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Uttarakhand: बचानी होगी 200 साल पुरानी ये विरासत, आज इस वृक्ष को 'रक्षा' की जरूरत

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Published : Jul 10, 2022, 7:57 PM IST

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200 साल पुरानी ये विरासत

देहरादून में 200 साल पुराने पीपल के पेड़ के प्रत्यारोपण के लिए आर्थिक मदद की दरकार है. पेड़ निजी भूमि पर है, इसलिए वन विभाग पेड़ को काटने की मंजूरी देने जा रहा है. वहीं, द अर्थ एंड क्लाइमेट इनीशिएटिव संस्था पेड़ को बचाने के लिए आगे आया है. लेकिन पेड़ को बचाने के लिए 2 लाख रुपए जुटाना संस्था के लिए परेशानी का सबब बना हुआ है.

देहरादूनः राजधानी देहरादून के कई पर्यावरण प्रेमियों में इन दिनों एक अजीब सी बेचैनी है. डर उस विशाल वृक्ष को खोने का है, जिसके लिए पिछले कई दिनों से यह लोग सोशल प्लेटफार्म पर अभियान छेड़े हुए हैं. दरअसल, बात देहरादून के डिफेंस कॉलोनी स्थित उस पीपल के पेड़ की है, जिसे वन विभाग काटने की मंजूरी देने जा रहा है. लेकिन, पर्यावरण प्रेमी पीपल के पेड़ पर आरियां नहीं चलने देना चाहते हैं और इसके लिए इन्होंने इस वृक्ष को ट्रांसप्लांट करने की कोशिशें शुरू कर दी हैं.

देहरादून के डिफेंस कॉलोनी स्थित 200 साल पुराने पीपल के पेड़ को जीवित रहने के लिए इंसानों से आर्थिक मदद की दरकार है. दरअसल, वृक्ष को वन विभाग निजी भूमि में होने के कारण काटने की मंजूरी देने जा रहा है. जैसे ही यह खबर सोशल मीडिया पर आई और इस वृक्ष के महत्व को बयां किया गया, वैसे ही पर्यावरण प्रेमियों ने इस वृक्ष को बचाने की कोशिशें शुरू कर दी हैं. द अर्थ एंड क्लाइमेट इनीशिएटिव संगठन की तरफ से पीपल के पेड़ को ट्रांसप्लांट करने का प्लान तैयार किया गया है. इसके लिए हैदराबाद की वटा फाउंडेशन (Vata Foundation Hyderabad) का सहयोग लिया जा रहा है.

आज इस वृक्ष को 'रक्षा' की जरूरत.
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द अर्थ एंड क्लाइमेट इनीशिएटिव संस्थाः द अर्थ एंड क्लाइमेट इनीशिएटिव संगठन की तरफ से अब तक 4 वृक्षों के ट्रांसप्लांट का काम किया गया है. उधर हैदराबाद की वटा फाउंडेशन भी अब तक 3 हजार पेड़ ट्रांसप्लांट कर चुकी है. द अर्थ एंड क्लाइमेट इनीशिएटिव संगठन की फाउंडर डॉ. आंचल शर्मा का कहना है कि उनके और उनके साथियों की तरफ से स्थानीय लोगों की मदद से आर्थिक मदद जुटाई जा रही है. उन्होंने अपील की कि लोग पीपल के पेड़ को बचाने के लिए आगे आएं और इस काम में मदद करें.

