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शहीद-ए-आजम ने बंगाल की धरती से बनाई थी अंग्रेजी हुकूमत को हिला देने की योजना

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Published : Oct 9, 2021, 5:09 AM IST

खड़घोष
खड़घोष

साल 1928 में लालाजी की मौत का बदला लेने के बाद क्रांतिकारी भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु अंग्रेजों से बचकर पश्चिम बंगाल चले आए थे. यहां उनके अन्य एक सहयोगी बटुकेश्वर दत्त उन्हें अपने पैतृक गांव खंडघोष ले आए. जब पुलिस भगत सिंह और उनके साथियों को तलाशते हुए अविभाजित बर्दवान पहुंची, तो बटुकेश्वर ने उन्हें अंग्रेजों से बचाकर अपने पड़ोस के घर के तहखाने में ठहराया था, जहां उन्होंने संसद पर हमले की रणनीति बनाई थी. आज यह तहखाना जर्जर अवस्था में है और इस मकान के संरक्षण की मांग की जा रही है. विशेष रिपोर्ट.

कोलकाता : वर्ष 1928 में लाहौर में साइमन कमीशन का विरोध कर रहे लाला लाजपत राय की मौत का बदला लेने के लिए भगत सिंह, सुखदेव एवं राजगुरु ने कसम खाई. उन्होंने ब्रिटिश पुलिस के अफसर जॉन सांडर्स को गोली से उड़ा दिया और वे भागकर पश्चिम बंगाल के अविभाजित बर्दवान जिले के खंडघोष पहुंच गए. खंडघोष वह स्थान है जिसका आज के वक्त में महत्व केवल क्रांतिकारी शहीद-ए-आजम भगतसिंह के अन्य सहयोगी बटुकेश्वर दत्त के कारण है.

खंडघोष के उयारी गांव में बटुकेश्वर का पैतृक आवास था. सांडर्स की हत्या से बौखलाए अंग्रेजों से भगतसिंह और उनके साथियों को बचाने के लिए बटुकेश्वर ने उन्हें अपने पैतृक आवास में ठहराया. लेकिन जब सांडर्स के हत्यारों को पकड़ने के लिए पुलिस की गतिविधियां तेज हो गईं, तब बटुकेश्वर ने भगतसिंह और उनके साथियों को अपने पड़ोसी घोष के मकान के तहखाने में छिपाया. यहां वे 15 दिनों तक रहे और फिर संसद पर हमले की रणनीति बनाई. अंत में 'इंकलाब जिंदाबाद' का नारा लगाते हुए संसद में बम फेंका. इस हमले के बाद भगत सिंह, सुखदेव और राजगुरु को पुलिस ने गिरफ्तार कर लिया गया था.

बंगाल से खास रिपोर्ट

बर्दवान रेलवे स्टेशन से करीब 18 किमी दूर स्थित उयारी गांव का यह तहखाना आज जर्जर अवस्था में है. हालांकि, घर का पुराना हिस्सा रहने योग्य है. इसकी स्थापत्य शैली भी लोगों का ध्यान अपनी ओर खींचती है. घोष परिवार के सदस्य पुराने मकाने से सटे अब अन्य एक नए मकान में रहते हैं. पुरानी इमारत के प्रवेश द्वार के ठीक बाद एक बालकनी है, जहां लकड़ी के दरवाजों के साथ दो शोकेस हैं. बहरहाल, शोकेस में कॉस्मेटिक्स आइटम रखे गए हैं, लेकिन वास्तव में, यह शोकेस तहखाने तक जाने का रास्ता हुआ करता था. तहखाने में कम से कम चार से पांच लोग आसानी से छिप सकते हैं.

उयारी गांव का मकान
उयारी गांव का मकान
उयारी गांव में तहखाना
उयारी गांव में तहखाना

मकान के संरक्षण की मांग

इस मकान के मालिक सरकार को मकान के संरक्षण के लिए सौंपने को तैयार हैं. बशर्ते उन्हें मकान के बदले मुआवजा दिया जाए. वहीं, बटुकेश्वर दत्त वेलफेयर ट्रस्ट ने पहले ही बटुकेश्वर के पैतृक आवास को संग्रहालय बनाने की ओर कदम उठा लिया है.

तहखाने तक जाने का रास्ता
तहखाने तक जाने का रास्ता

घोष परिवार की सदस्य रेखा घोष के मुताबिक, तहखाना स्पष्ट रूप से दिखाई नहीं देता है. चूंकि इसका ऐतिहासिक महत्व है, इसलिए वे चाहते हैं कि राज्य सरकार मकान को अपने कब्जे में लें और संग्रहालय में तब्दील करें. बस हमें मुआवजा मिल जाए, तो हम मकान खाली कर देंगे.

बटुकेश्वर दत्त के नाम पर बने ट्रस्ट के सचिव मधुसूदन चंद्र ने बताया कि बटुकेश्वर के पैतृक आवास को पहले ही उन्होंने संग्रहालय बना लिया है. घोष परिवार के सदस्यों से भी बातचीत चल रही है. सरकार के इस मकान को अपने कब्जे में लेने के बाद मकान का संरक्षण किया जाएगा.

इतिहासकार सरबजीत जश की मानें तो भगत सिंह और उनके साथियों ने 15 दिनों तक घर के तहखाने में शरण लिया था. संसद पर हमले की योजना इसी तहखाने में बनाई गई थी. तदनुसार, भगत सिंह और उनके सहयोगियों ने रणनीति के तहत संसद में बम फेंका और बाद में खुद गिरफ्तार हुए. उसके बाद से जो भी इस गांव में आता, वह उसी तहखाने के बारे में पूछता है. यह मकान संग्रहालय बन जाए, तो इसका महत्व और भी बढ़ जाएगा. राज्य सरकार द्वारा इसे कब्जे में लेने की प्रक्रिया जारी है.

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