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शिवसेना का मोदी सरकार पर हमला- उपचुनाव में जनता ने फोड़ा बीजेपी का ढोल

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Published : Nov 5, 2021, 1:32 PM IST

शिवसेना ने केंद्र की मोदी सरकार पर हमला बोलते हुए लिखा कि सरकार को दीपावली पर सस्ते ईंधन का गिफ्ट देना ही था तो यह निर्णय दीपावली की पूर्व संध्या पर अथवा उससे पहले क्यों नहीं लिया? उपचुनाव में पराजय का फटका और झटका लगने के बाद सरकार को होश आया.

शिवसेना
शिवसेना

मुंबई: शिवसेना ने अपने मुखपत्र 'सामना' में एक बार फिर केंद्र की मोदी सरकार पर हमला बोला है. सामना के संपादकीय में शिवसेना ने लिखा कि केंद्र सरकार ने आखिरकार पेट्रोल और डीजल पर उत्पादन शुल्क कम करने का निर्णय लिया है.

शिवसेना ने हमला बोलते हुए लिखा कि मोदी सरकार की तरफ से यह आम जनता के लिए 'दीपावली गिफ्ट' आदि है. ऐसा ढोल अब सत्ताधारी पार्टी के लोग पीट रहे हैं. 13 राज्यों के लोकसभा-विधानसभा उपचुनाव में भारतीय जनता पार्टी का ढोल मतदाताओं ने फोड़ दिया है, फिर भी उनके ढोल पीटने की ख्वाहिश कम नहीं हुई है. वास्तविकता यह है कि आज उपचुनाव की पराजय के कारण ही केंद्र सरकार को यह 'सद्बुद्धि' आई है.

सरकार को दीपावली पर सस्ते ईंधन का गिफ्ट देना ही था तो यह निर्णय दीपावली की पूर्व संध्या पर अथवा उससे पहले क्यों नहीं लिया? उपचुनाव में पराजय का फटका और झटका लगने के बाद सरकार को होश आया. भयंकर ईंधन दर वृद्धि का जो चटका आम जनता सहन कर रही है उसका खामियाजा भाजपा को भुगतना पड़ा. इसी वजह से पेट्रोल और डीजल पर से उत्पादन शुल्क में कटौती करने का निर्णय जल्दबाजी में लिया गया तथा इसको 'दीपावली गिफ्ट' का नाम दिया गया.

पेट्रोल पर उत्पादन शुल्क 5 रुपए तो डीजल पर से 10 रुपए कम किया गया है अर्थात फिर भी पेट्रोल और डीजल प्रति लीटर सौ के पार ही रहेगा. केंद्र ने कुछ हद तक जनता को राहत दी है. ये सत्य होगा तब भी इसे 'दीपावली गिफ्ट' वगैरह नहीं कहा जा सकता. इसके अलावा ईंधन की दर बहुत ज्यादा नीचे गिर गई है, ऐसा नहीं है. इस वजह से महंगाई का दावानल शांत होगा, ऐसी अपेक्षा नहीं की जा सकती है. मतलब पेट्रोल-डीजल पर खर्च कुछ मात्रा में कम होगा, लेकिन आम जनता की खाली जेब भर जाएगी, ऐसा बिल्कुल भी नहीं होगा.

असल में केंद्र को यदि सचमुच 'दीपावली गिफ्ट' देना ही था तो फिर आम जनता की खाली जेब वैसे भरेगी, बुझे हुए चूल्हे वैसे जलेंगे. सच्चाई ये है कि बीते एक-डेढ़ साल में जो 'न भूतो' ईंधन दर वृद्धि हुई है उसकी वजह से केंद्र की तिजोरी में लाखों करोड़ रुपया बढ़ा है. वैसे यह जनता के साथ की गई लूट ही है. ऐसे में आम जनता को दिलासा देना था तो समाधान कारक देना चाहिए था, परंतु उसके लिए ईंधन कर में कटौती ज्यादा करनी पड़ी होती और वो करने के लिए बड़प्पन दिखाना पड़ा होता.

सरकार ने वह मौका गंवा दिया है इसलिए ईंधन दर में कटौती होने के बाद भी हमारे दामन में क्या आया, इसका शोध जनता कर रही है और वहां इस दर कटौती के कारण एक साल में 1.4 लाख करोड़ का नुकसान हमें भुगतना होगा, ऐसा कहकर केंद्र सरकार सिसकी भर रही है. सरकार को सिसकी, आहें भरनी चाहिए, परंतु बूते से बाहर पहुंच चुकी ईंधन दर वृद्धि के कारण आसमान छूती महंगाई से आम जनता को आज तक जो नुकसान हुआ है उसका क्या? कुल मिलाकर, पहले भाव बेतहाशा बढ़ाना और फिर कुछ कम करके दिलासा, दिवाली गिफ्ट आदि बातें करना, ऐसा यह ईंधन दर में कटौती का दिखावा है.

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13 राज्यों के उपचुनाव में मतदाताओं ने 'आईना' दिखाया नहीं होता तो कदाचित केंद्र के सत्ताधारियों ने खुद को उस आईने में देखने की जहमत भी नहीं उठाई होती. ठीक है, उपचुनाव की पराजय के झटके से ही क्यों न हुआ हो सरकार जागी तो और उन्होंने ईंधन सस्ता करने का दिखावा किया ये भी कम नहीं है. परंतु इस दिखावे से जनता भ्रमित हो जाएगी और पांच राज्यों के आगामी विधानसभा चुनावों में 'मत' परिवर्तन होगा, ऐसी सरकार पक्ष की अपेक्षा होगी तो उनके भ्रम का कद्दू भी इस उपचुनाव की तरह ही फूटेगा यह निश्चित है.

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