नई दिल्ली: द एनर्जी एंड रिसर्च इंस्टीट्यूट की स्टडी कहती है कि राजधानी दिल्ली में सालभर के प्रदूषण में सबसे अधिक 30 फीसदी प्रदूषण इंडस्ट्री और फिर 28 फीसदी वाहनों से होता है. इसमें भी पराली जलने के सीजन में पराली की 40 फीसदी तो वाहनों की 18 फीसदी हिस्सेदारी होती है. पूरे साल के प्रदूषण के स्तर की तुलना में पराली के समय प्रदूषण खतरनाक श्रेणी में भी पहुंच जाता है. हालांकि इसमें भी साफ है कि राजधानी में वाहन भी बड़े स्तर के प्रदूषण के लिए ज़िम्मेदार हैं.
इसे भी पढ़े:अलीपुर: वैज्ञानिकों ने किया हिरणकी में खेतों का दौरा, पराली समस्या पर किया गया था केमिकल छिड़काव
इसे भी पढ़ें: पराली के लिए पड़ोसी राज्यों के पास नहीं कोई समाधान : आप
उधर मामले में राजनीतिक दल भी सरकार से सवाल पूछ रहे हैं. भाजपा के प्रवक्ता हरीश खुराना कहते हैं कि सरकार ने पुरानी गाड़ियों को स्क्रेप करना शुरू कर दिया है, लेकिन लोगों की गाड़ियों को जब्त करने से बेहतर होगा कि परिवहन व्यवस्था को दुरुस्त किया जाए. लोग गाड़ी से नहीं जाएंगे तो बस देखेंगे और बस आपके पास नहीं है.
वहीं, दिल्ली सरकार जो विंटर एक्शन प्लान लागू करने जा रही है, उसमें परिवहन को लेकर बिंदु तो हैं, लेकिन परिवहन व्यवस्था की मूल जरूरत बसों की समस्या का सरकार के पास कोई त्वरित समाधान नहीं है. सरकार ने पराली को लेकर तैयारी शुरू कर दी है और बड़े स्तर पर इसे प्रमोट भी किया जा रहा है. हालांकि सवाल बनता है कि दिल्ली को वाहनों के प्रदूषण से कौन बचाएगा.