नई दिल्ली : दिल्ली विधानसभा की कमेटी के सामने पेश हुए मेटा कंपनी के प्रतिनिधियों को समिति के कड़े सवाल और पड़ताल से गुजरना पड़ा रहा है. मसलन, समिति ने मेटा (Facebook) प्रतिनिधियों से पूछा कि असंवेदनशील सामग्री होने पर आप किस लॉ एनफोर्समेंट एजेंसी को जानकारी देते हैं. दिल्ली दंगों में फेक न्यूज, हेट स्पीच की फेक्ट चैकिंग कैसे की ? हेट स्पीच की पहचान के लिए बनाए गए सिविल सोसायटी के सदस्य बायस्ड नहीं होंगे, ये कैसे तय करेंगे.
दिल्ली में 2020 (Delhi riots case ) में हुए दंगों के मामले में फेसबुक (Facebook Delhi riots 2020 case) के अधिकारी गुरुवार 12.30 बजे विधानसभा की शांति,सद्भाव समिति के सामने पेश हुए और सुनवाई चल रही है. राघव चड्ढा की अध्यक्षता वाली इस कमेटी के सामने पेश होने के लिए फेसबुक प्रतिनिधियों ने 14 दिन का समय मांगा था, जो आज यानि 18 नवम्बर को पूरा हो रहा था. फेसबुक के अधिकारियों को समिति के पिन प्वाइंटेड सवालों का सामना करना पड़ रहा है. मसलन, फेसबुक अधिकारियों से विधानसभा समिति ने पूछा कि उनकी कंपनी के कर्मचारियों में किस तरह की धार्मिक विविधाएं हैं. इसी तरह फेसबुक से ये भी पूछा गया कि क्या उनकी किसी भारतीय कंपनी में हिस्सेदारी है ? धार्मिक विविधता के सवाल पर फेसबुक का जवाब था कि भारतीय कानून में उनके लिए ये बताने की बाध्यता नहीं है. दिल्ली विधानसभा की शांति समिति,सद्भाव समिति के सामने पेशी की कार्यवाही पूरी हुई.
इस पेशी को लेकर फेसबुक इंडिया के सार्वजनिक नीति प्रमुख ने ईमेल के जरिए 29 अक्टूबर 2021 को अनुरोध किया था, जिसके बाद समिति ने गुरुवार 18 नवंबर की तारीख दी थी. इस पेशी को दिल्ली विधानसभा के यूट्यूब पर लाइव हो रहा है. समिति के सामने फेसबुक इंडिया के पब्लिक पॉलिसी डायरेक्टर शिवनाथ ठुकराल ने अपना पक्ष रखा.
समिति की पिछली कार्यवाही में राघव चड्ढा की अध्यक्षता में फेसबुक इंडिया के प्रतिनिधियों (Delhi Assembly Committee Facebook ) को समिति के समक्ष पेश होने के निर्देश दिए गए थे. फेसबुक इंडिया को 27 अक्टूबर 2021 को समन जारी किया गया था. हालांकि, फेसबुक ने उपयुक्त प्रतिनिधियों की पहचान करने के लिए समय मांगा था. गौरतलब है कि फेसबुक ने जारी समन को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती भी दी थी, लेकिन शीर्ष अदालत ने फेसबुक की याचिका को खारिज करते हुए कहा था कि दिल्ली विधानसभा समिति के पास अपने विशेषाधिकार के तहत बाहरी लोगों को समन जारी करने का अधिकार है.
दरअसल दिल्ली विधानसभा की शांति और सद्भाव संबंधी समिति दिल्ली में फरवरी 2020 में हुए सांप्रदायिक वैमनस्य और हिंसा की समिति जांच कर रही है, ताकि हालात को शांत करने और धार्मिक समुदायों, भाषाई समुदायों या सामाजिक समूहों के बीच सद्भाव बहाल करने के लिए उपयुक्त उपायों की सिफारिश की जा सके. इस मामले में समिति ने अध्यक्ष राघव चड्ढा के माध्यम से पहले सात अत्यंत महत्वपूर्ण गवाहों से पूछताछ की है. पत्रकारों, पूर्व नौकरशाहों, सहित कई व्यक्तियों को सुना गया. इनमें प्रख्यात पत्रकार और लेखक परंजॉय गुहा ठाकुरता, डिजिटल अधिकार कार्यकर्ता निखिल पाहवा, वरिष्ठ पत्रकार अवेश तिवारी, प्रख्यात स्वतंत्र और खोजी पत्रकार कुणाल पुरोहित, न्यूज़क्लिक के संपादक प्रबीर पुरकायस्थ, ऑल्ट न्यूज़ के सह-संस्थापक प्रतीक सिन्हा और फेसबुक इंक के पूर्व कर्मचारी मार्क एस लक्की शामिल हैं. यह लोग समिति के समक्ष उपस्थित हुए और बहुमूल्य साक्ष्य एवं सुझाव प्रस्तुत किये.
