नई दिल्ली : दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) ने मैनहोल में घुसकर सफाई (manhole cleaning in delhi) करने को लेकर गंभीर टिप्पणी की है. कोर्ट ने कहा देश की आजादी के 75 साल बीतने के बाद भी गरीब लोगों को मैला ढोने वालों के रूप में काम करने के लिए मजबूर किया जाता है. उनके पुनर्वास अधिनियम 2013 के प्रावधानों का भी पालन नहीं किया जाता है.
दिल्ली हाईकोर्ट के मुख्य न्यायाधीश सतीश चंद शर्मा और न्यायमूर्ति सुब्रमण्यम प्रसाद की खंडपीठ सीवर सफाई के दौरान मारे गए दो लोगों के परिवार को अनुकंपा नियुक्ति की याचिका पर सुनवाई कर रही थी. कोर्ट ने इस मामले में दोनों परिवारों को 10,00,000 रुपये का मुआवजा देने का निर्देश दिया था.
32 वर्षीय रोहित चांडिलिया की नौ सितंबर को सीवर साफ करते समय मौत हो गई थी. घटना में पास में तैनात एक सुरक्षा गार्ड 30 वर्षीय अशोक की भी चांडीलिया को बचाने की कोशिश में मौत हो गई थी. कोर्ट ने घटना का स्वत: संज्ञान लिया था.
वरिष्ठ अधिवक्ता राजशेखर राव मामले में न्याय मित्र के रूप में पेश हुए और उन्होंने पीठ को सूचित किया कि डीडीए की रिपोर्ट में कहा गया है कि कर्मचारी खुद मैनहोल की सफाई कर रहा था और प्राधिकरण के किसी निर्देश के बिना. उन्होंने कहा कि रिपोर्ट के अनुसार, डीडीए को सीवेज रुकावट के संबंध में एक शिकायत मिली थी और चांडीलिया इस मुद्दे को हल करने के लिए काम कर रहे थे.
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कोर्ट ने कहा कि इस संबंध में सुप्रीम कोर्ट पहले ही कानून बना चुका है और तत्काल मुआवजे का भुगतान किया जाना है. इसलिए पीठ ने डीडीए को परिवारों को मुआवजा देने और अनुकंपा नियुक्ति के उनके मामले पर विचार करने का निर्देश दिया. इसमें कहा गया है कि अनुकंपा नियुक्ति के संबंध में निर्णय एक महीने के भीतर न्यायालय को सूचित किया जाना है और यदि आदेश का पालन नहीं किया जाता है तो प्राधिकरण के उपाध्यक्ष सुनवाई की अगली तारीख को अदालत के समक्ष उपस्थित रहेंगे.
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