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शिवसेना का बीजेपी पर हमला- 365 दिन सिर्फ चुनाव के बारे में सोचती है

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Published : Nov 9, 2021, 9:39 AM IST

शिवसेना का बीजेपी पर हमला
शिवसेना का बीजेपी पर हमला

देश के समक्ष कई समस्याएं हैं इस पर गंभीरता से चर्चा हुई होती व प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर समापन भाषण में मार्गदर्शन किया होता तो देश के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हुआ होता. कार्यकारिणी में 'महंगाई' पर किसी ने गंभीरता से नहीं बोला.

मुंबई: शिवसेना ने अपने मुखपत्र सामना में एक बार फिर केंद्र की मोदी सरकार पर हमला बोला है. सामना के संपादकीय में शिवसेना ने भारतीय जनता पार्टी की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक को लेकर निशाना साधा है. शिवसेना ने हमला बोलते हुए कहा कि भाजपा जनता का विश्वास जीतेगी, ऐसा विचार प्रधानमंत्री मोदी ने अपनी राष्ट्रीय कार्यकारिणी में व्यक्त किया है. भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में निश्चित तौर पर क्या होगा, इस बारे में ढेरों तर्क-वितर्क चल रहे थे, परंतु पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव कैसे जीते जाएं, इस पर ही प्रमुखता से चर्चा हुई.

पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनाव जीतेंगे, मतलब जीतेंगे ही, ऐसा ही राष्ट्रीय कार्यकारिणी का सुर था. पार्टी की राष्ट्रीय बैठक में ऐसा तय हुआ कि देश में 10 लाख 40 हजार पोलिंग बूथ हैं और 25 दिसंबर तक हर बूथ स्तर पर भाजपा की कमिटी बनाई जाएगी. वहां से प्रधानमंत्री के 'मन की बात' जनता तक पहुंचाने की व्यवस्था की जाएगी. कुल मिलाकर राष्ट्रीय बैठक में राजनीति, सत्ता, मोदी के भजन-कीर्तन के अलावा कुछ भी नहीं हुआ. भाजपा हमारे देश की सबसे ज्यादा चुनावग्रस्त पार्टी है. साल के 365 दिन वे सिर्फ चुनाव के बारे में ही सोचते रहते हैं.

देश के समक्ष कई समस्याएं हैं इस पर गंभीरता से चर्चा हुई होती व प्रधानमंत्री मोदी ने इस पर समापन भाषण में मार्गदर्शन किया होता तो देश के लिए मार्गदर्शक सिद्ध हुआ होता. कार्यकारिणी में 'महंगाई' पर किसी ने गंभीरता से नहीं बोला. पेट्रोल-डीजल आज भी सौ के पार है. गैस सिलिंडर एक हजार से ऊपर पहुंच गया है. साग-सब्जी सामान्य जनता की पहुंच से दूर पहुंच गई है. खाद्य तेल ने 150 का आंकड़ा पार कर लिया है. इस पर कार्यकारिणी के किसी का भी दिल क्यों नहीं जला? राष्ट्रीय कार्यकारिणी शुरू रहने के दौरान ही ऐतिहासिक, परंतु अमानवीय नोटबंदी के पांच साल पूरे हो गए.

नोटबंदी के कारण भ्रष्टाचार नष्ट होगा, ऐसा कहा गया. काला धन वापस आएगा, अर्थव्यवस्था कैशलेस होगी, आतंकवाद खत्म हो जाएगा, ऐसा कहा गया. ये सब सच में हुआ क्या? इस पर कार्यकारिणी में पक्ष-विपक्ष में विचार-विमर्श होने में कोई हर्ज नहीं था. इस पूरे प्रकरण की वजह से जनता बेहाल हो गई है इसलिए बेहाल जनता का विश्वास भाजपा ने गवां दिया है. नोटबंदी से आतंकियों को आर्थिक रसद उपलब्ध करानेवाला मादक पदार्थों का कारोबार बंद होगा, ऐसा जोर देकर कहा गया था जबकि प्रत्यक्ष में भाजपा के कार्यकर्ता व पदाधिकारी मादक पदार्थों के कारोबार में इस तरह लगे हुए हैं, इसका पर्दाफाश मुंबई में रोज हो रहा है.

एनसीबी के सुपारीबाज अधिकारियों की टोली के साथ 'ज्वॉइंट वेंचर' करके ड्रग्स से संबंधित फर्जी मामले दर्ज करते थे. अमीरों के बच्चों को इसमें फंसाते थे और हफ्ता वसूला जाता था. ऐसा नया कारोबार भाजपा समर्थित लोगों के सहयोग से शुरू हो गया है. इसके लिए अमीरों के बच्चों का अपहरण करने तक बात पहुंच गई है. राजनीति में पैसा कमाने का यह नया धंधा शुरू हो गया है व भाजपा का हिस्सा व निवेश इस धंधे में भारी मात्रा में लगा हुआ है. ये इस तरह से राज खुलने के दौरान कोई पार्टी जनता का विश्वास कैसे जीतेगी? जो धोती में कमाया वह साड़ी में गवां दिया, ऐसा ही कुछ इस मामले में हो रहा है.

