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सर्वपितृ अमावस्या पर इस विधि से करें पितरों की विदाई, मिलेगा सुख-समृद्धि का आशीर्वाद

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Published : Sep 25, 2022, 7:59 AM IST

सर्वपितृ अमावस्या
सर्वपितृ अमावस्या

25 सितंबर को सर्वपितृ अमावस्या (Sarva Pitru Amavasya) के साथ पितृ पक्ष समाप्त हो जाएंगे. इस दिन पितरों को विशेष तरह से विदाई दी जाती है. ज्ञात और अज्ञात पितृों के पूजन के लिए भी सर्वपितृ अमावस्या का खास महत्व होता है. शास्त्रों के अनुसार सर्वपितृ अमावस्या के दिन कुछ खास कार्य जरूर करने चाहिए. इससे पितृदोष से मुक्ति मिलती है और पितरों के आशीर्वाद से जीवन में सुख-समृद्धि आती है. आइए जानते हैं कि सर्वपितृ अमावस्या के दिन क्या करना चाहिए.

वाराणसी: आश्विन कृष्णपक्ष की प्रतिपदा से अमावस्या तिथि तक पूर्वजों की आत्मशांति के लिए श्रद्धा के साथ विधि-विधानपूर्वक श्राद्ध करने की परंपरा है. आश्विन मास की अमावस्या तिथि के दिन सर्व पितृ विसर्जन करने का विधान है. इस दिन किए गए श्राद्ध से पितृगण प्रसन्न होकर जीवन में सुख-सौभाग्य व खुशहाली का आशीर्वाद देते हैं. सनातन धर्म में हिन्दू मान्यता के अनुसार मुख्य रूप से 5 ऋण माने गए हैं. प्रथम देवऋण, द्वितीय ऋषिऋण, तृतीय-पितृऋण, चतुर्थ मातृऋण, पंचम- मानवऋण इन ऋणों से मुक्ति पाने के लिए समय-समय पर विधि-विधानपूर्वक धार्मिक अनुष्ठान करते रहना चाहिए.

पौराणिक मान्यता के आधार पर मंत्र, स्तोत्र एवं पितृसूक्त का नित्य पाठ करने से पितृबाधा का शमन हो जाता है. यदि नित्य पठन संभव न हो तो प्रत्येक माह की अमावस्या तिथि के दिन अवश्य करना चाहिए. साथ ही अमावस्या तिथि के दिन अपने पूर्वजों के नाम पर श्वेत वस्त्र, दूध, चौनी, दक्षिणा किसी योग्य ब्राह्मण या किसी नजदीक मंदिर में दान कर देना चाहिए. पितृपक्ष के अमावस्या के दिन पीपल के वृक्ष की 108 परिक्रमा करने पर पितृदोष की शांति होती है. प्रत्येक शुभ व मांगलिक आयोजन पर भी पितरों को निमंत्रित कर पूजा करने की धार्मिक मान्यता है. इसके अलावा जिनकी कुंडली में पितृदोष हो उनको आज के दिन अपने पितरों से माफी मांगते हुए श्राद्धकर्म, तर्पण, ब्राह्मण भोजन करवाना चाहिए. उससे उनकी कुंडली में व्याप्त पितृ दोष का असर कम होता है.

जानकारी देते ज्योतिषविद ऋषि द्विवेदी.

प्रख्यात ज्योतिषविद ऋषि द्विवेदी ने बताया कि रविवार 25 सितंबर को सर्वपितृत्वसर्जनी अमावस्या है. आश्विन कृष्णपक्ष की अमावस्या तिथि शनिवार, 24 सितंबर को अर्द्धरात्रि के पश्चात 3 बजकर 13 मिनट पर लगेगी जो कि अगले दिन रविवार, 25 सितंबर को अर्द्धरात्रि के पश्चात 3 बजकर 25 मिनट तक रहेगी. महालया की समाप्ति रविवार, 25 सितंबर को हो जाएगी. आज अमावस्या के दिन अज्ञात तिथि (जिन परिजनों की मृत्यु तिथि मालूम न हो या जिन्होंने किसी कारणवश अपने पितरों का श्राद्ध न कर पाए हों) वालों का श्राद्ध आज रविवार, 25 सितंबर को विधि-विधानपूर्वक किया जाएगा.

