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मणिपुर में कांग्रेस के गठबंधन से बीजेपी का होगा तगड़ा मुकाबला

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Published : Feb 8, 2022, 4:58 PM IST

Updated : Feb 8, 2022, 5:08 PM IST

मणिपुर पूर्वोत्तर का ऐसा राज्य है, जहां राष्ट्रीय राजनीति दल के अलावा क्षेत्रीय पार्टियां भी सरकार की दशा एवं दिशा तय करती रही हैं. मणिपुर विधानसभा चुनाव 2022 में क्या क्षेत्रीय दल ताकत बनकर उभरेंगे या बीजेपी फिर से बहुमत हासिल करेगी. गठबंधन के बाद कांग्रेस भी इस पहाड़ी प्रदेश में सत्ता वापसी की तैयारी कर रही है. अभी तक किए गए ओपिनियन पोल के मुताबिक, 2022 में कांग्रेस और बीजेपी के बीच कांटे की टक्कर होगी.

manipur assembly election 2022
manipur assembly election 2022

नई दिल्ली : मणिपुर पूर्वोत्तर का ऐसा राज्य है, जहां की राजनीति में राष्ट्रीय दल के साथ स्थानीय क्षेत्रीय पार्टी भी सरकार की रूपरेखा तय करती हैं. 2022 यानी इस बार के हालात कुछ अलग हैं. बीजेपी सरकार में अपने गठबंधन पार्टनर नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) और नगा पीपुल्स फ्रंट (NPF) के खिलाफ चुनाव लड़ रही है. उसका मुकाबला कांग्रेस के नेतृत्व वाली मणिपुर प्रोग्रेसिव सेक्युलर अलायंस से भी होगा.

कांग्रेस ने छह दलों के साथ चुनाव पूर्व गठबंधन किया है, जिसे मणिपुर प्रोग्रेसिव सेक्युलर अलायंस (MPSA) नाम दिया गया है. इस गठबंधन में कांग्रेस (Congress), भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा), मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा), फारवर्ड ब्लॉक, आरएसपी और जेडी (एस) शामिल है. 60 सदस्यीय राज्य विधानसभा के लिए कुल दो चरणों में वोटिंग होगी. पहले चरण में विधानसभा की 38 सीटों पर मतदान 27 फरवरी को होगा. 22 सीटों के लिए दूसरे चरण की वोटिंग 3 मार्च को होगी. मणिपुर में भी मतगणना 10 मार्च को होगी.

manipur assembly election 2022
नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) . नगा पीपुल्स फ्रंट (NPF). मणिपुर पीपुल्स पार्टी (MPP) ऑल इंडिया तृणमूल कांग्रेस (TMC) मणिपुर स्टेट कांग्रेस पार्टी ( MSCP), भारतीय जनता पार्टी (BJP)

2017 के विधानसभा चुनाव में कांग्रेस को 28 और भाजपा को 21 सीटों पर जीत मिली थीं. मगर अभी बीजेपी के पास 31 विधायक हैं और उसे 4 विधायकों वाली एनपीएफ और 3 विधायकों वाली एनपीपी का समर्थन प्राप्त है. कांग्रेस से कम सीट जीतने के बावजूद चुनाव भाजपा ने नेशनल पीपल्स पार्टी, नागा पीपल्स फ्रंट, लोजपा के अलावा दो अन्य विधायकों के साथ मिलकर सरकार बना ली थी. तब अमित शाह ने असम के वर्तमान मुख्यमंत्री हिमंत विस्वसरमा को सरकार बनवाने का जिम्मा सौंपा था. एन बीरेन सिंह राज्य के मुख्यमंत्री बने थे. 28 सीटें जितनी वाली कांग्रेस के पास अब सिर्फ 13 विधायक बचे हैं.

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2017 में बीजेपी नेता हिमंत विस्वसरमा ने मणिपुर में सरकार बनाने की रणनीति बनाई थी.

मणिपुर में पहली बार वर्ष 1962 में केंद्रशासित प्रदेश अधिनियम के अंतर्गत 33 सदस्यीय विधानसभा की स्थापना की गई थी. तब विधानसभा में 30 सदस्य चुने जाते थे जबकि तीन का मनोनयन सरकार करती थी. इस दौरान दस साल तक कांग्रेस सत्ता में रही. जनवरी 1972 को मणिपुर को पूर्ण राज्य का दर्जा मिला और विधानसभा में सदस्यों की संख्या 60 हो गई. इनमें से 20 सीटें शिड्यूल ट्राइब्स और शिड्यूल कास्ट के लिए रिजर्व हैं. पूर्ण राज्य का दर्जा हासिल करने के बाद मणिपुर की राजनीति क्षेत्रीय दलों और निर्दलीयों के सहारे आगे बढ़ी. मणिपुर पीपुल्स पार्टी (MPP) ने 1972 में निर्दलीयों के साथ सरकार बनाई. 1974 से 77 तक कांग्रेस फिर सत्ता में आई.

