नई दिल्ली: पंजाब में खालिस्तान का मुद्दा आजादी के समय से ही है. उस समय कुछ सिख नेता खालिस्तान के नाम पर पंजाब का बंटवारा चाहते थे. खालिस्तानी आंदोलन उसी समय से पंजाब में समय- समय पर सक्रिय हुआ. इस दौर में कई बड़े खालिस्तानी नेता चर्चा में आए. इन नेताओं ने पंजाब को अस्थिर कर इसे बांटने की साजिश की लेकिन उनके मंसूबे कामयाब नहीं हुए.
हाल के दिनों में अमृतपाल सिंह से पहले करतारपुर गलियारे के शिलान्यास समारोह के दौरान 'खालिस्तानी आंदोलन' फिर से उभर रहा था. तभी खालिस्तान अलगाववादी नेता गोपाल सिंह चावला का नाम सामने आया था. उसे भी बड़े खालिस्तानी नेताओं में शामिल किया गया था. उस समय पंजाब के मंत्री एवं पूर्व क्रिकेटर नवजोत सिंह सिद्धू के साथ उसकी तस्वीरें सामने आई थी.
इससे पहले 1971 में जगजीत सिंह चौहान नामक शख्स चर्चा में आया था. उसने खालिस्तानी आंदोलन को आगे बढ़ाने की कोशिश की. वर्ष 1978 में जगजीत सिंह ने अकालियों के साथ मिलकर आनंदपुर साहिब के नाम संकल्प पत्र जारी किया. इसमें अलग खालिस्तान देश की मांग की गई थी. जगजीत सिंह चौहान ने अमेरिका में इस आंदोलन को तेज करने की कोशिश की. उसने अमेरिका में अखबारों में विज्ञापन देकर इस मुद्दे को बढ़ाने का प्रयास किया था. उसने इस आंदोलन को लंदन तक पहुंचाया. बताया जा रहा है कि 1980 में लंदन में डाक टिकट भी जारी किया गया.
खालिस्तान आंदोलन की कड़ी में सबसे चर्चित नाम जनरैल सिंह भिंडरावाले का रहा. वह 1980 के दशक में इस आंदोलन को लेकर सक्रिय रहा. इस दौरान उसने विदेशों में रहने वाले कई सिखों को इस आंदोलन से जोड़ा. उसने लंदन और अमेरिका जैसे देशों में इसकी जड़ें मजबूत करने की कोशिश की. उन्हीं सिखों के माध्यम से उसे बाद में आर्थिक और सामरिक मदद हासिल की.
गौरतलब है कि खालिस्तान आंदोलन की शुरुआत करीब 1947 में हुई. उस समय कुछ सिख नेता पंजाब को बांटने पर आमादा थे. वे खालिस्तान नाम से अलग देश बनाना चाह रहे थे. उनके खालिस्तान में भारत के पंजाब से लेकर पाकिस्तान के लाहौर तक का सिख बहुल इलाका शामिल था. इसके बाद 1950 में अकाली दल ने इस आंदोलन को हवा दी. इस आंदोलन को 'पंजाबी सूबा आंदोलन' नाम से चलाया गया था.
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