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मोरबी ब्रिज हादसे के लिए कौन जिम्मेदार! उठ रहे कई सवाल

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Published : Oct 31, 2022, 9:17 PM IST

Bridge accident in Morbi
मोरबी में ब्रिज हादसा

गुजरात के मोरबी में ब्रिज हादसे के बाद कई सवाल उठ रहे हैं. मामले की जांच जारी है और यकीनन कुछ दिनों बाद जांच के कुछ ना कुछ नतीजे तो आ ही जाएंगे. 134 लोगों मौतों से जुड़ी इस बड़ी लापरवाही को लेकर अब कई बातें सामने आ रही हैं. हादसे को लेकर हैरानी की ऐसी कई सारी बातें हैं जिसपर शायद ध्यान दिया गया होता तो शायद इतना भयानक मंजर देखने को नहीं मिलता. पढ़िए पूरी रिपोर्ट...

मोरबी (गुजरात) : गुजरात के मोरबी में रविवार को हुए ब्रिज हादसे में मरने वालों की संख्या 134 हो गई है. ये केबल ब्रिज मच्छु नदी पर बना था. रविवार शाम ब्रिज अचानक से टूट गया और सैकड़ों लोग नदी में समा गए. हादसे के बाद कई सवाल खड़े हो गए हैं कि आखिर केबल पुल के गिरने की वजह क्या है, इसका प्रभारी कौन है, क्या इसके लिए मंजूरी दी गई थी आदि. बताया जाता है कि रविवार होने की वजह से ब्रिज देखने के लिए 400 से अधिक लोग वहां पहुंचे थे. समझा जाता है कि पुल पर अधिक संख्या में लोगों के चढ़ जाने की वजह से यह पुल गिर गया. पुल गिरने से 56 बच्चों सहित 134 लोगों की मौत हो गई. हालांकि कई लोगों को बचा भी लिया गया. केबल ब्रिज की क्षमता 100 लोगों की थी, फिर पुल पर करीब 400 से 500 लोग आए और अन्य आंकड़ों के अनुसार, चार दिनों में 12,000 लोग पुल पर गए.

1880 में बनवाया गया था पुल : मोरबी में मच्छु नदी पर इस पुल का उद्घाटन मुंबई के गवर्नर रिचर्ड टेम्पल ने 20 फरवरी, 1879 को किया था. उस वक्त इसे बनाने में करीब 3.5 लाख रुपये खर्च हुए थे. इस पुल के निर्माण का सारा सामान ब्रिटेन से आया था. यह पुल 1880 में बनकर तैयार हुआ था. इस पुल की लंबाई 765 फीट थी. आसान शब्दों में कहें तो यह पुल 1.25 मीटर चौड़ा और 230 मीटर लंबा था. यह पुल भारत की आजादी के संघर्ष का गवाह भी रहा है. यह भारत के सबसे पुराने पुलों में से एक था, इसलिए यह टूरिस्ट प्लेस बन चुका था.

6 महीने की मरम्मत के बाद खोला गया था : यह पुल पिछले 6 महीने से मरम्मत की वजह से लोगों के लिए बंद था. जीर्णोद्धार के बाद इसे शुरू किया गया था. पुल की मरम्मत का कार्य इंजीनियरों, ठेकेदारों और एक समूह के द्वारा पूरा किया गया था. इन 6 महीनों में पुल की मरम्मत पर करीब 2 करोड़ रुपये खर्च हुए थे. वहीं जिंदल कंपनी ने इस हैंगिंग ब्रिज के नवीनीकरण के लिए प्राथमिक सामग्री का प्रोडक्शन किया. वहीं पुल के लिए एक विशिष्ट गुणवत्ता की एल्यूमीनियम शीट भी बनाई गई थी जो हल्की होती है.

बिना फिटनेस सर्टिफिकेट के कैसे खुला पुल : मोरबी नगर पालिका के मुख्य अधिकारी संदीप सिंह जाला ने कहा, पुल को 15 साल के लिए संचालन और रखरखाव के लिए ओरेवा कंपनी को दिया गया था. इस साल मार्च में, इसे मरम्मत के लिए जनता के लिए बंद कर दिया गया था. 26 अक्टूबर को गुजराती नववर्ष दिवस पर मरम्मत के बाद इसे फिर से खोल दिया गया था. निर्माता के अनुसार पुल को 15 साल तक चलना था लेकिन खोले जाने के चौथे दिन हैंगिंग ब्रिज गिर गया.

