नई दिल्ली: दिल्ली हाईकोर्ट ने जुवेनाइल द्वारा किए गए अपराध की जांच कर रहे अधिकारियों को 15 दिनों के भीतर आरोपी किशोर के उम्र से संबंधित दस्तावेज प्राप्त करने और सत्यापन करने के निर्देश दिए है. यह आदेश न्यायमूर्ति सिद्धार्थ मृदुल और न्यायमूर्ति अनूप जयराम भंभानी की पीठ ने दिया है.
कोर्ट ने आदेश में शिक्षण संस्थानों के साथ-साथ सभी संबंधित अधिकारियों को भी आरोपी किशोर की उम्र के निर्धारण के लिए जांच अधिकारी का सहयोग करने को कहा है. यह निर्देश सुधार गृह में किशोरों की स्थिति को देखते हुए, साथ ही जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के कामकाज से संबंधित एक स्वत: संज्ञान मामले में पारित किए गए है.
दिल्ली हाईकोर्ट कानूनी सेवा समिति की सचिव अनु ग्रोवर बालिगा ने बताया कि आरोपी किशोर के उम्र में सत्यापन की देरी का कारण जुवेनाइल जस्टिस (केयर एंड प्रोटेक्शन ऑफ चिल्ड्रन) एक्ट में कोई निर्धारित समय सीमा नहीं होना है. साथ ही अधिकारियों द्वारा दस्तावेज तैयार करने और ऑसिफिकेशन टेस्ट करवाने में भी समय लगता है.
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मामले में न्याय मित्र वरिष्ठ अधिवक्ता एचएस फुल्का ने बताया कि जेजे अधिनियम की धारा 105 के तहत स्थापित किशोर न्याय कोष में पर्याप्त कोष उपलब्ध है, लेकिन पिछले कई वर्षों में आवश्यक उद्देश्यों के लिए बहुत कम कोष को वितरित किया गया है. साथ ही उन्होंने कहा कि दिल्ली के लिए ग्यारह जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड स्थापित करने का प्रस्ताव था, लेकिन उनमें से केवल छह ही क्रियाशील हो पाए हैं, जबकि इसमें ग्यारह न्यायिक जिले हैं.
गौरतलब है कि अदालत ने इसी मामले की सुनवाई करते हुए पहले सरकार को छोटे अपराधों के लिए किशोरों के खिलाफ एक साल से अधिक समय से चल रही सभी जांचों को समाप्त करने का निर्देश दिया था. इसने विभिन्न जुवेनाइल जस्टिस बोर्ड के समक्ष छह महीने से एक साल के बीच लंबित पूछताछ का विवरण भी मांगा था.
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