प्रधानमंत्री मोदी के अलावा भाजपा के पास चुनाव जितानेवाला चेहरा नहीं है इसलिए अन्य मोहरे बेवजह उछल-कूद न करें. सात साल में जनता का विश्वास सचमुच जीता होता तो सिर्फ 'मोदी-मोदी' करने की नौबत पार्टी पर नहीं आई होती. भाजपा किसी परिवार केंद्रित हाथ में नहीं है, ऐसा श्री मोदी ने कहा. परिवार केंद्रित होना व व्यक्ति केंद्रित होने में बहुत ज्यादा अंतर नहीं है. ये एक ही सिक्के के दो पहलू हैं. मोदी-शाह के अलावा आज भाजपा में अन्य किसी की बात सुनी जाती है क्या? राष्ट्रीय कार्यकारिणी वगैरह सब मुखौटा है.

भारतीय जनता पार्टी को आज की स्थिति तक पहुंचाने के लिए जिन्होंने उम्र गवां दी, ऐसे तमाम वरिष्ठों को आज 'मार्गदर्शक मंडल' के कोने में 'सम्मानजनक स्थान' दिया गया होगा, तब भी व्यक्ति केंद्रित और 'जय हो, जय हो' राजनीतिक व्यवस्था का ही हिस्सा है. भारतीय जनता पार्टी का विकास और तरक्की करनेवाले आडवाणी ने जिंदगी बिता दी. अटल बिहारी वाजपेयी और आडवाणी ने जनता का विश्वास सीधे रास्ते से जीता था. परिवार की सत्ता यह अलग हिस्सा है, लेकिन व्यक्ति केंद्रित सत्ता दो-चार लोगों के हाथों में होती है और वे उनका परिवार ही होते हैं. उस परिवार के आगे सत्ता की परिधि नहीं बढ़ती है.

गांधी घराना है ही, परंतु आज कौन-सा घराना सत्ता चला रहा है, क्या यह देश नहीं जानता? चुनाव के लिए पैसा आता कहां से है? केंद्रीय जांच एजेंसी किसके हुक्म पर सियासी दबाव लाती है? इस विषय को नजरअंदाज नहीं किया जा सकता है. किसानों की समस्या ने गंभीर स्वरूप धारण कर लिया है. दुनिया के इतिहास में किसानों का इतने लंबे समय तक चला आंदोलन किसी ने देखा नहीं होगा. अब तक 700 से ज्यादा किसानों ने इस आंदोलन में बलिदान दिया है, परंतु भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने इस पर दो पंक्ति का दुख व्यक्त किया होगा, ऐसा दिखा नहीं. कुत्ते की मौत पर दिल्ली के नेता शोक संदेश जारी करते हैं, परंतु किसानों के आंदोलन में इतने लोगों की मौत के बावजूद लोकसभा अथवा भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में शोक प्रस्ताव मंजूर नहीं होता है, इसे दुर्भाग्यपूर्ण ही कहना होगा.

पढ़ें: शिवसेना का मोदी सरकार पर हमला- उपचुनाव में जनता ने फोड़ा बीजेपी का ढोल

मेघालय के राज्यपाल सत्यपाल मलिक ने इस मुद्दे पर दिल्ली की सरकार के कान खींचे हैं. श्री मलिक भाजपा द्वारा नियुक्त किए गए राज्यपाल हैं, परंतु वे बेझिझक सच्चाई बोले हैं. जनता की भावना इससे अलग नहीं है. भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा ने अत्यंत राष्ट्रहित की, राष्ट्रीय सुरक्षा की, महंगाई विरोधी ऐसा विचार ताल ठोंककर व्यक्त किया, मतलब क्या? महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार को उखाड़ फेंको, ऐसा फुस्की बम उन्होंने फेंका। महाराष्ट्र की महाविकास आघाड़ी सरकार उखाड़ने की बात भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में की ही गई है इसलिए कहना है. अरुणाचल प्रदेश में 4-5 किलोमीटर तक घुसपैठ करते हुए चीन ने सौ मकानों का गांव भी बसा दिया है. चीन की यह सीधी-सीधी घुसपैठ ही है. यह गांव पहले उखाड़कर फेंको बाद में महाराष्ट्र विकास आघाड़ी उखाड़ने की बात करो. लगातार दो वर्षों में प्रयास करने के बाद भी ठाकरे सरकार मजबूत है. दूसरों को उखाड़ते-उखाड़ते एक दिन तुम ही जड़ से उखड़ तो नहीं जाओगे न? थोड़ा संभलकर!

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