नई दिल्ली: वैवाहिक रेप का अपवाद किसी शादीशुदा महिला की यौन इच्छा की स्वतंत्रता का उल्लंघन है. वैवाहिक रेप को अपराध करार देने के मामले पर सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता ने दिल्ली हाईकोर्ट में कहा कि इससे जुड़ा अपवाद संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन है. जस्टिस राजीव शकधर की अध्यक्षता वाली बेंच इस मामले पर अब तीन फरवरी को सुनवाई करेगी.
सुनवाई के दौरान याचिकाकर्ता की ओर से वकील करुणा नंदी ने कहा कि वैवाहिक रेप का अपवाद यौन संबंध बनाने की किसी शादीशुदा महिला की आनंदपूर्ण हां की क्षमता को छीन लेता है. उन्होंने कहा कि धारा 375 का अपवाद दो किसी शादीशुदा महिला के ना कहने के अधिकार को मान्यता नहीं देता है. ऐसा होना संविधान की धारा 19(1)(ए) का उल्लंघन है. ये अपवाद असंवैधानिक है क्योंकि ये शादी की निजता को व्यक्तिगत निजता से ऊपर मानता है.
दाे फरवरी को दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा था कि वैवाहिक रेप को अपराध करार देने से एक नए अपराध का जन्म होगा. जस्टिस सी हरिशंकर ने ये बातें कही थीं. सुनवाई के दौरान बेंच की अध्यक्षता कर रहे जस्टिस राजीव शकधर ने कहा था कि वे फिलहाल अपनी राय नहीं रखना चाह रहे हैं. ये मामला आगे बढ़ना चाहिए. हम चाहते हैं कि केंद्र सरकार इस पर अपना पक्ष रखे. सुनवाई के दौरान वकील करुणा नंदी ने कहा था कि वैवाहिक अधिकार संभोग के बाद खत्म हो जाते हैं. बाकी बातें इच्छा की होती है क्योंकि कोई भी पत्नी हमेशा यौन संबंध बनाने की सहमति नहीं देती है.
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31 जनवरी को सुनवाई के दौरान करुणा नंदी ने कहा था कि वैवाहिक रेप (Marital rape) को जब तक अपराध नहीं करार दिया जाएगा तब तक इसे बढ़ावा मिलता रहेगा. उन्होंने कहा था कि शादी सहमति को नजरअंदाज करने का लाइसेंस नहीं देता है. उन्होंने कहा था कि जब तक वैवाहिक रेप को अपराध करार नहीं दिया जाता इसे बढ़ावा मिलता ही रहेगा. उन्होंने कहा था कि ये मामला एक शादीशुदा महिला की ओर से बलपूर्वक यौन संबंध बनाने को नहीं करने के नैतिक अधिकार से जुड़ा हुआ है. वैवाहिक रेप किसी पत्नी को ना कहने के अधिकार को मान्यता देने की है.
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नंदी ने कहा कि संविधान के तहत महिलाओं को मताधिकार मिला है, महिलाओं को पूजा करने का अधिकार, बिना यौन प्रताड़ना के काम करने का अधिकार और तीन तलाक के खिलाफ अधिकार मिले हैं. सुनवाई के दौरान कोर्ट ने पूछा था कि क्या धारा 375 के अपवाद को हटा देना एक नए अपराध को जन्म नहीं देगा. जस्टिस राजीव शकधर ने कहा था कि जोसेफ शाईन और शायरा बानो के फैसले में कहा गया है कि कोर्ट एक नए अपराध को जन्म नहीं दे सकता है. कोर्ट ने कहा था कि जहां एक पक्ष ये कह रहा है कि धारा 375 का अपवाद मनमाना है जबकि दूसरा पक्ष कह रहा है कि कोर्ट को इसमें दखल नहीं देना चाहिए.
बता दें कि इसके पहले केंद्र सरकार ने वैवाहिक रेप को अपराध करार देने का विरोध किया था. 29 अगस्त 2018 को केंद्र सरकार ने हाईकोर्ट में दाखिल हलफनामे में कहा था कि वैवाहिक रेप को अपराध की श्रेणी में शामिल करने से शादी जैसी संस्था अस्थिर हो जाएगी और ये पतियों को प्रताड़ित करने का एक जरिया बन जाएगा. याचिका एनजीओ आरआईटी फाउंडेशन, अखिल भारतीय जनवादी महिला समिति समेत दो और लोगों ने दायर की है. याचिका में भारतीय दंड संहिता की धारा 375 के अपवाद को निरस्त करने की मांग की गई है. याचिका में कहा गया है कि यह अपवाद विवाहित महिलाओं के साथ उनके पतियों की ओर से की गई यौन प्रताड़ना की खुली छूट देता है.