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पिछड़ों के सम्मान से आजादी की लड़ाई तक, 'बापू' के संघर्षों का साक्षी रहा दिल्ली का मंदिर मार्ग

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Published : Oct 2, 2021, 6:25 PM IST

दिल्ली स्थित मंदिर मार्ग एक ऐसी जगह है, जिसने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी को बहुत करीब से देखा है. बापू ने अपने जीवन के आखिरी सालों का एक महत्वपूर्ण समय यहां बिताया था. आज भी दिल्ली के मंदिर मार्ग को बापू की यादों से जोड़कर देखा जाता है.

'बापू' के संघर्षों का साक्षी
'बापू' के संघर्षों का साक्षी

नई दिल्ली : राष्ट्रपिता महात्मा गांधी एक ऐसा नाम, जिसे सुनने बस से हमारे जेहन में आज़ादी की अलख जगने लगती है, जिनका जिक्र हर उस दिन के साथ होता है, जो देश से जुड़ा हो. चाहे समाज में पिछड़ों को उनका हक दिलाना हो, या फिर अहिंसा के मार्ग पर चलकर आजादी का संघर्ष, बापू निस्वार्थ तौर पर हमेशा प्रथम भूमिका में रहे. देश में हुए तमाम आंदोलनों में न सिर्फ बापू अग्रणी रहे बल्कि उन्होंने लोगों के एकता सूत्र में भी पिरोया.

'बापू' के संघर्षों का साक्षी दिल्ली का मंदिर मार्ग.

आज जब हम उन्हें याद करते हैं, तो हमारे दिल में एक कोमल हृदय, धीमी आवाज और सादे वस्त्रों में आम से आदमी की छवी उभरती है, लेकिन हम असल में अब भी उनसे अछूते हैं. बापू और हमारे बीच के इस फासले को कुछ हद तक कम करता है दिल्ली स्थित मंदिर मार्ग इलाका. एक ऐसी जगह जिसने बापू के जीवन को बहुत करीब से देखा है. वाल्मीकि मंदिर में बना गांधी जी का कमरा, आज भी देखने वालों के सामने वहीं मंजर ले आता है. इस कमरे में प्रवेश बस से आप गांधी जी की शख्सियत को महसूस कर सकते हैं.

जून 1947 में मंदिर मार्ग के वाल्मीकि मंदिर में बापू को देश की आज़ादी का समाचार मिला था. बापू ने यहां अपने जीवन के आखिरी सालों का एक महत्वपूर्ण समय बिताया, शायद ये भी एक कारण है कि बापू के नाम से शुरू होने वाला स्वच्छ भारत अभियान की शुरुआत इसी जगह से हुई थी. साल 1996 में भी पूर्व प्रधानमंत्री पीवी नरसिम्हा राव की सरकार के वक्त बापू के सफाई अभियान को आम जनों के जीवन में सम्मलित करने का संदेश दिया था.

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2 किलोमीटर लंबी इस सड़क पर वाल्मीकि मंदिर, बिड़ला मंदिर और नई दिल्ली नगर पालिका परिषद का गांधी सदन स्थित है. कुछ ही मीटर के दायरे में फैली यह जगहें महात्मा गांधी के जीवन का अहम परिचय देती हैं. साथ ही बापू के जीविका की स्मृतियों को जोड़ती नजर आती हैं. बापू दलितों और वाल्मीकि समाज के दुख को देखना चाहते थे. बापू खुद यहां बच्चों को पढ़ाया करते थे.

बताया जाता है कि इस मार्ग पर ढेर सारे स्कूल होने के नाते अंग्रेजों के जमाने में इसका नाम रीडिंग रोड हुआ करता था, जिसके बाद इसका नाम मंदिर मार्ग पड़ा. कहा जाता है कि इसके पीछे की वजह यहां ढेर सारे मंदिरों की मौजूदगी है, जिसमें वाल्मीकि मंदिर, हिन्दू महासभा मंदिर, बिरला मंदिर शामिल है. बिरला मंदिर का उद्घाटन महात्मा गांधी ने ही किया था. महात्मा गांधी ने बिरला मंदिर के उद्घाटन के लिए एक शर्त भी रखी थी, जिसमें कहा गया था कि मंदिर में अगर सभी धर्म और जाति के लोगों को प्रवेश मिलेगा तभी वह इसका उद्घाटन करेंगे. गांधी जी की शर्त पर सहमति जताई गई और तब इस मंदिर का उद्घाटन हुआ. लोग बताते हैं इस मंदिर में बापू अपने आराध्य भगवान श्री राम का ध्यान भी लगाते थे.

पंचकुइयां मार्ग से मंदिर मार्ग की तरफ बढ़ने पर सबसे पहले गांधी सदन से सामना होता है. दरअसल, ये NDMC द्वारा बनाई गई हाउसिंग सोसाइटी है, जो ठीक वाल्मीकि मंदिर के सामने है. इसके अलावा मंदिर मार्ग पर कई स्कूल हैं. गांधी जी को लेकर जब भी बात होती है, तब दिल्ली के मंदिर मार्ग को बापू की यादों से जोड़कर देखा जाता है.

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