आपातकाल के बाद वहां दो साल के लिए जनता पार्टी की सरकार बनी. इसके बाद कांग्रेस और क्षेत्रीय दलों के बीच 20 साल तक सत्ता की खींचतान होती रही. निर्दलीय और छोटे दल मौके के हिसाब पाला बदलते रहे. उलटफेर के चक्कर में 1972 के बाद से 2001 तक मणिपुर में 8 बार राष्ट्रपति शासन भी लगा. वर्ष 2007 और 2012 में कांग्रेस ने लगातार जीत हासिल कर सरकार बनाई. उसकी सत्ता 2017 में बदल गई, पहली बार बीजेपी ने लगातार पांच साल तक शासन किया.

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2007 से 2017 तक कांग्रेस के ओकराम इबोबी सिंह मुख्यमंत्री रहे.

पिछले 49 साल के दौरान मणिपुर के कई स्थानीय क्षेत्रीय दल आए, जो चुनावों में छाए रहे. 2012 मणिपुर स्टेट कांग्रेस पार्टी ने 5 सीटें जीतीं थीं. नगा पीपुल्स फ्रंट (NPF) ने भी 4 सीटों पर कब्जा किया. मगर उस साल कांग्रेस को मिली भारी जीत के कारण सरकार में इनका दखल नहीं हुआ. 2012 में तृणमूल कांग्रेस ने 7 सीटें जीत कर मणिपुर में एंट्री ली थी. 2007 में मणिपुर पीपुल्स पार्टी ने 5, राष्ट्रीय जनता दल ने 3 और एनसीपी ने 5 सीट जीती थीं. 2002 में समता पार्टी और फेडरल पार्टी ऑफ मणिपुर को भी चुनावी सफलता मिली थी. इसके अलावा रामबिलास पासवान की लोक जनशक्ति पार्टी, जनता दल, जनता दल यूनाइटेड भी यहां के चुनावों में सीट हासिल करती रही है.

मणिपुर के जातीय फैक्टर, मेतई समुदाय का दबदबा

प्रदेश में 985119 पुरुष वोटर हैं जबकि महिला वोटरों की तादाद 1049639 है. यहां 208 ट्रांसजेंडर वोटर भी हैं. मणिपुर की राजनीति में मेतई समुदाय का दबदबा रहा है. मेतई हिंदू रीति-रिवाज़ों का पालन करने वाला जनजातीय समूह हैं. राज्य की कुल आबादी 28 लाख से अधिक है, जिसका 40 फीसदी सामान्य मेतेई हैं. यहां की पहाड़ी 20 सीट हों या घाटी की 40 सीटें, मेतई जाति के वोटर दोनों इलाकों के 37 सीटों पर निर्णायक भूमिका निभाते हैं. राज्य में उसी की सरकार बनती है, जिसके साथ मेतई समुदाय होता है. हालांकि इनमें से 20 सीटों पर नागा और कुकी जनजातियों का दबदबा है, जबकि शेष 3-4 क्षेत्रों में 'पंगल' यानी मणिपुरी मुस्लिम तय करते हैं कि विधायक कौन होगा.

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मेतई समुदाय के वोटरों का रुख तय करेगा कि सरकार किसकी बनेगी.

2022 में क्या हैं हालात

2017 में पहली बार सत्ता में काबिज हुई बीजेपी ने मेतई समुदाय के बीच जनाधार बढ़ाया है. मगर कांग्रेस गठबंधन मणिपुर प्रोग्रेसिव सेक्युलर अलायंस से उसे कड़ी टक्कर मिल सकती है. दूसरी ओर नगा पीपुल्स फ्रंट (NPF) और नेशनल पीपुल्स पार्टी (NPP) उसके पूर्ण बहुमत का खेल बिगाड़ सकते हैं. अभी तक के चुनावी इतिहास में सिर्फ एक बार कांग्रेस को पूर्ण बहुमत मिला है. उसके बाद से मणिपुर में जोड़-तोड़ से ही सरकार बनती रही है.

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Last Updated : Feb 8, 2022, 5:08 PM IST
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