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पश्चिम बंगाल में राजनीतिक जासूसी, कितनी सच्चाई ?

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Published : Jul 30, 2021, 6:24 PM IST

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सीएम ममता और भाजपा नेता दिलीप घोष

पेगासस जासूसी मामले में प. बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी केंद्र पर विपक्षी नेताओं की जासूसी के आरोप लगाए हैं. लेकिन भाजपा ने उलटे ममता सरकार पर ही अपने विरोधियों की जासूसी के आरोप लगा डाले. पार्टी ने कहा कि क्या वह बता सकती हैं कि उनके कार्यकाल के दौरान कितने पुलिस अधिकारी इजरायल के दौरे पर गए हैं. क्या वहां से जासूसी उपकरण खरीदे गए हैं या नहीं ?

कोलकाता : पेगासस जासूसी मामले को लेकर देशभर में जारी बहस के बीच पूर्व नौकरशाहों ने रेखांकित किया कि देश में अधिकृत तरीके से फोन टैपिंग की अनुमति है, लेकिन नेताओं पर जासूसी करने का कोई आरोप इस राज्य में अब तक साबित नहीं हुआ है.

पूर्व पुलिस महानिदेशक (डीजीपी), मुख्य सचिवों और गृह सचिवों ने सहमति जताई की कि राज्य में समय-समय पर राजनीतिक जासूसी के आरोप लगते रहे हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने भी कई मौकों पर दावा किया कि उनके फोन टैप किए जा रहे थे. पूर्व अधिकारियों ने कहा कि इनमें से कोई भी मामला अब तक तार्किक अंजाम तक नहीं पहुंच पाया है.

तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के राष्ट्रीय महासचिव अभिषेक बनर्जी और पार्टी के चुनावी रणनीतिकार प्रशांत किशोर के फोन कथित तौर पर पेगासस सूची में शामिल होने के साथ, राज्य में विवाद फिर से शुरू हो गया है. मुख्यमंत्री ने जासूसी के आरोपों की जांच के लिए दो सदस्यीय जांच पैनल का गठन किया है. इससे पहले, 2011 में सत्ता में आने के बाद बनर्जी ने पूर्ववर्ती वाम मोर्चा सरकार के कार्यकाल के दौरान फोन टैपिंग के आरोपों की इसी तरह की जांच का आदेश दिया था. हालांकि जांच रिपोर्ट को कभी सार्वजनिक नहीं किया गया.

पश्चिम बंगाल के पूर्व डीजीपी भूपिंदर सिंह ने कहा कि अपराधियों और संदिग्ध आतंकवादियों की निगरानी करने के लिए फोन टैपिंग करना एक सामान्य घटना है, लेकिन नेताओं की जासूसी एक जटिल मामला है तथा इस तरह के आरोपों को साबित करने के लिए अब तक सबूत नहीं मिला है. सिंह ने 2009-2010 में माओवादी उग्रवाद के चरम दिनों में पुलिस बल का नेतृत्व किया था.

उन्होंने कहा कि उनके कार्यकाल के दौरान, आम तौर पर अपराधियों, माओवादी नेताओं और संदिग्ध आतंकवादियों के टेलीफोन या मोबाइल फोन टैप हुआ करते थे. उन्होंने कहा कि इसकी प्रक्रिया के लिए निर्धारित दिशा-निर्देश हैं... अनुमति लेनी पड़ती है और फोन केवल एक निश्चित अवधि के लिए ही टैप किया जा सकता है. राज्य स्तर पर गृह सचिव से लिखित सहमति लेने के बाद फोन टैपिंग की जाती है.

उन्होंने दावा किया कि माओवादी नेता कोटेश्वर राव उर्फ किशनजी का फोन टैप करने से कई सफलताएं मिलीं और सुरक्षा एजेंसियों को माओवादी खतरे के खिलाफ एक मजबूत लड़ाई में मदद मिली.

यह पूछे जाने पर कि क्या नेताओं के फोन बिना आधिकारिक सूचना या मंजूरी के टैप किए जा सकते हैं, सिंह ने कहा, 'आप पुलिस बल या सरकार को दोष नहीं दे सकते हैं यदि एक प्रणाली के भीतर कोई असमाजिक तत्व व्यक्तिगत कारणों से कुछ अवैध काम कर रहा है. हम टैपिंग के लिए किसी नंबर की सिफारिश करने से पहले पुष्टि कर लेते थे.'

