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लोकसभा चुनाव से पहले ललन सिंह का इस्तीफा क्या कहता है? जानिए बड़ी वजह

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 29, 2023, 6:49 PM IST

Lalan Singh Etv Bharat
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Lalan Singh Resign : 2024 लोकसभा चुनाव से पहले ललन सिंह ने जेडीयू अध्यक्ष से इस्तीफा दे दिया है. दिल्ली जेडीयू कार्यकारिणी की बैठक में खुद ललन सिंह ने इस्तीफे के बाद नीतीश कुमार को पार्टी अध्यक्ष बनाने का प्रस्ताव रखा, जिसे मुख्यमंत्री ने स्वीकार कर लिया. ऐसे में सवाल ये है कि ललन सिंह के जेडीयू के राष्ट्रीय अध्यक्ष पद से हटने के पीचे की कहानी क्या है, आइए जानते हैं.

पटना: जेडीयू की राष्ट्रीय कार्यकारिणी में मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के अध्यक्ष बनने और फिर राष्ट्रीय परिषद की बैठक में उनके नाम पर मुहर तो लग चुकी है, लेकिन एक सवाल बहुत जायज है कि इससे ऐसा क्या बदलाव आएगा, जो पार्टी के लिए जरूरी था. सूत्रों की माने तो, इस सारी कवायद की वजह है ललन सिंह पर से नीतीश कुमार के भरोसे का कमजोर होना. इसकी नींव इंडिया गठबंधन की चौथी बैठक से ही पड़ गई थी, जो दिल्ली में 19 दिसंबर को हुई थी.

लालू-तेजस्वी से बढ़ती जा रही थी नजदीकी? : जानकार बताते है कि बैठक के तुरंत बाद नीतीश कुमार दिल्ली से पटना लौट गए थे. लेकिन ललन सिंह अगले दिन पटना लौटे. लेकिन अकेले नहीं, बल्कि लालू यादव और तेजस्वी के साथ. दरअसल, इससे पहले इस बात का दबाव नीतीश कुमार के ऊपर पड़ रहा था कि वे गठबंधन की पॉलिटिक्स संभालें और सरकार की कमान तेजस्वी के हाथों में सौंप दें. बताया जाता है कि इसलिए ललन सिंह की दिल्ली से पटना की ये हवाई यात्रा नीतीश कुमार का भरोसा तोड़ गई. साथ सियासी गलियारों में यह चर्चा शुरू हो गई कि ललन सिंह लालू प्रसाद यादव के करीब हो गए हैं.

2024 से पहले JDU में बड़ा बदलाव : हालांकि जेडीयू के कार्यकारिणी सदस्य अफजल अब्बास कहते हैं, ''ललन बाबू ने खुद ही इस्तीफा दिया. उनकी व्यवस्तता बहुत ज़्यादा थी क्योंकि उनको चुनाव लड़ना है. दूसरी बात ये कि राष्ट्रीय कार्यकारिणी ने सर्वसम्मति से खुद ही नीतीश कुमार से कहा कि आप ही अध्यक्ष बन जाइए.''

''नीतीश कुमार के अध्यक्ष बनने से सामाजिक न्याय की लड़ाई तेज होगी, सामाजिक न्याय की लड़ाई लड़ने वाले जो भी योद्धा हैं, सब चाहते हैं कि नीतीश बाबू ही कमान संभालें. इससे इंडिया गठबंधन को भी मजबूती मिलेगी.'' - अफजल अब्बास, कार्यकारिणी सदस्य, जेडीयू

ललन सिंह के इस्तीफे पर क्या बोली पार्टी? : हालांकि पार्टी के बड़े नेता और बिहार सरकार में मंत्री विजय चौधरी ने कहा कि, ''पार्टी कार्यकारिणी की बैठक में खुद ललन सिंह ने यह प्रस्ताव रखा था. उन्होंने कहा कि लोकसभा चुनाव नजदीक है, ऐसे में वो खुद चुनाव लड़ने वाले हैं और उनका क्षेत्र में रहना जरूरी है. इसलिए वो राष्ट्रीय अध्यक्ष पद को संभालने में असमर्थ है. इसके बाद मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने उनका इस्तीफा स्वीकार कर लिया.''

