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Positive Bharat Podcast: शुक्रिया योद्धाओं, इंसानियत की मिसाल बने ये विशिष्ट नायक

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Published : Sep 18, 2021, 12:12 PM IST

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इंसानियत की मिसाल बने यह विशिष्ट नायक

जब देश कोरोना वायरस के कहर से जूझ रहा था, लोग तेजी से संक्रमित हो रहे थे. उस मुश्किल वक्त में लोग वायरस से बचने के लिए घरों से बाहर निकलने से भी डर रहे थे, तब कुछ ऐसे भी लोग सामने आए जो अपने काम से लोगों के लिए इंसानियत की मिसाल बन गए, आज के पाॅडकास्ट में कहानी दो ऐसी ही शख्सियतों की...

नई दिल्ली: बीते शुक्रवार प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन के अवसर पर देश ने वैक्सीनेशन अभियान में नया रिकॉर्ड कायम किया. इसके तहत एक दिन में पहली बार ढाई करोड़ से अधिक कोरोना के टीके लगाए गए. भारत ने देर रात वैक्सीनेशन के इस ऐतिहासिक आंकड़े को पार किया. कोरोना काल में इस विशेष उपलब्धि पर स्वयं प्रधानमंत्री सहित अन्य दिग्गज नेताओं ने अपनी प्रतिक्रियाएं दी.

सभी को वो दौर भी याद होगा, जब इस महामारी ने देश-दुनिया पर कहर ढाया था, तब विश्व के कई राष्ट्र के वैज्ञानिक कोरोना की रोकथाम के लिए टीके बनाने में लग गए थे. ऐसे में इस दौड़ में भारत भी शामिल था. देश के वैज्ञानिक, डॅाक्टर, नर्स समेत तमाम मेडिकल स्टाफ के अलावा पुलिस, समाजसेवी और कईयों ने हमारी सुरक्षा के लिए जी-जान दांव पर लगा दिया. ऐसे में वैक्सीनेशन के इस ढाई करोड़ के आंकड़े को पार करना, उन फ्रंटलाइन योद्धाओं को सलामी है.

इंसानियत की मिसाल बने यह विशिष्ट नायक

आज के पॅाडकास्ट की कहानी जान जोखिम में डालकर, हमें सुरक्षित रखने वाले कुछ ऐसे कोरोना वॅारियर्स की, जिन्होंने मानव जाति की सेवा के लिए खुद को बलिदान कर दिया. सबसे पहले कहानी दिल्ली पुलिस में ASI पद पर कार्यरत रोकश कुमार की, जिन्होंने कोरोना से लड़ाई हारने वाले लगभग 1,700 से ज्यादा लोगों का अंतिम संस्कार किया. यह भी ऐसे वक्त में, जब इन मरीजों के खुद के घर-परिवार वाले साथ छोड़ रहे थे. ऐसे दौर में ASI राकेश कुमार द्वारा किया जा रहा यह उत्तम कार्य एक विशिष्ट नायक होने का दर्जा देता है.

उस बुरे वक्त में जब हर एक शख्स संक्रमण से खुद को बचाने के लिए तरीके खोज रहा था, तब राकेश वर्दी पहन, श्मशान घाट में कोरोना से जंग हार चुके मरीजों को कंधा दे रहे थे. इस बीच 57 वर्षीय राकेश ने ना केवल शारीरिक तौर पर, बल्कि पारिवारिक तौर पर भी कई कुर्बानियां दीं. ऐसा ही हुआ, जब इस बीच उनकी बेटी की शादी का मुहूर्त निकला, सबने उन्हें काम छोड़ बेटी के शादी के लिए समय निकाले पर मजबूर करने लगे, लेकिन राकेश ने वक्त की गंभीरता को समझते हुए बेटी की शादी को टाल दिया और काम में जुट गए.

ऐसा ही एक भावुक करने वाला किस्सा पुणे के एक डॉक्टर मुकुंद का है. कोरोना के बुरे दौर में उनका परिवार भी बेहद खराब दौर से गुजर रहा था. डॉक्टर मुकुंद के परिवार में ज्‍यादातर लोग कोरोना संक्रमित थे, लेकिन सबसे ज्यादा गंभीर हालत उनके पिता की थी. कुछ दिन तक पिता ने हिम्मत बनाए रखी औऱ महामारी से जंग लड़ते रहे, लेकिन कुछ समय बाद उनकी सांसे थमी और मृत्यु हो गई, जब पूरा परिवार पिता की मौत का शोक मना रहा था, तब डॉक्टर मुकुंद की मां और भाई के कोरोना पॅाजिटिव होने की खबर मिली. डॉक्टर मुकुंद परेशान थे, क्योंकि एक तो घर में यह स्थिति, ऊपर से अस्पताल में कोरोना मरीजों का भयावह मंजर, उस वक्त मुकुंद ने जिंदगी का सबसे मुश्किल फैसला करते हुए, जिम्मेदारी निभाने के लिए अस्पताल लौटने का फैसला किया.

आज के पॅाडकास्ट के यह दो छोटे किस्से जिंदगी पर बहुत बड़ा प्रभाव डालते हैं. वक्त की जरूरत को समझते हुए दिल्ली पुलिस ASI राकेश कुमार और डॉक्टर मुकुंद दोनों ही लोगों की सहायता के लिए पहुंचे. दोनों ने ही परिवार से बढ़कर मानवता की जिम्मेदारियों को समझा.

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