अपराधियों को नहीं बख्शा जाएगा: मोरबी रेंज के आईजी अशोक यादव के मुताबिक घटना को लेकर पुलिस ने प्राथमिकी दर्ज कर ली है और दोषियों के खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी. विशेष जांच दल के गठन के साथ जांच शुरू हो चुकी है. उन्होंने कहा कि संदिग्धों से पूछताछ के बाद अन्य लोगों के खिलाफ कानूनी कार्रवाई की जाएगी.

वहीं अग्निशमन सेवा के सूत्रों के अनुसार, किसी भी नए पुल के निर्माण को शुरू करने से पहले क्षमता का मूल्यांकन करना महत्वपूर्ण है. जिसमें उस स्थान को ध्यान में रखते हुए प्रत्येक वस्तु की जांच की जाती है. इसके बाद व्यापक परीक्षण और मूल्यांकन के बाद ही एक पुल का फिटनेस प्रमाणपत्र जारी किया जाता है. हालांकि प्रत्येक नगर पालिका के अपने मानदंड होते हैं.

इस संबंध में गुजरात इंस्टीट्यूट ऑफ सिविल इंजीनियर्स एंड आर्किटेक्ट्स के अध्यक्ष वत्सल पटेल ने ईटीवी भारत के साथ बातचीत में कहा कि अगर किसी इमारत, पुल या मनोरंजन पार्क में सवारी है तो उसे फिटनेस प्रमाणपत्र प्राप्त करना होगा. उन्होंने कहा कि राज्य का कौन सा नगर निगम, नगर पालिका या आर एंज डी विभाग विभिन्न बिंदुओं से पूरे निर्माण की जांच करता है? सामग्री, परीक्षण और दस्तावेज सभी सत्यापित होने के बाद ही फिटनेस सर्टिफिकेट दिया जाता है. भार क्षमता संरचना की भार क्षमता निर्माण से पहले केवल डिजाइन चरण के दौरान ही स्थापित की जा सकती है. यह देखने के लिए जांच की जाती है कि सामग्री का उपयोग भार क्षमता के अनुसार किया जा रहा है या नहीं, इसलिए यह काफी महत्वपूर्ण होता है.

15 वर्षों के लिए ओरेवा ग्रुप को दी गई थी पुल के रख-रखाव की जिम्मेदारी : मच्छू नदी पर बने सस्पेंशन ब्रिज के रखरखाव का जिम्मा गुजरात की एक प्रतिष्ठित कंपनी ओरेवा ग्रुप के पास था. बता दें कि ओरेवा ग्रुप वही कंपनी है जो घर-घर में मौजूद अजन्ता ब्रांड की घड़ियों का निर्माण करती है. ओरेवा ग्रुप को कंपनी के संचालन और रखरखाव की जिम्मेदारी 15 वर्षों के लिए दी गई थी. इसी वर्ष मार्च में ब्रिज के पुनरुद्धार के लिए इसे बंद कर दिया गया था.

38 साल पहले टिकट की कीमत थी 15 पैसे: 38 साल पहले इस ब्रिज का पास सिर्फ 15 पैसे और 2 रुपए महीने का चार्ज लगता था. लेकिन वर्तमान में इस केबल ब्रिज को पार करने में 17 रुपये का खर्च आता है.

जांच के लिए बनी पांच सदस्यीय कमेटी : गुजरात सरकार ने हादसे की जांच के लिए पांच सदस्यीय कमेटी का गठन किया है. जांच कमेटी में राजकुमार बेनीवाल, आईएएस नगर प्रशासन आयुक्त के अलावा के. पटेल, मुख्य अभियंता गुणवत्ता नियंत्रण, आर एंड डी डिवीजन गांधीनगर, डॉ गोपाल टैंक, एचओडी स्ट्रक्चरल इंजीनियरिंग, एलडी इंजीनियरिंग कॉलेज अहमदाबाद, संदीप वसावा, सचिव सड़क और भवन और सुभाष त्रिवेदी, आईजी- सीआईडी अपराध को शामिल किया गया है.

केबल पुलों में भार क्षमता महत्वपूर्ण: अहमदाबाद में एआईटी कॉलेज के सिविल इंजीनियरिंग विभाग में सहायक प्रोफेसर किशनभाई पटेल ने ईटीवी भारत को बताया कि मोरबी केबल पुल जैसे पुलों में केबल की क्षमता की विशेष जांच की जाती है. इसलिए, फिटनेस सर्टिफिकेट केवल लोड क्षमता, केबल ब्रिज पर किए जा सकने वाले वजन की मात्रा और आगंतुकों की अनुमति के निर्धारण के बाद ही जारी किया जाता है. उन्होंने कहा कि प्रत्येक केबल ब्रिज की भार क्षमता पर सावधानीपूर्वक विचार किया जाना चाहिए.

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