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स्मृति शेष: पगडंडी से लेकर संत समुदाय की अगुवाई करने वाले महंत नरेंद्र गिरि का सफर

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Published : Sep 21, 2021, 8:12 AM IST

Updated : Sep 21, 2021, 11:49 AM IST

महंत नरेंद्र गिरि का सफर
महंत नरेंद्र गिरि का सफर

अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि का संदिग्ध परिस्थितियों में निधन हो गया. उनकी मौत की सूचना मिलते ही मौके पर पहुंची पुलिस मठ के लोगों से पूछताछ कर रही है. पढ़िए गांव की पगडंडी से निकलकर संत समाज की अगुवाई करने तक का नरेंद्र गिरि का सफर...

प्रयागराज: अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि की आत्महत्या (narendra giri death news) से पूरे संत समाज में शोक की लहर है. संत समाज और सनातन धर्म की रक्षा के लिए महंत नरेंद्र गिरी (Mahant Narendra Giri) के किए गए प्रयास सराहनीय रहे हैं. उत्तर प्रदेश के प्रयागराज शहर के अलापुर में बाघम्बरी मठ (Baghambari Math) की जिम्मेदारी के साथ-साथ संत समाज की भी जिम्मेदारी भी उन्होंने बखूबी निभाई. सनातन धर्म से लगाव और राजनीतिक गलियारों से जुड़ाव के चलते इनके द्वारा समय-समय पर दिए गए बयान भी सुर्खियों में रहे.

महंत नरेंद्र गिरी के जीवन पर डालें एक नजर

महंत नरेंद्र गिरि प्रयागराज जनपद की फूलपुर तहसील के उग्रसेनपुर क्षेत्र के रहने वाले थे. शुरुआत से ही इनको संतों से बड़ा लगाव था. जानकारी के मुताबिक गांव में जब कोई संत जाता था तो नरेंद्र गिरि उनके साथ अपना काफी समय व्यतीत करते थे और धर्म, संस्कृति के बारे में जानकारी लेते थे. सनातन संस्कृति और धर्म से जुड़ाव की वजह से ही नरेंद्र गिरि युवावस्था में ही अपने गांव से निकलकर संतों की टोली में आ गए और किसी संत के संपर्क में आकर वह राजस्थान पहुंचे. वहां पर वह एक अखाड़े में रहकर संतों की सेवा में जुट गए. संतो के प्रति लगाव और सनातन धर्म के प्रति नरेंद्र गिरि की सच्ची श्रद्धा संतों और महंतों को खूब भाई. राजस्थान में काफी समय बिताने के बाद वह वापस प्रयागराज आए और यहां पर निरंजनी अखाड़े से जुड़ गए.

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अखाड़े से जुड़ने के बाद नरेंद्र गिरि ने प्रयागराज में मठों के उद्धार के लिए प्रयास शुरू कर दिए. बंधवा स्थित हनुमान मंदिर और बाघम्बरी मठ के पूर्व संचालक के स्वर्गवास के बाद लगभग दो दशक पहले बाघम्बरी मठ की जिम्मेदारी नरेंद्र गिरि को मिली. जिम्मेदारी संभालने के बाद उन्होंने असम द्वारा संचालित संस्कृति स्कूलों में वैदिक शिक्षा गौशाला के निर्माण और सबसे महत्वपूर्ण प्रयागराज में हरपुर संत समाज को एक साथ जोड़कर सनातन धर्म और संस्कृति को आगे बढ़ाने का कार्य शुरु कर दिया.

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धर्म की रक्षा के साथ-साथ इनका राजनीति गलियारों से भी नाता रहा. एक दशक पूर्व प्रयागराज के हंडिया विधानसभा के समाजवादी पार्टी के विधायक स्व. महेश नारायण सिंह की महंत से नजदीकियों के बाद पार्टी के मुखिया मुलायम सिंह यादव के भी वह करीब रहे. साधु संत की समस्याओं को लेकर सदैव आगे रहने वाले नरेंद्र गिरि धीरे-धीरे हिंदू धर्म से जुड़े. सभी संप्रदाय और धर्म की रक्षा के लिए बने अखाड़ों ने इन्हें अपना अगुआ मानते हुए सर्वसम्मति से अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष घोषित कर दिया. अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष बनने के बाद नरेंद्र गिरि ने देश के कोने-कोने में रहने वाले साधु-संतों को एकत्र कर सनातन संस्कृति का प्रचार भी शुरू किया. नरेंद्र गिरि ने प्रयागराज में आयोजित होने वाले विश्वस्तरीय माघ मेले, अर्धकुंभ और 2 वर्ष पहले संपन्न हुए कुंभ मेले में देश-विदेश से आए हुए साधु-संतों का कुशल नेतृत्व भी किया.

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नरेंद्र गिरि ने ऐसे संतों पर कड़ा रुख अपनाया, जो धर्म और संस्कृति के पीछे अपने अन्य कार्यों को अंजाम दे रहे थे. कुंभ मेले के आयोजन से पूर्व 18 परिषद के सदस्यों के साथ बैठकर इन्होंने दागी संतों को कुंभ मेले में प्रवेश न देने और उन्हें संत समाज से बाहर का रास्ता दिखाने का कार्य किया, जिसमें बड़े संतों के नाम भी शामिल थे. नरेंद्र गिरि के इस फैसले ने संत समाज और आम जनमानस के बीच सकारात्मक ऊर्जा देने का कार्य किया. यही नहीं नरेंद्र गिरि के परम शिष्य आनंद गिरि को भी मठ से बाहर का रास्ता देखना पड़ा. हालांकि बाद में आनंद गिरि द्वारा अपनी गलती स्वीकार करने और धर्म की रक्षा के लिए सदैव कार्य करने का संकल्प लिया. जिसके बाद उन्हें वापस मठ में शामिल किया गया.

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महंत नरेंद्र गिरि सिर्फ साधु-संतों के बीच ही प्रिय नहीं थे बल्कि वह आम जनमानस के भी वह बहुत करीब थे. वह सदैव सहज भाव से लोगों से मुलाकात करते थे और धर्म संस्कृति का कार्य करने के लिए प्रेरित करते रहते थे. सनातन धर्म के लिए होने वाले किसी भी आयोजन में वह सदैव आगे रहते थे. पूरे संत समाज को महंत नरेंद्र गिरि की कमी जरूर महसूस होगी क्योंकि जिस कुशलता और नेतृत्व के साथ वह बातों को रखते थे उसे संत समाज सहस्त्र स्वीकार करता था. असमय हुई उनकी मृत्यु ने सिर्फ संत समाज ही बल्कि सनातन धर्म को स्वीकार करने वाला हर व्यक्ति आहत है.

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मार्च 2015 में पंचायती अखाड़ा श्री निरंजनी के सचिव और मठ बाघम्बरी गद्दी के महंत नरेंद्र गिरि को सर्वसम्मति से अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद का अध्यक्ष चुना गया था. हालांकि, जूना अखाड़े के महंत हरिगिरि को परिषद का महामंत्री चुना गया था. प्रयागराज कुंभ में तीसरे शाही स्नानपर्व वसंत पंचमी पर डुबकी लगाने के बाद काशी में पंचायती अखाड़ा श्रीनिरंजनी के चुनाव में मठ बाघम्बरी गद्दी के महंत और अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत नरेंद्र गिरि को दूसरी बार अखाड़े का सचिव नियुक्त किया गया.

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Last Updated :Sep 21, 2021, 11:49 AM IST
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