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नमामि गंगे योजना की हकीकत, नहाने लायक भी नहीं रह गई गंगा, BHU वैज्ञानिकों ने जताई चिंता, पढ़िए डिटेल

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 3, 2023, 6:07 PM IST

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वाराणसी में भगवान शिव की गंगा मैली (NGT Ganga Pollution Report) हो गई है. गंदगी और उपेक्षा का आलम यह है कि गंगा का पानी नहाने योग्य भी नहीं रह गया है. वैज्ञानिकों ने भी इस पर अपनी चिंता जाहिर की है.

गंगा का पानी अब नहाने लायक भी नहीं.

वाराणसी : भारत के वेद और पुराणों में जिस गंगा की खूबियों का बखान है, वह काशी में मैली हो चुकी है. मोक्षदायिनी गंगा के वजूद पर अब संकट के बादल मंडराने लगे हैं. नमामि गंगे योजना से भी गंगा निर्मल नहीं बन पाई. आलम ये है कि गंगा का पानी अब नहाने लायक भी नहीं रह गया है. एनजीटी की ओवरसाइज समिति ने ये चौंकाने वाला खुलासा किया है. इस पर BHU के वैज्ञानिकों ने भी चिंता जताई है. उन्होंने गंगा के पूरी तरह दूषित होने और इसके अस्तित्व के खत्म होने की आशंका जताई है. भविष्य में इससे उपजे जल संकट की ओर भी इशारा किया है.

गंगा के अस्तित्व के खत्म होने की आशंका है.
गंगा के अस्तित्व के खत्म होने की आशंका है.

31 जगहों से लिए गए थे सैंपल : विभागीय जानकारी के अनुसार नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की ओवरसाइज समिति की निगरानी में प्रदेश के 31 जगहों से गंगा के सैंपल लिए गए थे. इन सैंपल की जांच में गंगा का पानी प्रदूषित पाया गया है. गंगा का जल कहीं पर भी पूरी तरीके से निर्मल नहीं मिला. समिति ने एनजीटी से यूपी सरकार के शहरी विकास विभाग, जल शक्ति विभाग और यूपीपीसीबी को इस मामले में उचित कार्रवाई करने के आदेश देने की सिफारिश की है. इस समिति की अगुवाई इलाहाबाद उच्च न्यायालय के पूर्व न्यायाधीश एसवीएस राठौर ने की थी.

वैज्ञानिकों ने सरकार के प्रयासों पर सवाल उठाए हैं.
वैज्ञानिकों ने सरकार के प्रयासों पर सवाल उठाए हैं.

सी और डी श्रेणी में पहुंचा गंगा का पानी : नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की रिपोर्ट के मुताबिक वाराणसी, मिर्जापुर, गाजीपुर, सोनभद्र, प्रयागराज, कन्नौज, कानपुर, हापुड़, बिजनौर और बदायूं समेत प्रदेशभर से 31 जगहों से गंगा के नमूने लिए गए. जांच में आई रिपोर्ट के मुताबिक उत्तर प्रदेश में गंगा नदी का जल अधिकतर जगहों पर सी और डी श्रेणी में है. उत्तर प्रदेश पॉल्यूशन कंट्रोल बोर्ड ने जनवरी 2023 में जारी रिवर वाटर क्वालिटी रिपोर्ट में बताया था कि वाराणसी में गंगा और गोमती नदी का पानी लगातार प्रदूषित हो रहा है. इसका पानी प्रदूषित होते-होते ही यह डी कैटेगरी में पहुंच गया है.

गंगा को निर्मल बनाने के लिए वैज्ञानिक प्रयासों की जरूरत.
गंगा को निर्मल बनाने के लिए वैज्ञानिक प्रयासों की जरूरत.

गंगा की क्वालिटी बढ़ाने के प्रयास फेल : काशी हिन्दू विश्वविद्यालय के गंगा वैज्ञानिक प्रो. एनडी त्रिपाठी ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि गंगा नदी के जल की क्वालिटी बढ़ाने के जो प्रयास किए जा रहे थे, वे सभी फेल हो गए हैं. गंगा नदी के पानी की सफाई के लिए जो विधिवत प्रयास होने चाहिए वो नहीं हो पा रहे हैं. लोग कहते हैं कि बाढ़ के पानी से आने वाली मिट्टी से गंगा नदी का जल दूषित हो गया है. इस सवाल पर उन्होंने कहा, बाढ़ के पानी से पानी में सिर्फ मिट्टी आती है, प्रदूषण नहीं रहता है. पानी की क्वालिटी प्रदूषण के ऊपर निर्भर करती है. पानी में सिर्फ मिट्टी आने से प्रदूषण का स्तर नहीं बढ़ता है.

दिन-प्रतिदिन गंगा में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है.
दिन-प्रतिदिन गंगा में प्रदूषण का स्तर बढ़ रहा है.

