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महाराष्ट्र में बैलगाड़ी की रेस पर लगा प्रतिबंध हटाने का फैसला का स्वागत योग्य: शिवसेना

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Published : Dec 17, 2021, 9:19 AM IST

Updated : Dec 17, 2021, 9:33 AM IST

saamana editorial on the interim order of sc in bullock cart race case
महाराष्ट्र में बैलगाड़ी की रेस पर लगा प्रतिबंध हटाने का फैसला का स्वागतयोग्य सामना

शिवसेना के मुखपत्र सामना (Shiv Sena mouthpiece Saamana ) के आज के अंक में प्रकाशित संपादकीय में महाराष्ट्र में बैलगाड़ी की रेस (bullock cart race in maharashtra ) पर लगा प्रतिबंध सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) द्वारा शर्तोें के साथ हटाने के फैसले का स्वागत किया गया है. शिवसेना ने लिखा,'बैलगाड़ी की रेस के रोमांचकारी खेल से गांवों-देहातों की खोई हुई चेतना एक बार फिर उबाल मारेगी'.

मुंबई: महाराष्ट्र में बैलगाड़ी की रेस (bullock cart race in maharashtra ) पर लगा प्रतिबंध आखिरकार हटा लिया गया है. ग्रामीण महाराष्ट्र के लिए सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court ) द्वारा दी गई यह बड़ी खुशखबरी ही है. राज्य के ग्रामीण अंचलों में बेहद लोकप्रिय माना जानेवाला यह वास्तविक रोमांचकारी खेल कई वर्षों से अदालत में विचाराधीन था. ‘पेटा’ और ‘पीपल फॉर एनिमल्स’ सहित कई अन्य पशु-प्रेमी संगठनों ने आरोप लगाया था कि इन खेलों के कारण बैलों पर अत्याचार किया जाता है. इसलिए इन खेलों पर रोक लगाने की मांग संबंधित दबाव उन्होंने केंद्र सरकार पर बनाया ही, साथ ही अदालती आदेश हासिल करके ग्रामीण अंचलों की शान माने जानेवाले बैलगाड़ियों की रेस को रुकवा दिया था.

पोला जैसे त्योहारों पर बैलों की पूजा करनेवाले और अपनी आजीविका का खयाल रखनेवाले किसानों को प्राणी मात्र पर दया का दिखावटी डोज लगाकर यह प्रतिबंध लगाया गया था. ग्रामीण परंपरा का परिचय देनेवाली इन बैलगाड़ी रेसों पर प्रतिबंध से किसानों और पशु-पालकों में भारी असंतोष निर्माण हो गया था. हालांकि, कानून को अपने हाथ में लिए बगैर, बैलगाड़ी मालिकों के संगठनों ने संवैधानिक मार्ग पर चलते हुए दबाव बढ़ाकर राज्य सरकार को प्रतिबंध के खिलाफ याचिका दायर करने के लिए मजबूर किया. देर से ही सही लेकिन आखिरकार न्याय हो ही गया. पहले उच्च न्यायालय व बाद में सुप्रीम कोर्ट में लगभग सात वर्षों तक लंबित रहे बैलों की रेस के इस पारंपरिक खेल पर लगा प्रतिबंध सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कुछ शर्तों के साथ हटा दिया.

मराठी अंचलों के इस प्राचीन खेल को अनुमति देनेवाले सुप्रीम कोर्ट के इस निर्णय को स्वागत योग्य ही कहना होगा. राज्य की महाविकास आघाड़ी सरकार के प्रयासों की यह जिस तरह से जीत है उसी तरह इसके लिए संघर्ष करनेवाले बैलगाड़ी मालिकों के संगठन और पशु पालक किसानों की भी विजय है. राज्य सरकार ने इस निर्णय का स्वागत किया ही है, परंतु गांवों-गांवों में पटाखे फोड़कर, मिठाई बांटकर ग्रामीण जनता ने भी खुशियां मनाई. प्राणी मित्र संगठनों के दबाव के कारण बैल जैसे पालतू प्राणी को वन्य एवं संरक्षित पशुओं की सूची में घुसा दिया गया और इसी वजह से बैलगाड़ियों की रेस पर पाबंदी लगा दी गई थी.

