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कर्ज चुकाने के लिए मेट्रो ने केंद्र और दिल्ली सरकार का खटखटाया दरवाजा

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Published : Oct 16, 2022, 4:50 PM IST

कर्ज में डूबी दिल्ली मेट्रो ने आर्थिक सहायता के लिए केंद्र और दिल्ली सरकार का दरवाजा खटखटाया है. मेट्रो प्रबंधन का कहना है कि रिलायंस को 7000 करोड़ रुपए देने के लिए पैसा नहीं है और दिल्ली हाईकोर्ट सख्त रूख अपनाए हुए हैं, ऐसे में मदद की दरकार है.

कर्ज में डूबी दिल्ली
कर्ज में डूबी दिल्ली

नई दिल्लीः दिल्ली मेट्रो ने 7000 करोड़ रुपए कर्ज चुकाने के लिए केंद्र और राज्य सरकार से मदद की गुहार लगाई है. दिल्ली हाईकोर्ट के निर्देश पर दिल्ली मेट्रो रेल निगम (डीएमआरसी) को रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर द्वारा प्रमोट की गई कंपनी दिल्ली एयरपोर्ट मेट्रो एक्सप्रेस प्राइवेट लिमिटेड को करीब 7000 करोड़ रुपए की देनदारी चुकानी है. एयरपोर्ट मेट्रो लाइन को टेकओवर करने की एवज में दिल्ली मेट्रो को यह रकम चुकानी है. कोर्ट में डीएमआरसी की तमाम दलीलें पहले ही खारिज हो चुकी है. इसलिए इस रकम को अब रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को देने के सिवाय और कोई विकल्प बचा नहीं है.


पहले दिल्ली मेट्रो रेल निगम ने बैंकों के जरिए पैसा जुटाने की योजना बनाई थी, लेकिन जिन शर्तों के आधार पर दिल्ली मेट्रो रेल निगम बैंकों से पैसा लेना चाह रही थी उसमें बैंकों ने ज्यादा दिलचस्पी नहीं दिखाया. इस बीच हर दिन बढ़ रही देनदारी और कोर्ट के सख्त रुख को देखते हुए डीएमआरसी ने अब दिल्ली और केंद्र सरकार से मदद की गुहार लगाई है. क्योंकि दिल्ली मेट्रो में केंद्र और दिल्ली सरकार की 50-50 फीसदी की हिस्सेदारी है.

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दिल्ली मेट्रो रेल निगम के मैनेजिंग डायरेक्टर विकास कुमार ने शहरी विकास मंत्रालय के सचिव को पत्र लिखकर केंद्र से 3500 करोड़ की आर्थिक सहायता देने का अनुरोध किया है. वहीं, दिल्ली सरकार के मुख्य सचिव नरेश कुमार को पत्र भेजा गया है, जिसके जरिए दिल्ली सरकार से भी 3500 करोड़ रुपए की मदद मांगी गई है.

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सूत्रों की मानें तो दिल्ली सरकार अभी तक डीएमआरसी को मदद करने में आगे नहीं आई है. दिल्ली सरकार का मानना है कि जब तक केंद्र सरकार मदद के लिए आगे नहीं आती तब तक हम इस मामले में ज्यादा कुछ नहीं कर सकते.

क्या है मामलाः 2011 में दिल्ली मेट्रो की एयरपोर्ट लाइन पर परिचालन शुरू हुआ था. यह दिल्ली मेट्रो की पहली लाइन थी, जिसे दिल्ली मेट्रो रेल निगम ने निजी कंपनी रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को परिचालन के लिए कॉन्ट्रैक्ट पर दिया था. लेकिन इस लाइन में परिचालन शर्तों का पालन नहीं होने पर रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर ने परिचालन से हाथ पीछे खींच लिए और दिल्ली मेट्रो के पास अपनी रकम वापस लेने की मांग की. जिसके बाद मामला कोर्ट में गया था और कोर्ट ने दिल्ली मेट्रो रेल निगम को 7000 करोड़ रुपए रिलायंस इंफ्रास्ट्रक्चर को लौटाने के आदेश दिए.

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