नई दिल्ली: कोरोना वायरस से लड़ाई में अपनी जान की भी परवाह किए बिना फ्रंट लाइन पर खड़े होकर पिछले ढ़ाई महीने से देश को बचाने वाले कोरोना वॉरियर्स नई क्वारंटाइन गाइडलाइन से खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं. ऐसे में उनकी हताशा और नाराजगी दोनों ही बढ़ती जा रही है, जो लड़ाई को जीतने के लिए अच्छा संकेत नहीं है.
ना घर के रहे और ना ही घाट के
'दिल्ली स्टेट कॉन्ट्रैक्ट इंप्लाइज एसोसिएशन' के महासचिव गुलाब रब्बानी बताते हैं कि इस गाइडलाइन के बाद कोविड में काम कर रहे स्वास्थ्यकर्मियों की स्थिति धोबी के कुत्ते जैसी हो गई है. सरकार अब क्वारंटाइन करेगी नहीं और समाज उन्हें अपनाएगा नहीं. वे जिस मोहल्ले में रहते हैं वहां कोई उनके और उनके परिवार से बात भी नहीं करेगा. वहीं उनके घर जाने की वजह से उनके परिजनों के लिए संक्रमण का जो खतरा भी बढ़ेगा.
अधिकारी खुद पर क्यों नहीं करते अमल
गुलाब रब्बानी का कहना है कि नई गाइडलाइन के अनुसार पीपीई किट के बाद अगर क्वारंटाइन की जरूरत नहीं है तो फिर सरकार में बैठे आला अधिकारी और मंत्रीगण खुद क्यों नहीं किट पहनकर कोविड अस्पतालों में आकर व्यवस्था संभाल रहे हैं. उन्हें अब ये डर भी सताने लगा है कि कहीं आगे चलकर सरकार मृत्यु के बाद दिए जाने वाले एक करोड़ रुपये के मुआवजे को भी खत्म न कर दें.