चुनाव लड़ने के लिए छोड़ दिया पद? : हालांकि वजह जो भी बताया जा रहा हो कि, ललन सिंह अपने चुनाव की तैयारी कर रहे हैं, इसलिए इस्तीफा दे रहे हैं. खुद ललन सिंह ने भी कहा कि ''मैं अपने संसदीय क्षेत्र मुंगेर में समय नहीं दे पा रहा था, अब अधिक से अधिक समय वहां देना चाहते हूं. मैं पार्टी हित के लिए काम करता हूं और करता रहूंगा.'' लेकिन सियासी जानकार बताते हैं कि इस बहाने में ज़रा भी सच्चाई नहीं है, क्योंकि अब जेडीयू अध्यक्ष बनने वाले नीतीश कुमार तो खुद मुख्यमंत्री हैं, उन पर तो पूरे सूबे का प्रशासनिक भार है और उनकी व्यस्तता ललन सिंह से बहुत ज्यादा है.

ललन सिंह का इस्तीफा क्या कहता है? : ऐसे में सवाल ये कि आखिर ललन सिंह के इस्तीफे के पीछे की सच्चाई क्या है?. सूत्रों की माने तो नीतीश कुमार के अध्यक्ष बन जाने से जो सबसे बड़ा बदलाव होगा कि एक बार फिर से पार्टी की बागडोर उनके हाथ आ जाएगी. ऐसे में लोकसभा चुनाव को लेकर गठबंधन के अंदर नीतीश कुमार ही फैसला लेंगे, न कि ललन सिंह. इसे यूं समझे कि सीटों को लेकर या मुख्यमंत्री पद को लेकर अब कोई भी बात सीधे आरजेडी को नीतीश कुमार से ही करनी होगी.

"यह अच्छी बात है कि बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार को राष्ट्रीय अध्यक्ष चुना गया है. बिहार की जनता खुश है. इंडिया गठबंधन एकजुट होकर लड़ेगा और बीजेपी को हराएगा.'' - अखिलेश प्रसाद सिंह, बिहार कांग्रेस के अध्यक्ष

ललन सिंह का इस्तीफा.. बिहार में सियासी हलचल : इधर नीतीश कुमार को लेकर बीजेपी के अंदखाने भी सियासी हलचल तेज है. सूत्रों की माने तो जो संकेत मिल रहे है कि उसके मुताबिक बीजेपी ने बीजेपी ने नीतीश कुमार के लिए नो एंट्री का बोर्ड हटा दिया है. अगर नीतीश कुमार का मन डोलता है, तो अध्यक्ष रहते उनके लिए फैसला लेना आसान होगा, लेकिन ललन सिंह अध्यक्ष रहते तो यह मुश्किल होता.

नीतीश कुमार ने संभाली कमान : हालांकि अफजल अब्बास मानते हैं कि, ''नीतीश कुमार पिछड़ी जाति से हैं इसलिए उनके अध्यक्ष बनने से सामाजिक न्याय की लड़ाई और तेज होगी. साथ ही गठबंधन के नेतृत्व के लिए नीतीश कुमार का नाम आगे करने में भी आसानी होगी.'' लेकिन सूत्र बताते हैं कि ये सारे फायदे बाइ-प्रोडक्ट हैं. असल बात ये है कि नीतीश कुमार को उनके सलाहकारों ने उन्हें समझा दिया है कि बागडोर अपने हाथ में लेने से उनकी ताकत बढ़ेगी और वे वक्त-वक्त पर कांग्रेस और आरजेडी को दबाव में लेकर अपना राजकाज चलाते रहेंगे.

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