नई दिल्ली: दिल्ली में एक बार फिर केजरीवाल सरकार और उपराज्यपाल के बीच टकराव की स्थिति उत्पन्न हो गई है. दरअसल, शुक्रवार को दिल्ली के उपराज्यपाल अनिल बैजल ने कोरोना के हालात को देखते हुए मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा वीकेंड और नाइट कर्फ्यू हटाने संबंधी प्रस्ताव को खारिज कर दिया है. उपराज्यपाल ने कहा है कि फिलहाल जो स्थिति है उसे देखते हुए कर्फ्यू हटाना ठीक नहीं होगा.
उन्होंने दिल्ली आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की पिछले दिनों हुई बैठक में दिल्ली के बाजारों को ऑड-ईवन की तर्ज पर खोला जा रहा है. उपराज्यपाल ने इसे भी सही ठहराया है. मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल द्वारा बाजारों से ऑड-ईवन को खत्म करने के प्रस्ताव को भी एलजी ने खारिज कर दिया है. कोरोना की मौजूदा स्थिति को देखते हुए दिल्ली सरकार ने जिस तरह शुक्रवार को कर्फ्यू हटाने, बाजारों से ऑड-ईवन को खत्म करने तथा निजी दफ्तरों में 50 फीसद कर्मचारियों के साथ काम करने का प्रस्ताव उपराज्यपाल को मंजूरी के लिए भेजा था. उपराज्यपाल ने मुख्यमंत्री द्वारा भेजे गए तीन प्रस्ताव सिर्फ एक को मंजूरी दी है. बाकी दिल्ली में वीकेंड व नाईट कर्फ्यू व मार्केट को ऑड-ईवन की तर्ज पर खोलने संबंधी फैसले को उपराज्यपाल ने सही बताया है.
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शुक्रवार सुबह सरकार की तरफ से कर्फ्यू तथा ऑड-ईवन आदि में रियायत देने संबंधी प्रस्ताव उपराज्यपाल को भेजने की जानकारी दी गई. तो दोपहर एक बजे उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया ने भी प्रेस कॉन्फ्रेंस कर इस बात को साझा किया और उन्होंने कहा कि वह कर्फ्यू हटाने मार्केट में हालात सामान्य करने के संबंध में उपराज्यपाल को पत्र भेज रहे हैं. लेकिन कुछ मिनट बाद ही जिस तरह उपराज्यपाल कार्यालय की तरफ से मुख्यमंत्री द्वारा भेजे गए प्रस्ताव को खारिज होने की सूचना मिली फिलहाल सरकार की तरफ से कोई प्रतिक्रिया नहीं आई है.
बता दें कि यह पहला मौका नहीं है इससे पहले भी दिल्ली और दिल्ली वालों को लेकर मुख्यमंत्री द्वारा लिए गए कई फैसले को उपराज्यपाल ने खारिज किया है. जिसमें दिल्ली में सीसीटीवी लगाने, राशन की होम डिलीवरी, विधायकों का वेतन बढ़ाने से लेकर, एसीबी के अधिकारों, नई बसों की खरीद फरोख्त तथा अधिकारियों की नियुक्ति और तबादले जैसे महत्वपूर्ण केजरीवाल सरकार के फैसले को उपराज्यपाल ने खारिज कर दिया है.
दिल्ली एक केंद्र शासित प्रदेश है. इस लिहाज से दिल्ली का बॉस कौन यह मामला सुप्रीम कोर्ट से लेकर संसद तक पहुंचा था. जिसके बाद उपराज्यपाल के अधिकार को अधिक बताया गया है. चूंकि केंद्र सरकार ने संसद की दोनों सदनों द्वारा पास किए गए बिल को राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद गत वर्ष अप्रैल में नोटिफाई कर दिया था, इसका मतलब यह हुआ कि यह कानून दिल्ली में लागू हो चुका है. इस कानून के लागू होने का मतलब साफ है कि दिल्ली में दिल्ली सरकार कोई फैसला लेगी तो उसको बिना उपराज्यपाल की मंजूरी के लागू नहीं किया जा सकता है. नतीजतन केजरीवाल सरकार अपने हर फैसले को स्वीकृति के लिए उपराज्यपाल के पास भेजती और उस पर अंतिम निर्णय उपराज्यपाल का होता है.