ETV Bharat / bharat

केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट से कहा- राजद्रोह कानून की समीक्षा पर परामर्श के अग्रिम चरण में सरकार

author img

By

Published : May 1, 2023, 3:50 PM IST

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई अगस्त तक के लिए टाल दी है. इस संबंध में केंद्र ने कोर्ट से कहा कि दंडात्मक प्रावधान की समीक्षा पर सरकार परामर्श अग्रिम दौर में है. मामले पर अगस्त के दूसरे सप्ताह में अब सुनवाई होगी.

Supreme Court
सुप्रीम कोर्ट

नई दिल्ली : सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने राजद्रोह कानून को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई सोमवार को केंद्र के यह कहने के बाद अगस्त तक के लिए टाल दी कि औपनिवेशिक युग के दंडात्मक प्रावधान की समीक्षा पर सरकार परामर्श के अग्रिम चरण में है. प्रधान न्यायाधीश न्यायमूर्ति डी. वाई. चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे. बी. परदीवाला की पीठ ने अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी की इस दलील पर गौर किया कि सरकार ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124ए की समीक्षा की प्रक्रिया शुरू कर दी है. न्यायालय मामले पर अब अगस्त के दूसरे सप्ताह में सुनवाई करेगा.

याचिकाओं में दंडात्मक प्रावधान की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई है. वेंकटरमणी ने कहा कि परामर्श की प्रक्रिया अग्रिम चरण में है और इसे संसद में भेजे जाने से पहले उन्हें दिखाया जाएगा. उन्होंने पीठ से आग्रह किया,'कृपया मामले को संसद के मानसून सत्र के बाद आगे की सुनवाई के लिए सूचीबद्ध करें.' शुरुआत में, वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने पीठ से मुद्दों पर निर्णय लेने के लिए सात न्यायाधीशों की एक पीठ गठित करने का आग्रह किया.

पीठ ने कहा कि अगर मामला सात न्यायाधीशों के पास भी जाना है तो पहले इसे पांच न्यायाधीशों की पीठ के सामने रखना होगा. पिछले साल 11 मई को एक ऐतिहासिक आदेश में शीर्ष अदालत ने राजद्रोह संबंधी औपनिवेशिक युग के दंडात्मक कानून पर तब तक के लिए रोक लगा दी थी जब तक कि उचित सरकारी मंच इसकी समीक्षा नहीं करता. इसने केंद्र और राज्यों को इस कानून के तहत कोई नयी प्राथमिकी दर्ज नहीं करने का निर्देश दिया था.

शीर्ष अदालत ने व्यवस्था दी थी कि देशभर में राजद्रोह कानून के तहत जारी जांच, लंबित मुकदमों और सभी कार्यवाही पर भी रोक रहेगी. 'सरकार के प्रति असंतोष' पैदा करने से संबंधित राजद्रोह कानून के तहत अधिकतम आजीवन कारावास तक की सजा का प्रावधान है. इसे स्वतंत्रता से 57 साल पहले और भादंसं के अस्तित्व में आने के लगभग 30 साल बाद 1890 में लाया गया था. स्वतंत्रता से पहले इस कानून का इस्तेमाल महात्मा गांधी और बाल गंगाधर तिलक सहित विभिन्न स्वतंत्रता सेनानियों के खिलाफ किया गया था.

पिछले कुछ वर्षों में, इस कानून के तहत दर्ज किए गए मामलों की संख्या बढ़ी है. राजनीतिक नेताओं-नवनीत और रवि राणा, लेखक अरुंधति रॉय, छात्र कार्यकर्ता उमर खालिद और पत्रकार सिद्दीक कप्पन उन लोगों में शामिल हैं, जिन पर इस प्रावधान के तहत आरोप लगाए गए हैं.

ये भी पढ़ें - Supreme Court : रिश्ते में आई दरार नहीं भरी तो शादी खत्म की जा सकती है : न्यायालय

(पीटीआई-भाषा)

ETV Bharat Logo

Copyright © 2024 Ushodaya Enterprises Pvt. Ltd., All Rights Reserved.