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छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या का कैसे हो सकता है समाधान, जानिए एक्सपर्ट की राय !

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Published : Apr 26, 2023, 11:17 PM IST

छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या के समाधान को लेकर दिल्ली से लेकर रायपुर और बस्तर तक हमेशा से मंथन होता आया है. लेकिन दशकों तक इस समस्या को झेलने के बाद अब तक इसका समाधान नहीं हो पाया है. आखिर नक्सलवाद का समाधान कैसे हो सकता है. इसे जानने के लिए पढ़िए ये रिपोर्ट

Naxal problem in Chhattisgarh
छत्तीसगढ़ में नक्सल समस्या

रायपुर: छत्तीसगढ़ के दंतेवाड़ा में हुए नक्सली हमले ने एक बार फिर प्रदेश सहित देश को हिला कर रख दिया है. सरकारें आईं और गईं. लेकिन अगर छत्तीसगढ़ के कुछ खत्म नहीं हुआ तो वह है. नक्सल समस्या. अब यह प्रदेश के लिए कैंसर का रूप लेता जा रहा है. जब भी ऐसा लगता है कि नक्सली बैकफुट पर है. उसके तुरंत बाद वह कुछ ऐसी घटनाओं को अंजाम देते हैं. जिससे उनकी उपस्थिति दोबारा दर्ज हो जाती है. आज भी कुछ इसी तरह का वाकया देखने को मिला. जब छत्तीसगढ़ में नक्सलियों के बैकफुट पर होने के दावे राज्य सरकार की ओर से किए जा रहे थे. इसी बीच नक्सलियों ने दंतेवाड़ा में आईडी ब्लास्ट कर 10 जवानों को शहीद कर दिया. एक ड्राइवर की भी मौत इस नक्सली हमले में हुई. इस तरह नक्सलियों ने एक बार फिर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है.

इस घटना के बाद सवाल उठने लगे हैं कि, आखिर छत्तीसगढ़ में नक्सल ऑपरेशन की क्या स्थिति है. दूसरी तरफ सरकार कह रही है कि नक्सली बैकफुट पर हैं.आखिर इसमें कितनी सच्चाई है. इसके अलावा नक्सलियों के खिलाफ बनाई गई रणनीति कारगर है या फिर इसमें बदलाव की जरूरत है. इन तमाम सवालों के जवाब के लिए नक्सल एक्सपर्ट शुभ्रांशु चौधरी से बात की गई.

सवाल : इस समय नक्सलियों के खिलाफ ऑपरेशन किस स्थिति में है?

जवाब : इस समय नक्सलियों को बैकफुट पर जाना पड़ा है. दूसरी बात नक्सलियों की रणनीति में थोड़ा बदलाव हुआ है. सरकार से युद्ध की जगह वे संयुक्त मोर्चे की तर्ज पर अपने फ्रट बनाते हैं. इन 2 कारणों से नक्सली कम या ज्यादा बैकफुट पर दिखते हैं और सरकार आक्रामक स्थिति में दिखती है. लेकिन इसका अर्थ यह नहीं है कि, लोगों का समर्थन खत्म हो गया है या फिर नक्सली बहुत ज्यादा कमजोर हो गए हैं. इस तरह की घटनाओं से वे अपनी उपस्थिति दर्ज कराने की समय-समय पर कोशिश करते हैं.

सवाल : सरकार का दावा है कि नक्सल समस्या अंतिम दौर में है, इसमें कितनी सच्चाई है?

जवाब : नक्सली कमजोर हुए हैं. उनको पीछे धकेला गया है. यह बात बिल्कुल सही है. लेकिन उसके साथ यदि आप देखेंगे कि पिछले हफ्ते बालाघाट में घटना हुई है. नक्सली अपना क्षेत्र विस्तार कर रहे हैं. यह कोई एलटीटी जैसे काम नहीं कर रहे हैं कि उनके दूसरे तरफ समंदर हो. यदि आप छत्तीसगढ़ में दबाव बनाते हैं तो वह मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र चले जाते हैं, उनकी स्थिति कमजोर है, इसमें कोई दो मत नहीं है . लेकिन यह समझना कि वे खत्म हो गए हैं, यह नहीं है. उन्हें मिलिट्री की मदद से नेस्तनाबूद किया जा सकता है, जैसे एलटीटी को खत्म किया गया है. लेकिन कई लोग इसे ज्यादती मानते हैं.

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सवाल : नक्सलियों के खिलाफ चलाए जा रहे हैं ऑपरेशन की रणनीति सही है, या उसमें बदलाव की जरूरत है ?

जवाब : शुभ्रांशु चौधरी का कहना है कि "नक्सलियों के खिलाफ रणनीति में बदलाव की निश्चित रूप से जरूरत है, नक्सलियों को कमजोर किया गया है. उसमें सफलता मिली है, 80 प्रतिशत काम हो गया है. जिस तरह से ऑपरेशन चाकू छुरी से किया जाता है. लेकिन एनएसथीसिया लगाना और पेन किलर देना भी जरूरी होता है. नहीं तो ऑपरेशन के बाद मरीज को परेशानी हो सकती है और उसे साइड इफेक्ट भी हो सकता है. इसी तरह नक्सली पिछले 2 साल से संयुक्त मोर्चा की रणनीति पर अधिक ध्यान दे रहे हैं. उसका अगला पड़ाव ही होता है बातचीत, जैसा नेपाल में हुआ. इसको समझने की जरूरत है. यह समस्या खत्म होने के करीब है. जिसे सरकार को समझ कर उसके समापन की ओर प्रयास करना चाहिए. सेना और पुलिस को जो काम करना था वह उन्होंने कर दिया है.बातचीत के जरिए इस समस्या का समाधान हो सकता है. न कि मारों और मरो की तर्ज पर इस समस्या का समधान किया जाए. यही कई साल से होता आ रहा है. वो 10 जवानों को शहीद करते हैं. हम 20 नक्सलियों को मारते हैं. लेकिन यह नहीं हो पाया है. राजनीतिक रूप से इसके समाधान की जरूरत है.

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