कमिटी- क्या आपने भारत के लिए अलग से हेट स्पीच की कोई परिभाषा बनाई है.
मेटा- सर हमने यूनिवर्सल पॉलिसी बनाई हैं जो इसके लिए वैध है.
कमिटी- यानी आपके पास भारत के लिए कोई अलग से परिभाषा नहीं है.
मेटा- सर हम लोकल लॉ का ध्यान रखते हैं. हेट स्पीच की ऐसी कोई परिभाषा नहीं है.
कमिटी- आप हमें हां या न में जवाब दें.
मेटा- सर मैं अपने अधिकार का प्रयोग करते हुए अब इस पर कुछ नहीं कहूंगा
कमिटी- क्या आप हमें वो para बता सकते हैं, जहां कोर्ट ने कहा है कि आप चाहें तो जानकारी देने से मना कर सकते हैं.
मेटा अधिकारी कोर्ट का आदेश पढ़ती हैं..
कमिटी- facebook पोस्ट की रीच के लिए क्या श्रेणियां हैं?
मेटा- सर हम कई टूल का इस्तेमाल करते हैं. जैसे किसी जानकारी के लिए हम फेक्ट चेक टीम को कांटेंट देते हैं और फिर ग़लत पाए जाने पर रीच घट जाती है. ऐसे ही अलग श्रेणियां हैं. हम आपको इस पर विस्तृत जानकारी दे सकते हैं.
हेट स्पीच और फ़ेक न्यूज़ पर सवाल….
कमिटी- क्या आपके पास फेक्ट चेकिंग के लिए कोई इन्फ़्रस्ट्रक्चर है?
मेटा-सर हमारे पार्ट्नर हैं जो 11 भाषाओं के कांटेंट देखते हैं.
दंगों के दौरान आपके पास कितने फैक्ट चेकिंग पार्ट्नर थे?
मेटा-सर हम इस पर आपको विस्तृत जानकारी दे सकते हैं, लेकिन ये संख्या 8 से 10 थी
आप फ़ैक्ट चेकर कैसे चुनते हैं?
मेटा-सर हम सबसे पहले तो सर्टिफ़िकेशन देखते हैं ये है IFCN (International Fact-Checking Network) सर्टिफ़िकेट
कमिटी- दंगों के दौरान आपने समस्यात्मक कंटेंट को हटाने के लिए क्या-क्या कदम उठाए?
जवाब में कम्पनी की कार्यप्रणाली बताई गई, जिस पर कमिटी ने उस दौरान उठाए गए कदमों पर फिर से सवाल किया.
मेटा- सर हम उस पर आपको कुछ नहीं कह सकते. मामले की जांच चल रही है.
कमिटी अधिकारियों के जानकारी नहीं देने और हर बार “अपने अधिकार का इस्तेमाल” करने पर पूछती है कि आप कोऑपरेट नहीं कर रहे हैं. ये कोई प्रॉसिक्यूशन नहीं है.
मेटा- सर पब्लिक डोमेन में जो भी है. वो ही मैं आपको बता सकता हूं
कमिटी- डिस्ट्रिब्यूशन पर बताएं कि कैसे कोई पोस्ट की रीच घट जाती है.
मेटा अधिकारी- ऐल्गोरिदम और टूल्स का हवाला देते हैं
कमिटी- जब कोई फ़ेक न्यूज़ होती है तो क्यों उसे हटाना ही एकमात्र समाधान नहीं होता? क्यों आप उसकी रीच घटा देते हैं.
मेटा- सर ये एक कॉम्प्लेक्स इसू है. कई बात एक कांटेंट एक व्यक्ति के लिए ग़लत तो दूसरे के लिए सही होता है. इसीलिए हमने फेक्ट चेकर रखे हैं.
सवाल हेट स्पीच और अन्य विवादित श्रेणियों के लिए भी है
मेटा- हेट स्पीच के लिए हम सिविल सोसायटी के सदस्यों के फ़ैसलों पर निर्भर रहते हैं.
कमिटी- कैसे कह सकते हैं कि ये मेम्बर बायस नहीं होते.
मेटा- ये ट्रस्टेड पार्टनर हैं. हम इनकी सुरक्षा के मद्देनज़र इनके विषय में जानकारी नहीं दे सकते, लेकिन हेट स्पीच सभी के लिए हेट स्पीच है.
जानिए क्या है मामला
दिल्ली में बीते साल फरवरी 2020 में नागरिकता संशोधन कानून के खिलाफ चल रहे प्रदर्शन के दौरान विरोधियों और समर्थकों के बीच झड़पें देखते ही देखते सांप्रदायिक हिंसा में तब्दील हो गईं थी, जिसके बाद उत्तरी दिल्ली में भड़की हिंसा ने ख़ौफनाक रूप ले लिया था. इसके बाद दिल्ली दंगों की जांच के लिए दिल्ली विधानसभा द्वारा शांति और सद्भाव समिति का गठन किया गया था.