पितृपक्ष में किसी कारणवश माता-पिता, दादा-दादी एवं अन्य परिजनों का श्राद्ध न कर पाए हो, उन्हें आज के दिन अमावस्या तिथि पर श्राद्ध करके पितृऋण से मुक्ति पानी चाहिए. आज अमावस्या तिथि के दिन श्राद्ध करने से अपने कुल व परिवार के सभी पितरों का श्राद्ध मान लिया जाता है. आज के दिन त्रिपिण्डी श्राद्ध करने का भी विशेष महत्व है. त्रिपिण्डी में तीन पूर्वज-पिता, दादा एवं परदादा को तीन देवताओं का स्वरूप माना गया है. पिता को वसु, दादा को रुद्र देवता तथा परदादा को आदित्य देवता के रूप में माना जाता है. श्राद्ध के समय यही तीन स्वरूप अन्य सभी पूर्वजों के प्रतिनिधि माने गए हैं.

श्राद्धकृत्य में 1, 3, 5 या 16 योग्य ब्राह्मणों को अमावस्या तिथि पर निमंत्रित करके उन्हें स्वच्छतापूर्वक भोजन करवाने की धार्मिक मान्यता है. जिसमें दूध व चावल से बने खीर अति आवश्यक है. इसके अतिरिक्त दिवंगत परिजनों, जिनका हम श्राद्ध करते हैं, उनके पसंद का सात्विक भोजन ब्राह्मण को करवाना चाहिए. ब्राह्मण को भोजन करवाने के पूर्व देवता, गाय, कुत्ता, कौआ व चींटी के लिए श्राद्ध के बने भोजन को पत्ते पर निकाल देना चाहिए, जिसे पंचबलि कर्म कहते हैं. पंचबलि कर्म में कौए के लिए निकाला गया भोजन कौओं को, कुत्तों के लिए निकाला गया भोजन कुत्तों को और शेष निकाला गया. भोजन गाय को खिलाने के पश्चात् निमंत्रित ब्राह्मण को भोजन करवाना चाहिए. श्रद्धकृत्य में लोहे का बर्तन इस्तेमाल नहीं करना चाहिए. मान्यता है कि श्राद्ध अपने ही घर पर अथवा नदी या गंगा तट पर करना चाहिए, दूसरों के घर पर किया गया श्राद्ध फलदायी नहीं होता.

पंडित ऋषि द्विवेदी ने बताया कि आज सायंकाल मुख्य द्वार पर भोज्य सामग्री रखकर दीपक जलाया जाता है. जिससे पितृगण तृप्त व प्रसन्न रहें और उन्हें जाते समय प्रकाश मिले, जो व्यक्ति विधि-विधानपूर्वक श्राद्ध करने में असमर्थ हों. उन्हें चाहिए कि प्रातःकाल स्नानादि के पश्चात् काले तिलयुक्त जल से दक्षिण दिशा की ओर मुख करके तिलांजलि देकर अपने पितरों को याद करके उनके प्रति श्रद्धा व्यक्त करनी चाहिए तथा अपने दोनों हाथ ऊपर उठाकर सूर्यादि दिक्पालों से यह कहकर कि मेरे पास धन, शक्ति एवं अन्य वस्तुओं का अभाव है, जिसके फलस्वरूप मैं श्राद्धकृत्य नहीं कर पा रहा हूं. हाथ जोड़कर श्रद्धा के साथ पितृगणों को प्रणाम करना भी पितरों की संतुष्टि मानी गई है.

पंडित ऋषि द्विवेदी का कहना है कि आजकल लोग अपनी कुंडली में पितृ दोष की बात और परेशानी लेकर आते हैं, लेकिन पितृ दोष अधिकांश कुंडलियों में देखने को मिलता है. इसकी बड़ी वजह यह है कि आपके आपके पिता या उनके पिता के द्वारा किसी भी 15 दिन के पितृपक्ष के दौरान साथ देकर वह तर्पण ना करने की वजह से पितृ दोष का असर अक्सर घर के किसी अन्य सदस्य की कुंडली में भी देखने को मिलता है. इसलिए यह उत्तम वक्त होता है जब पितृपक्ष के अंतिम दिन अश्विन अमावस्या को अपने अज्ञात पितरों की शांति और उन को प्रसन्न करने के लिए उनका तर्पण साथ किया जाता है.

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