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Independence Day 2023 : 'भारत छोड़ो आंदोलन' इस तरह बना आजादी की अंतिम लड़ाई

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Published : Aug 9, 2023, 6:42 AM IST

हर साल आज के दिन को 'अगस्त क्रांति दिवस' के तौर पर मनाया जाता है. इस दिन कई क्रांतिकारियों ने देश को आजाद कराने में अपने प्राणों की आहूति दी थी. इस दौरान बापू की ओर से स्वतंत्रता के लिए दी गई शिक्षाओं को भी याद किया जाता है. इस साल हम 'भारत छोड़ो' की 79वीं वर्षगांठ मना रहे हैं, यह आंदोलन कैसे आजादी की अंतिम लड़ाई बना, आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में....

Independence Day 2023
भारत छोड़ो आंदोलन

हैदराबाद : 1940 के दशक आते-आते पूरे देश में ब्रितानी शासन के खिलाफ लोग पूरी तरह से आक्रोशित हो चुके थे. देश के भीतर कई संगठन, नेता, क्रांतिकारी लगातार अपने-अपने तरीके से आजादी के लिए आंदोलन कर रहे थे. लेकिन इन सबों के बीच एक सामूहिक आंदोलन जरूरी हो गया था. 1942 में आखिरकार वह समय आ गया जब अंग्रेजी हुकूमत के खिलाफ एक साथ बड़ा आंदोलन शुरू हुआ, जिसे 'भारत छोड़ो आंदोलन' के नाम से हम सभी जानते हैं. यह आंदोलन अंग्रेजी शासन के खिलाफ आखिरी ताबूत की कील साबित हुई और अंततः भारत के लोगों की मेहनत रंग लाई और देश आजाद हुआ.

जगह मुंबई स्थित गोवालिया टैंक मैदान. सन् 1942, तारीख 9 अगस्त, शाम का समय था. बड़ी संख्या में लोग मौके पर जुटे थे. मोहन दास करमचंद गांधी, जिसे हम सभी बापू, महात्मा गांधी, गांधी, राष्ट्रपिता सहित कई नाम से जानते हैं, आजादी के दीवानों को संबोधित कर रहे थे. हर लोग नजरें मंच की ओर टिकाये हुए थे और गंभीर होकर कान लगाकर भाषण सुन रहे थे. इस बीच महात्मा गंधी ने अंग्रेजों को ललकारते हुए वहां मौजूद भीड़ की ओर इशारा करते हुए अपने हाथ उठाते हु्ए कहा करो या मरो, करेंगे या मरेंगे. इस दौरान उन्होंने कहा नारा दिया भारत छोड़ो- जिसे अंग्रेजों भारत छोड़ो के रूप में आजादी के दिवानों ने खूब इस्तेमाल किया.

मुंबई के गोवालिया टैंक मैदान में एक तरफ सूरज डूब रहा था, दूसरी तरफ अंग्रेजों भारत छोड़ो के नारे बुलंद हो रहे थे. वहां निकलने वाले हर रास्ते पर यही नारा दोहराजा जा रहा था. आगे चलकर यह नारे देश के हर कोने में लगाया जाने लगा. इसके बाद पूरे देश में अंग्रेजी शासन के खिलाफ विरोध-प्रदर्शन, सरकारी दफ्तरों, रेल, डाक, संचार सेवा पर हमले बढ़ गये. युवा-बुजुर्ग सभी अपने स्तर से स्कूल-कालेज का बहिष्कार करने लगे. विरोध को दबाने के लिए अंग्रेजी हुकूमुत ने हर से दमनात्मक कार्रवाई में जुट गई. बड़े-बड़े नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. देश में आपातकाल जैसे हालात पैदा किये गये. मीडिया पर प्रतिबंध लगा दिया गया. जहां भी आंदोलन तेज होने लगते वहां कर्फ्यू लगा दिया जाता. शांतिपूर्ण विरोध-प्रदर्श हो या हड़ताल सभी पर रोक लगा दिया गया. इसके बाद भी आंदोलन थमने का नाम नहीं ले रहा था. जहां भी विरोध हो रहे थे, वहां ब्रतानी हुकूनत निर्ममता से लाठी-गोली से आंदोलन को कुचलने में लगी थी.

बॉम्बे सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन की पड़ी थी नींव
8 अगस्त 1942 को महात्मा गांधी और अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी (एआईसीसी) ने बॉम्बे सत्र में भारत छोड़ो आंदोलन या भारत छोड़ो आंदोलन शुरू किया. भारत छोड़ो आंदोलन अगस्त में शुरू किया गया था, इस कारण से इसे अगस्त आंदोलन के नाम से भी जाना जाता है. अगस्त क्रांति. यह भारत में ब्रिटिश शासन को समाप्त करने के लिए शुरू किया गया एक सविनय अवज्ञा आंदोलन था, गांधी जी ने अपने भाषण में देश से 'करो या मरो' का आह्वान किया. यह आन्दोलन 9 अगस्त 1942 को प्रारम्भ हुआ. इसके बाद अंग्रेजों ने जवाबी कार्रवाई करते हुए महात्मा गांधी सहित सभी प्रमुख नेताओं को गिरफ्तार कर लिया.

