कि हमारे देश में क्वालिफाइड एमबीबीएस डॉक्टरों की पहले से ही काफी कमी है. इसके लिए सरकार की दोषपूर्ण नीतियां जिम्मेदार है.
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रोहन कृष्ण ने कहा कि अगर पिछले साल 2020 के नीट के पॉप अप राउंड पर नजर डालें तो हम पाते हैं कि काउंसलिंग में 574 सीटें खाली रह गए थे. यह तो एमबीबीएस डॉक्टरों की बात हो गई, लेकिन विभिन्न विभागों में सुपर स्पेशलिटी डॉक्टर के दाखिले में भी ऐसे-ऐसे नियम बनाए गए हैं, जिससे अलॉटेड सीट भी नहीं भर पाती है. बड़ी संख्या में सीटें खाली रह जाती है. डीएम-एमसीएच जैसे सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टरों की संख्या बढ़ाने के लिए नियमों में सुधार के साथ-साथ मौजूदा उपलब्ध सीटों की संख्या भी बढ़ानी होगी.
वहीं, चाइल्ड स्पेशलिस्ट एवं इंडियन मेडिकल एसोसिएशन सेंट्रल दिल्ली के पूर्व अध्यक्ष डॉ. रमेश बंसल बताते हैं कि मेडिकल टूरिज्म का सपना तब तक पूरा नहीं हो पाएगा, जब तक कि हमारे देश में सुपर स्पेशलिस्ट सुविधाएं और डॉक्टर नहीं बढ़ाए जाएंगे. हमारे देश में अगर किसी को कोई असाध्य बीमारी होती है तो इलाज के लिए सक्षम लोग देश के डॉक्टर और यहां मिलने वाली सुविधाओं पर भरोसा करने के बजाए विकसित देशों की तरफ रुख करते हैं. हमें अपने देश की मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को इतना मजबूत करना चाहिए कि विदेशों से बड़ी संख्या में मरीज इलाज के लिए भारत आए. जिससे यहां मेडिकल टूरिज्म का एक अच्छा माहौल बन सके. इसका फायदा सरकार को भी मिलेगा. विदेशी मुद्रा सरकार के खजाने में भरेगा. इससे अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलेगी.
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आखिर सरकार की नीति कहां गलत हो रही है, इसके बारे में डॉक्टर रोहन कृष्णन बताते हैं कि मेडिकल प्रवेश परीक्षा के क्राइटेरिया से लेकर इसमें दाखिले के लिए बनाए गए नियम और गाइडलाइंस त्रुटिपूर्ण है. अभी कुछ दिन पहले ही नेशनल मेडिकल कमीशन ने 'नीट सुपर स्पेशलिटी ' कोर्स में दाखिले के लिए एक ड्राफ्ट तैयार किया है. इसमें बड़ी- बड़ी दिक्कतें हैं. एमडी पीडियाट्रिक्स को डीएम कार्डियोलॉजी डीएम नेफ्रोलॉजी और कई डीएम की ऐसी सीटें हैं, जिससे एमडी पीडियाट्रिक्स को वंचित कर दिया गया है. पीडियाट्रिक्स बहुत ही क्लीनिकल सब्जेक्ट है. इसमें 0 से लेकर 16 साल तक के बच्चों का हर तरह का इलाज किया जाता है. एमडी पीडियाट्रिक्स के डॉक्टर्स को सुपर स्पेशलिटी कोर्स के लिए कार्डियोलॉजी, नेफ्रोलॉजी और एंडोक्राइनोलॉजिस्ट जैसे सुपर स्पेशलिटी कोर्स से वंचित रखना उचित नहीं है.
डॉ. रोहन बताते हैं कि अगर सही मायने में भारत को मेडिकल टूरिज्म में आगे बढ़ना है तो सुपर स्पेशिलिटी कोर्स की गाइड लाइंस एवं नीतियों में बदलाव लाना होगा. डॉ रोहन बताते हैं कि देश को मेडिकल टूरिज्म की तरफ ले जाने में सुपर स्पेशलिटी हॉस्पिटल्स और सुपर स्पेशलिस्ट डॉक्टर की संख्या बढ़ाने, मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर को मजबूत करने की जरुरत है.