बैलगाड़ियों की रेस के कारण बैलों को यातना दी जाती होगी तो कत्लखानों में पशुओं को गुदगुदी की जाती होगी, ऐसा प्राणी मित्रों को लगता है क्या? परंतु यही मुट्ठी भर लोग बैलगाड़ियों की रेस पर पाबंदी लगवाने में सफल हुए. मई, 2014 में बैलगाड़ियों की रेस पर बंदी का बट्टा घूमने के बाद उसके खिलाफ सबसे पहले किसी ने जंग का एलान किया तो वे शिरूर के शिवसेना के तत्कालीन सांसद शिवाजीराव आढलराव पाटील थे. राज्य सरकार, केंद्र सरकार, उच्च न्यायालय, सर्वोच्च न्यायालय इन तमाम मोर्चों पर इस संघर्ष को खड़ा करने के दौरान ही लोकसभा में भी आढलराव बैलगाड़ियों की रेस पर पाबंदी का मुद्दा लगातार उठाते रहे. इस संघर्ष के दौरान राजनीतिक जूती एक तरफ रखकर सभी पार्टी के लोगों को साथ लेकर संघर्ष किया. इससे कोई भी इंकार नहीं कर सकता है.

अब सर्वोच्च न्यायालय की तीन सदस्योंवाली पीठ द्वारा कुछ नियम एवं शर्तों के साथ पाबंदी हटाए जाने के कारण लगभग 7 वर्षों के बाद बैलगाड़ी रेस का मार्ग खुल गया है. बैलगाड़ी रेस के लिए जिला अधिकारी की अनुमति लेना, रेस की दूरी निर्धारित करना, रेस के दौरान बैलों के साथ क्रूरता अथवा यातनापूर्ण बर्ताव न करना, रेस की वीडियोग्राफी करके जिला अधिकारी को सौंपना आदि शर्तें सर्वोच्च न्यायालय ने बैलगाड़ी रेस के आयोजकों पर लगाई हैं. मतलब इन नियमों का पालन करेंगे, परंतु पाबंदी हटाकर बैलगाड़ी रेस की अनुमति दें यही तो बैलगाड़ी मालिक संगठनों की मांग थी. इसलिए सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लगाए गए नियम एवं शर्तों का पालन करते हुए महाराष्ट्र में अब एक बार फिर बैलगाड़ी की रेस की धूल उड़ेगी. तमिलनाडु में ‘जलीकट्टू’ के नाम से होनेवाले बैलों की रेस पर इसी तरह से पाबंदी लगाई गई थी, तब पूरा तमिलनाडु जल उठा था. पांच लाख तमिलों ने चेन्नई के मरीना बीच को कब्जे में ले लिया था.

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सुपरस्टार रजनीकांत से लेकर कमल हासन तक सभी ने ही जलीकट्टू के लिए अपनी ताकत दांव पर लगा दी थी. आखिरकार, तमिलनाडु सरकार ने रातों-रात अध्यादेश जारी करके राष्ट्रपति की अनुमति ली और बैलों की रेस को फिर शुरू किया. महाराष्ट्र में वैसा कुछ नहीं हुआ. एक ही देश के कुछ राज्यों में बैलों की रेस की अनुमति और महाराष्ट्र में पाबंदी? यह कौन-सा न्याय है! यह महाराष्ट्र का सवाल था ही. देर से ही क्यों न हो इसका उत्तर और योग्य समाधान हो गया है. 7 वर्षों की कानूनी लड़ाई के बाद महाराष्ट्र में बैलगाड़ी की रेस को अब सर्वोच्च न्यायालय ने अनुमति दे दी है. गांवों-गांवों में जुलूस, मेला और उत्सवों के दौरान ‘भिर्रर्रर्रऽऽऽ’ की आवाज पर दमखम वाले बैल अब फिर दौड़ेंगे. बैलगाड़ी की रेस के रोमांचकारी खेल से गांवों-देहातों की खोई हुई चेतना एक बार फिर उबाल मारेगी. सर्जा-राजा की बैलजोड़ी और किसानों की जीत है!

Last Updated :Dec 17, 2021, 9:33 AM IST
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