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शहीद ध्रुव कुंडू की शौर्य गाथा, 13 साल की उम्र में खट्टे किए अंग्रेजों के दांत

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Published : Sep 25, 2021, 5:04 AM IST

भारत को अंग्रेजों की गुलामी से आजादी दिलाने के लिए ना जाने कितने वीर सपूतों ने देश के लिए अपने प्राण न्यौछावर कर दिए. अपने जज्बे और जोश से ऐसे क्रांतिकारियों ने अंग्रेजों को घुटने टेकने पर मजबूर कर दिया. भारत को आजाद हुए 75 साल हो चुके हैं. केंद्र सरकार इसे आजादी के अमृत महोत्सव के रूप में मना रही है. कई कार्यक्रमों का भी आयोजन किया जा रहा है. 'ईटीवी भारत' अपनी विशेष पेशकश में अमर बलिदानियों के बारे में बता रहा है. इसी कड़ी में आज वीर ध्रुव कुंडू के बारे में पढ़िए जिन्होंने महज 13 साल की उम्र में अंग्रेजों के दांत खट्टे कर दिए थे.

शहीद ध्रुव कुंडू की शौर्य गाथा
शहीद ध्रुव कुंडू की शौर्य गाथा

पूर्णिया (बिहार) : सन 1942 के महात्मा गांधी के 'क्विट इंडिया मूवमेंट' के दौरान सीमांचल की सरजमीं से एक ऐसा वीर बहादुर बालक मुखर होकर निकला, जिसने अंग्रेजी हुकूमत की जड़ें पूरी तरह हिलाकर रख दीं. अपने साहस से अंग्रेजों की नाक में दम करने वाले और कोई नहीं बल्कि उस दौर के बड़े स्वतंत्रता सेनानी और पेशे से प्रख्यात चिकित्सक डॉ. किशोरी लाल कुंडू के छोटे बेटे ध्रुव कुंडू (Dhruv Kundu ) थे.

ध्रुव कुंडू बचपन से ही काफी बहादुर थे. 1942 में वो महात्मा गांधी के 'भारत छोड़ो आंदोलन' में कूद पड़े. 11 अगस्त 1942 को क्रांतिकारियों ने रजिस्ट्री ऑफिस में आग लगाकर सभी कागजात जला दिए थे. स्वतंत्रता सेनानियों की टोली ने 13 अगस्त 1942 को कटिहार नगर के सब रजिस्टार का कार्यालय को भी ध्वस्त कर दिया था. मुंसिफ कोर्ट सहित सरकारी दफ्तरों से अंग्रेजी हुकूमत के झंडे उखाड़ फेंके और भारतीय तिरंगा लहरा दिया.

शहीद ध्रुव कुंडू की शौर्य गाथा, खास रिपोर्ट

मुंसिफ कोर्ट पर तिरंगा फहराने के दौरान ध्रुव कुंडू को लगातार आगे बढ़ता देख अंग्रेज घबरा गए और उन पर गोलियां चला दीं. इनमें से एक गोली उनकी जांघ में जा लगी. आनन-फानन में उन्हें इलाज के लिए पूर्णिया सदर अस्पताल लाया गया, लेकिन 15 अगस्त 1942 को सुबह होते ही उन्होंने महज 13 साल की उम्र में ही दुनिया को अलविदा कह दिया. ध्रुव कुंडू सबसे कम उम्र में मातृभूमि के लिए प्राण न्योछावर करने वाले स्वतंत्रता सेनानियों में से एक हैं.

ध्रुव कुंडू स्मारक निर्माण मूवमेंट के प्रमुख गौतम वर्मा ने बताया कि ध्रुव कुंडू एक क्रांतिकारी बालक था. देश के लिए जो जज्बा होना चाहिए, जो जुनून होना चाहिए, मातृभूमि के लिए जो समर्पण होना चाहिए, वो इस बालक में दिखा. इसने दिखा दिया कि उम्र कोई मोहताज नहीं है. अंदर में काबिलियत होनी चाहिए, जज्बा होना चाहिए और देश के प्रति मातृ प्रेम होना चाहिए.

तिरंगा फहराने के लिए बढ़ते रहे कदम

साहित्यकार व समाजसेवी भोला नाथ आलोक का कहना है कि एक 13 साल का बच्चा स्कूल जा रहा था, लेकिन उसके मन में अनुमंडल कार्यालय कटिहार के दफ्तर पर तिरंगा झंडा फहराने का विचार चल रहा था. घर से मां को कहकर निकला कि पढ़ने जा रहा हूं. रास्ते में किसी साथी को साथ लेकर गया और झंडे को लेकर आगे बढ़ता गया. उस समय कटिहार के एसडीओ मुखर्जी थे. उन्होंने चेतावनी दी लौट जाओ, लेकिन वो आगे बढ़ता गया. मुखर्जी चेतावनी देता रहा, लेकिन ये माना नहीं. जब ये करीब आया तो मुखर्जी का पिस्टल गरजा और ये लड़का वहीं शहीद हो गया.

वरिष्ठ अधिवक्ता व सोशल एक्टिविस्ट गौतम वर्मा का कहना है कि जो आंदोलन 1942 में छिड़ा और वो छोटा सा बालक जिसके अंदर जो जज्बा होना चाहिए, जो जुनून होना चाहिए, देश को आजादी दिलाने के लिए उसका खून खौला उससे कई लोगों को प्रेरणा मिली. देश में सबसे कम उम्र में उस बालक ने अपनी शहादत देने का काम किया.

रंगकर्मी शिवाजी का कहना है कि ध्रुव कुंडू हमारे लिए भगत सिंह की तरह हैं. भगत सिंह ने जिस तरह से देश के लिए प्राण न्यौछावर कर दिए, हमारे लिए ध्रुव कुंडू भगत सिंह से कम नहीं हैं. हम युवाओं के लिए वो प्रेरणा स्रोत हैं.

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'हजारों साल नर्गिस अपनी बेनूरी पे रोती है, बड़ी मुश्किल से होता है चमन में दीदावर पैदा'...कम उम्र में मातृभूमि की आजादी के लिए अपनी जान कुर्बान करने वाले ऐसे वीर सपूत पर देश को नाज है. भारत की आजादी के 75वें साल पर 'ईटीवी भारत' भी शहीद ध्रुव कुंडू को नमन करता है.

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