आंदोलन की प्रमुख वहज
आजादी के आखिरी आंदोलन के पीछे एक खास वजह थी. द्वितीय विश्व युद्ध शुरू होने पर अंग्रेजों ने भारत को आजादी देने के बदले में भारत का समर्थन मांगा था. भारत से समर्थन लेने के बाद भी जब अंग्रेजों ने अपना वादा नहीं निभाया. इसके बाद भारत को स्वतंत्र कराने के लिए महात्मा गांधी ने अंग्रेजों के खिलाफ आखिरी युद्ध की घोषणा की. इस घोषणा से ब्रिटिश सरकार में दहशत का माहौल पैदा हो गया और उनकी ओर से आंदोलन को दबाने के लिए कई कदम उठाये गये.

अगस्त क्रांति मैदान
मध्य मुंबई में स्थित गोवालिया टैंक मैदान है, जिसे अगस्त क्रांति मैदान के नाम से भी जाना जाता है. अगस्त क्रांति मैदान, एक ऐतिहासिक रूप से महत्वपूर्ण पार्क है. यह वह स्थान है जहां महात्मा थे अपना भाषण दिया जिससे भारत छोड़ो आंदोलन की शुरुआत हुई.

अगस्त क्रांति मैदान में महात्मा गांधी के भाषण के कुछ प्रमुख अंश

  1. "यहां एक मंत्र है, एक छोटा मंत्र जो मैं आपको देता हूं. आप इसे अपने दिलों पर अंकित कर सकते हैं. आपकी हर सांस इसकी अभिव्यक्ति देती है. मंत्र है: 'करो या मरो'. हम या तो मुक्त हो जायेंगे. भारत या प्रयास में मरो; हम अपनी गुलामी को कायम रहने को देखने के लिए जीवित नहीं रहेंगे.”
  2. "सत्याग्रह में धोखाधड़ी या झूठ या किसी भी प्रकार के असत्य के लिए कोई जगह नहीं है. धोखाधड़ी और आज संसार में असत्य का बोलबाला है. मैं ऐसी स्थिति का असहाय गवाह नहीं बन सकता."
  3. "हमारी लड़ाई सत्ता के लिए नहीं है, बल्कि भारत की आजादी के लिए पूरी तरह अहिंसक लड़ाई है."
  4. "स्वतंत्रता का एक अहिंसक सैनिक अपने लिए किसी चीज का लालच नहीं करेगा, वह केवल अपने देश की आजादी के लिए लड़ता है.
  5. "अकेला सत्य ही टिकेगा, बाकी सब समय के ज्वार में हमेशा बह जायेंगे."
  6. "आपको पूरी दुनिया के खिलाफ खड़ा होना होगा, हालांकि आपको अकेले खड़ा होना पड़ सकता है. आप. पूरी दुनिया का मुंह ताकना होगा, भले ही दुनिया आपकी तरफ घूरकर देखे. लाल आंखें दिखाये, डरना मत. अपने दिल में रहने वाली छोटी आवाज पर भरोसा करें."
  7. “दोस्तों, पत्नी और सभी को त्याग दो; परन्तु उस बात की गवाही दो जिसके लिए तुम जीए हो और जिसके लिए तुम्हें मरना होगा. मैं अपने जीवन का पूरा समय जीना चाहता हूं. और मेरे लिए मैंने अपना जीवन काल 120 वर्ष निर्धारित किया है. उस समय तक भारत आजाद हो जाएगा, दुनिया आजाद हो जाएगी.”
  8. "मैं पूर्ण स्वतंत्रता से कम किसी भी चीज से संतुष्ट नहीं होने वाला हूं. हो सकता है, वह (वायसराय) नमक कर, समाप्त करने का प्रस्ताव रखें. लेकिन मैं इससे कम कुछ नहीं कहूंगा. स्वतंत्रता सबसे बढ़कर है. प्रत्येक भारतीय स्वयं को एक स्वतंत्र व्यक्ति समझें."
  9. "हर कोई अपना स्वामी स्वयं होगा. ऐसे लोकतंत्र के लिए संघर्ष में शामिल होने के लिए मैं सबों को आमंत्रित करता हूं. एक बार जब आपको इसका एहसास हो जाएगा तो आप हिंदुओं-मुसलमानों के बीच के मतभेदों को भूल जाएंगे. अपने आप को केवल भारतीय ही समझें और साझा संघर्ष में लगे रहें."

भारत छोड़ो आंदोलन की विफलता:

भारत छोड़ो आंदोलन का जवाब अंग्रेजों ने दिया. महात्मा गांधी, जवाहरलाल नेहरू और सहित लगभग पूरे कांग्रेस नेतृत्व को जेल में डाल दिया गया. वल्लभभाई पटेल पर बिना कोई मुकदमा चलाए कैद में रखा गया. इसके अलावा अधिकांश बड़े नेताओं को द्वितीय विश्व के अंत तक वहीं रखा गया.

इसके अलावा, कांग्रेस को एक गैरकानूनी संघ और उसके कार्यालयों के रूप में घोषित किया गया था. देश भर में छापे मारे गए और उनके धन को जब्त कर लिया गया. प्रमुख नेताओं की गिरफ्तारी और छापे मारने के साथ भारत छोड़ो आंदोलन हिंसक हो गया था. बड़े पैमाने पर तोड़फोड़ जैसे सरकारी इमारतों और उनमें आग लगाना. कमजोर समन्वय और स्पष्ट कार्रवाई की कमी के कारण योजना के अनुसार, 1943 तक आंदोलन खत्म हो गया और मित्र देशों के युद्ध प्रयास पर अधिक प्रभाव डालने में विफल रहा.

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