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बचानी होगी 200 साल पुरानी ये विरासत

200 साल पुराना है पीपल का पेड़ः संगठन का कहना है कि यह वृक्ष करीब 200 साल पुराना है और 40 फीट ऊंचे इस पेड़ को शिफ्ट करने के लिए कई मशीनों और मजदूरों की जरूरत होगी. इसके लिए जेसीबी, पोकलैंड और ट्राइलर जैसी मशीनों का उपयोग किया जाएगा. यही नहीं, इस वृक्ष के पास लगे पोल को नुकसान ना पहुंचे इसके लिए ऊर्जा विभाग से भी मदद की दरकार होगी. फिलहाल इस वृक्ष को ट्रांसप्लांट करने के लिए पास में ही करीब 200 मीटर पर एक जगह को चिन्हित कर लिया गया है. उधर सोशल प्लेटफॉर्म से लोगों से मांगी जा रही मदद के जरिए अब तक 17 हजार रुपए जुटाए जा चुके हैं. हालांकि, इस के लिए 2 लाख रुपए की जरूरत है.
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स्थानीय बुजुर्ग बचाना चाहते हैं विरासत: देहरादून का ये पेड़ कितना पुराना है इसकी जानकारी लगाने के लिए संस्था की अध्यक्ष डॉक्टर आंचल ने सहयोग जुटाने के लिए स्थानीय लोगों से बातचीत की. पेड़ जिस भूमि पर है उसके पास ही रहने वाली एक 80 वर्षीय बुजुर्ग महिला से जब उन्होंने इस पेड़ के बारे में पूछा तो उन्होंने बताया कि इस पेड़ को वो उनके बचपन से देखती आई हैं. उनके दादा ने भी इस पेड़ के उस दौरान होने की बात कही थी. इतना ही नहीं, आसपास रहने वाले कई उम्रदार्ज लोग भी इस पेड़ को बचपन से देखते आ रहे हैं. अब जब इस पेड़ को काटे जाने की बात सामने आई है तो सभी बेहद दुखी हैं और चाहते हैं कि उनकी ये विरासत किसी तरह बचा ली जाए.

धार्मिक और वैज्ञानिक मान्यताएंः जिस पीपल के पेड़ के ट्रांसप्लांटेशन की बात कही जा रही है उसका अपना एक धार्मिक महत्व भी है. इस वृक्ष की सालों साल से स्थानीय लोग पूजा करते हैं और धार्मिक कर्मकांड का निर्वहन भी करते हैं. धार्मिक रूप से माना जाता है कि पीपल का वृक्ष बेहद शुद्ध और पूजनीय होता है. पीपल के पेड़ में देवताओं का वास माना जाता है. माना जाता है कि पीपल की जड़ में ब्रह्मा जी, तने में भगवान विष्णु और सबसे ऊपरी भाग में शिव का वास होता है जबकि इसकी पूजा करने से कष्ट दूर होते हैं और काम में सफलता भी मिलती है. पीपल के पेड़ को लेकर वैज्ञानिक महत्व भी माना जाता है. बताया जाता है कि पीपल का पेड़ 24 घंटे ऑक्सीजन छोड़ता है, जो पर्यावरण और इंसानों समेत जीवन के लिए महत्वपूर्ण है.

उधर, वन विभाग की तरफ से इस पीपल के पेड़ को लेकर पर्यावरण प्रेमियों के आगे आने के बाद कुछ समय दिया गया है. देहरादून प्रभागीय वनाधिकारी नीतीश मणि त्रिपाठी ने बताया कि वृक्ष को बचाने के लिए पर्यावरण प्रेमियों की तरफ से आग्रह किया गया था, जिसे मान लिया गया है. उम्मीद की जा रही है कि निश्चित समय सीमा में इस वृक्ष का ट्रांसप्लांटेशन हो सकेगा. फिलहाल पर्यावरण प्रेमियों, स्थानीय लोगों की निगाहें उस आर्थिक मदद पर है जिसके जरिए इस पेड़ को जीवित बचाया जा सकेगा. हालांकि, अब तक का रिस्पांस बहुत अच्छा नहीं रहा है. लेकिन पर्यावरण प्रेमी मानते हैं कि जैसे-जैसे यह अभियान आगे बढ़ेगा लोग इस वृक्ष को बचाने के लिए जरूर आगे आएंगे.

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