सिंह से सहमति व्यक्ति करते हुए पूर्व मुख्य सचिव अर्धेंदु सेन ने कहा कि आपराधिक जांच के प्रभारी पुलिस अधिकारी फोन तक पहुंच के लिए अनुरोध कर सकते हैं अगर उन्हें लगता है कि इससे उनकी जांच में मदद मिल सकती है. सेन ने कहा कि इन अनुरोधों को राज्य या केंद्र सरकार के गृह सचिव द्वारा अनुमोदित किया जाता है जो अपनी सहमति देने से पहले इस तरह की सतर्कता के महत्व का आकलन करते हैं.

नेताओं के फोन टैपिंग के आरोपों के बारे में पूछे जाने पर सेन ने कहा कि यह तभी संभव है जब कोई 'गृह सचिव अपने कर्तव्य में लापरवाही करे.'

उन्होंने कहा, 'यह सच है कि ममता बनर्जी ने अक्सर आरोप लगाया कि वाम मोर्चे के शासन के दौरान उनका फोन टैप किया गया था. लेकिन, यह भी सच है कि पिछले दस वर्षों में वह इस मामले में कोई सबूत पेश नहीं कर सकीं.'

विडंबना यह है कि टीएमसी सरकार के पहले दो कार्यकालों के दौरान राजनीतिक प्रतिद्वंद्वियों और पत्रकारों ने भी सत्तारूढ़ सरकार पर निगरानी के आरोप लगाए. जिन श्रेणियों के तहत फोन टैप किया जाता है, उसका जिक्र करते हुए, वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों ने कहा कि व्यक्ति को निगरानी में रखा जा सकता है यदि वह राष्ट्रीय सुरक्षा के लिए खतरा है, उसकी आपराधिक पृष्ठभूमि या माओवादियों से जुड़ाव या गैरकानूनी गतिविधियां रोकथाम कानून (यूएपीए) के तहत मामले हैं.

एक पूर्व राज्य गृह सचिव, जिन्हें बाद में मुख्य सचिव के पद पर पदोन्नत किया गया था, ने कहा, 'किसी खास नंबर को टैप करने के लिए मंजूरी मिलने में करीब एक महीने का समय लगता है. हर महीने, यह निर्धारित करने के लिए एक ऑडिट होता है कि क्या जासूसी जारी रहनी चाहिए. यदि कोई पुख्ता सबूत नहीं मिलते हैं तो टैपिंग तुरंत रोक दी जाती है.'

हालांकि, सेवानिवृत्त अधिकारी ने सहमति व्यक्त की कि कुछ अधिकारियों द्वारा अवैध रूप से टैपिंग के उदाहरण हो सकते हैं, 'लेकिन यह गैरकानूनी है, और अगर यह साबित हो जाता है तो यह एक दंडनीय अपराध है.'

कोलकाता के पूर्व पुलिस आयुक्त गौतम मोहन चक्रवर्ती ने कहा कि कोई भी राजनीतिक जासूसी के आरोपों पर प्रकाश नहीं डाल पाएगा, क्योंकि 'नेताओं के फोन टैप करना' अवैध है. उन्होंने कहा, ' जो वैध है मैं उस पर टिप्पणी कर सकता हूं अवैध गतिविधि पर नहीं.'

टीएमसी के प्रदेश महासचिव कुणाल घोष ने कहा, 'यह सच है कि वाम मोर्चा शासन के दौरान जासूसी के आरोप लगाए गए थे. हालांकि, अधिकारी को छोड़कर कभी भी किसी नेता ने खुले तौर पर यह स्वीकार नहीं किया कि फोन पर बातचीत तक उनकी पहुंच है. मामले की जांच होनी चाहिए.'

पलटवार करते हुए भाजपा की पश्चिम बंगाल इकाई के मुख्य प्रवक्ता शमिक भट्टाचार्य ने राज्य सरकार से इस बात पर सफाई देने को कहा कि क्या जासूसी उपकरण खरीदने के लिए 'किसी भी पुलिस आयुक्त ने पिछले दस वर्षों में इजराइल का दौरा किया.'

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उन्होंने कहा, 'मुकुल रॉय ने 2017 में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) में शामिल होने के बाद आरोप लगाया था कि उनके फोन टैप किए गए. राज्य सरकार को सबसे पहले इस बात पर सफाई देनी चाहिए कि क्या कोई पुलिस आयुक्त कभी जासूसी उपकरण खरीदने के लिए इजराइल गया था?'

मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) की केंद्रीय समिति के सदस्य सुजान चक्रवर्ती ने कहा कि वाम मोर्चा शासन के दौरान फोन टैपिंग के आरोप 'पूरी तरह से निराधार' थे, और आरोपों को साबित करने के लिए अब तक कोई सबूत नहीं मिला है.

(एक्स्ट्रा इनपुट- पीटीआई से)

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