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human elephant conflict: कोरबा में हाथियों की दहशत, करीब 100 हाथी शहर के करीब पहुंचे, लगातार बढ़ रहा दायरा

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Published : Mar 3, 2023, 11:13 PM IST

छत्तीसगढ़ के कोरबा जिले में करीब 100 हाथियों की दहशत है. कटघोरा और कोरबा वन मंडल मिलाकर 17, 45 और ऐसे कई टुकड़ों में हाथियों का दल बंटा हुआ है. लगातार ऐसे मामले सामने आ रहे हैं, जब हाथियों के दल शहर के पास पहुंच रहे हैं. ऐसे में सवाल ये उठता है कि हाथी मानव द्वंद्व को रोकने के लिए किस तरह के उपाय करना चाहिए? वन विभाग तर्क देता है कि हर संभव प्रयास करते हैं, जबकि जानकारों का मानना है कि कोरबा वन विभाग की तमाम कोशिशें नाकाफी हैं. korba latest news

human elephant conflict
कोरबा में हाथियों की दहशत

कोरबा में हाथियों की दहशत

कोरबा: अंबिकापुर कटघोरा नेशनल हाईवे पर बुधवार को 17 हाथियों के दल की वजह से काफी देर तक आवागमन बाधित रहा. कुछ दिन पहले करीब 50 हाथियों का एक दल शहर के नजदीक सर्वमंगला मंदिर के करीब आ गया था. करीब 100 हाथियों की वजह से कोरबा और आसपास के इलाकों के लोग दहशत में हैं.

कोरबा वनमंडल एसडीओ आशीष खेललवार का कहना है कि ''अभी हाथियों के 2, 3 दल कोरबा वन मंडल में घूम रहे हैं. एक दल मांड नदी को पार करते हुए धरमजयगढ़ वनमंडल में प्रवेश कर गया है. हाथी लगातार अपना क्षेत्र बदलते हैं. कोरबा, धरमजयगढ़ और आसपास के इलाके उन्हें सूट करते हैं. यही कारण है कि हाथी यहां लगातार पहुंच जाते हैं. हालांकि वन विभाग की ओर से हर संभव प्रयास किया जाता है.''

सस्टेनेबल डेवलपमेंट जरूरी: शासकीय ईवीपीजी अग्रणी महाविद्यालय में जूलॉजी विभाग के एचओडी बलराम कुर्रे कहते हैं कि ''हमें सस्टेनेबल डेवलपमेंट की ओर बढ़ना होगा. हाथियों के शहर की ओर रुख करने का सबसे बड़ा कारण यह है कि हाथी एक सामाजिक प्राणी होता है. वह अपने समूह में रहना पसंद करता है. एक हाथी यदि शहर के करीब आ जाता है तो इसका मतलब यह है कि वह समूह से बिछड़ गया है. लेकिन जब हाथियों का एक पूरा का पूरा दल शहर के करीब आ रहा है तो इसका मतलब यह है कि उन्हें जंगल में अनुकूल वातावरण नहीं मिल रहा है. वह इसी की तलाश में शहर के करीब आ रहे हैं.''

बलराम कुर्रे के मुताबिक ''हमें जंगलों की कटाई से लॉस ऑफ वेजिटेशन को रोकना होगा. टावर लगाना कम करना होगा और ठोस उपाय करने होंगे. जिससे सस्टेनेबल डेवलपमेंट किया जा सके. हमारे वाइल्डलाइफ का जीवन भी बचा रहे और विकास का काम भी चलता रहे.''

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खनन परिवहन परियोजनाओं को नहीं देनी चाहिए अनुमति: वन्य जीव और पर्यावरण मामलों के जानकार आलोक शुक्ला का कहना है कि "छत्तीसगढ़ में हाथियों का रहवास पुराने समय से रहा है. लेकिन अब हाथियों के रहवास वाले क्षेत्र में बड़ी खनन परियोजनाओं को अनुमति दी जा रही है. राष्ट्रीय स्तर के रिसर्च में भी यह बात सामने आ चुकी है कि यदि हसदेव अरण्य क्षेत्र में खनन परियोजनाओं को अनुमति दी गई और खनन हुआ तो हाथी मानव द्वंद अपने चरम पर होगा. वह इतना विकराल रूप ले लेगा कि इसे रोकना असंभव हो जाएगा.''

आलोक शुक्ला कहते हैं '' कई रिसर्च आ चुके हैं, जिसमें इन बातों का उल्लेख है कि हाथियों के रहवास क्षेत्र में खनन परियोजनाओं को अनुमति मिलने पर यह समस्या अपने चरम पर होगी. लेकिन दु:खद पहलू यह है कि ऐसे तमाम रिपोर्ट को ताक पर रखते हुए सरकार खनन परियोजनाओं को लगातार अनुमति दे रही है. इससे हाथी कॉरिडोर और उनके आवागमन वाला रूट नष्ट हो रहा है. इसकी वजह से हाथी और मानव द्वंद्व लगातार बढ़ रहा है.''

हाथी रिजर्व ने अब तक नहीं लिया मूर्त रूप: केंद्र और प्रदेश दोनों ही सरकारों की महत्वकांक्षी परियोजना लेमरु हाथी रिजर्व ने अब तक नहीं बना लिया है, जबकि यह परिकल्पना दशक से भी ज्यादा पुरानी है. हालांकि इसके तहत कुछ काम जरूर हुए हैं. हाथियों का रहवास विकसित किया गया. उन्हें जंगलों में रखने के लिए पानी और भोजन का इंतजाम कुछ हद तक किया गया है. लेकिन जब तक हाथी रिजर्व पूरी तरह से मूर्त रूप नहीं ले लेता, तब तक हाथियों को पूरी तरह से जंगलों तक रोक पाना आसान नहीं है. जानकार भी यही मानते हैं कि हाथियों के लिए जंगल में ही पर्याप्त इंतजाम करने होंगे.

छत्तीसगढ़ में लगभग ढाई सौ हाथी: हाथियों की संख्या का निर्धारण करने के लिए विभाग ने एक सर्वे कराया था. जिसके अनुसार छत्तीसगढ़ में लगभग 250 हाथी मौजूद हैं. काफी तादात में हाथी ओडिशा और झारखंड की ओर से भी छत्तीसगढ़ में माइग्रेट हुए हैं. सरगुजा, कोरबा और रायगढ़ के जंगल हाथियों को काफी लुभाते हैं. ये इलाका इनका एक तरह से स्थाई निवास हो गया है. लेकिन अब हाथियों की संख्या लगातार बढ़ रही है. प्रदेश के गरियाबंद, जशपुर से होते हुए हाथियों का दायरा लगातार बढ़ रहा है.

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