नई दिल्ली: कोरोना संक्रमित मरीज की तुरंत पहचान और तुरंत से इलाज कर ठीक करने के लिए दिल्ली सरकार ने अपनी तरफ से रैपिड टेस्ट और प्लाज्मा थेरेपी के उपचार को मंजूरी तो दे दी, लेकिन दिल्ली सरकार की डॉक्टरों की टीम ही इस जांच और इस इलाज से पूरी तरह इत्तेफाक नहीं रखती. उनका कहना है कि रैपिड टेस्ट के नतीजे को हम पुख्ता नहीं मान सकते. इसी तरह प्लाज्मा थेरेपी से कई बीमारियों का इलाज होता है. इसे कोरोना का सटीक इलाज बिल्कुल भी नहीं माना जा सकता है.
ईटीवी भारत से खास बातचीत में दिल्ली सरकार द्वारा गठित पैनल में शामिल इहबास के निदेशक निमिष देसाई ने कहा कि रैपिड टेस्ट से तुरंत नतीजे आ जाते हैं कि मरीज संक्रमित है या नहीं. लेकिन इसकी कोई गारंटी नहीं मिलती कि कोरोना संक्रमित मरीज को रैपिड टेस्ट कर छोड़ दिया जाए.
रैपिड टेस्ट के बाद भी वायरस एक्टिव होने की संभावना
डॉ. देसाई कहते हैं, कोरोना संक्रमित मरीज जिसका रैपिड टेस्ट में नेगटिव आया है, कोरोना वायरस अंदर कब एक्टिव होगा कुछ कहा नहीं जा सकता. कोरोना के लिए निर्धारित टेस्ट ही सही सटीक जानकारी मिल सकती है. हां रैपिड टेस्ट का सिर्फ एक फायदा है कि इस जांच के नतीजे जल्दी आ जाते हैं. जिससे फौरी तौर पर संक्रमित मरीज का इलाज जल्दी शुरू किया जा सकता है.
प्लाज्मा थेरेपी के बारे में क्या कहते हैं डॉक्टर
प्लाज्मा थेरेपी से कोरोना संक्रमित मरीज के इलाज को सरकार ने इजाजत दी है. मैक्स अस्पताल में भर्ती एक मरीज पर इस थेरेपी से इलाज का फायदा भी हुआ. इस थेरेपी को लेकर दिल्ली हेल्थ सर्विसेज के प्रमुख डॉ अरुण गुप्ता ने ईटीवी भारत को बताया कि प्लाज्मा थेरेपी कोई नई तकनीक नहीं है. कई बीमारियों में इसका इलाज होता है. शरीर में जब एंटीबॉडी यानी प्रतिरोधक क्षमता कम हो जाती है तो प्लाज्मा के जरिए उस प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाया जाता है. कई बीमारियों में इस थेरेपी के जरिए इलाज होता है. कोरोना में यह कितना कारगर हो सकता है, अभी कोई पुख्ता जानकारी नहीं है. इस थेरेपी से किसी को फायदा मिल सकता है और किसी को नहीं भी मिल सकता है. आने वाले समय में ही यह पता चल पाएगा कि कोरोना मरीजों को प्लाज्मा थेरेपी दिया जाए या नहीं.
बता दें कि प्लाजमा थेरेपी में कोरोना संक्रमित मरीज जब ठीक हो जाता है, तो उस मरीज के खून से प्लाज्मा को निकाल कर दूसरे कोरोना संक्रमित मरीज को प्लाज्मा चढ़ाया जाता है. इस थेरेपी से कोरोना संक्रमित मरीज के शरीर में प्रतिरोधक क्षमता का विकास होता है और कुछ मरीजों में सकारात्मक नतीजे देखने में आये हैं.