सही तरीके से नहीं किया जा रहा काम : प्रो. बीडी त्रिपाठी बताते हैं, जब तक पानी में रासायनिक तत्व न हों, तब तक प्रदूषण का स्तर नहीं बढ़ता है. पानी में कूड़ा-कचरा जा रहा है. ऐसे में भी प्रदूषण बढ़ सकता है. जिस तरीके से गंगा सफाई के लिए काम किया जाना चाहिए था. उस तरीके से नहीं किया जा रहा है. विभागों के लोग कहते कुछ और हैं और करते कुछ और हैं. बता दें कि एनजीटी की रिपोर्ट बताती है कि गंगा जल की स्थिति की जो रिपोर्ट अभी आई है वह गंगा में बाढ़ से पहले की है. वहीं मौजूदा समय में जल में बहाव के साथ ही मिट्टी भी है.

रोजाना हजारों भक्त गंगा में करते हैं स्नान.
रोजाना हजारों भक्त गंगा में करते हैं स्नान.

रोजाना लगभग 50 हजार श्रद्धालु करते हैं स्नान : वाराणसी देश की धार्मिक राजधानी है. ऐसे में यहां पर आने वाले श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान भी करते हैं. वहीं काशी में श्री काशी विश्वनाथ कॉरिडोर बनने के बाद से यहां पर रोजाना लाखों श्रद्धालुओं का आना होता है. अधिकतर श्रद्धालु विश्वनाथ मंदिर में दर्शन से पहले गंगा नदी में स्नान करने के लिए जाते हैं. ऐसे में एनजीटी जांच रिपोर्ट का कहना है कि वाराणसी में गंगा स्नान के लायक नहीं रह गई है. सावन के महीने में श्रद्धालुओं की संख्या अधिक होती है. किसी खास पर्व पर यह संख्या 5 लाख के आस-पास होती है. वहीं सामान्य दिनों में भी रोजाना लगभग 50 हजार श्रद्धालु गंगा नदी में स्नान करते हैं.

एक भी काम वैज्ञानिक रूप से नहीं किया गया : ईटीवी भारत से बातचीत में IIT BHU के गंगा वैज्ञानिक यूके चौधरी ने सरकार की नाकामी पर गुस्सा निकाला. उन्होंने कहा, गंगा के लिए चलाई जा रही एक भी योजना को वैज्ञानिक रूप से एक्जीक्यूट नहीं किया गया है. गंगा की सफाई के लिए खर्च की बात की जाती है. सरकार गंगा के लिए सारा काम इंजीनियर्स से करवा रही है. इसलिए गंगा नदी की रुग्णता (बीमारी) हो गई है. सिर्फ गंगा ही नहीं पूरे देश की नदियां सिल्ट जमा कर रहीं हैं. सरकार पैसे खर्च करने की बात कहती है. सब झूठ है. एक भी काम वैज्ञानिक रूप से नहीं किया गया है.

प्रधानमंत्री ने गंगा के लिए कुछ भी नहीं किया : 'जितने भी एसटीपी बने हैं, सारे के सारे गलत तरीके से गलत जगहों पर बनाए गए हैं. जितने भी आउटफॉल साइट्स हैं, सारे के सारे गलत तरीके से बने हैं. सरकार कहती है कि एक लाख करोड़ रुपये खर्च हुए हैं. दस लाख करोड़ भी खर्च करें फिर भी गंगा की सफाई असंभव है. जब तक गंगा के लिए वैज्ञानिक रूप से काम नहीं किया जाएगा.' गंगा वैज्ञानिक यूके चौधरी ने सरकार पर सवाल उठाते हुए ये बात कही. वह कहते हैं, ऐसा ही हाल रहा तो गंगा समाप्त हो जाएगी. उसका कोई अस्तित्व नहीं रहेगा. वाराणसी में सबसे अधिक प्रदूषण है. प्रधानमंत्री ने देश के लिए बहुत कुछ किया, लेकिन गंगा के लिए कुछ भी नहीं किया है.

पॉल्यूशन अधिकारी बोले- नहीं मिली है रिपोर्ट : वहीं इस मामले में पॉल्यूशन अधिकारी वाराणसी एससी शुक्ला का कहना है कि नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) की पेश की गई ओवरसाइज कमेटी की रिपोर्ट के बारे में जानकारी नहीं है. हमारे पास रिपोर्ट आएगी तभी इस बारे में कुछ कह पाना संभव है. मौजूदा समय में गंगा में बाढ़ है. ये सैंपल बाढ़ से पहले लिए गए होंगे. बता दें कि वाराणसी समेत उत्तर प्रदेश के अधिकतर जगहों पर गंगा का पानी प्रदूषित पाया गया है. गंगा का पानी इस समय सी और डी ग्रेड में है. यह रिपोर्ट बाढ़ आने से पहले की है.

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