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power crisis : भारत में ब्लैकआउट का खतरा, पावर हाउस में क्यों कम पड़ गया कोयला ?

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Published : Oct 9, 2021, 7:56 PM IST

देश में ब्लैकआउट का खतरा मंडराने लगा है. दुनिया के दूसरे सबसे बड़े कोयला आयातक भारत के पास अब पर्याप्त स्टॉक ही नहीं है. जबकि भारत में अपने कोयला के खादान हैं. खादानों के मामले में भारत विश्व में चौथे नंबर पर है, मगर यहां के पावर प्लांट में कोयले का स्टॉक बहुत कम हो गया है.

Power Crisis  coal crisis in
Power Crisis coal crisis in

हैदराबाद : देश में बिजली संकट गहराने लगा है. दिल्ली में पावर डिस्ट्रिब्यूशन कंपनी टाटा पावर ने लोगों को कटौती का संदेश भेज दिया है. अघोषित कटौती जारी है. राजस्थान के जयपुर और पंजाब के पटियाला जैसे शहरों में 4-4 घंटे की बिजली कटौती शुरू हो गई है. यूपी समेत पूरे देश में भी किल्लत का असर दिखने लगा है. दिल्ली के सीएम अरविंद केजरीवाल और आंध्र के मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को चिट्ठी लिखकर पावर प्लांट्स को पर्याप्त कोयले की आपूर्ति की मांग की है.

  • Delhi could face a power crisis. I am personally keeping a close watch over the situation. We are trying our best to avoid it. In the meanwhile, I wrote a letter to Hon’ble PM seeking his personal intervention. pic.twitter.com/v6Xm5aCUbm

    — Arvind Kejriwal (@ArvindKejriwal) October 9, 2021 " class="align-text-top noRightClick twitterSection" data=" ">

बताया जा रहा है कि देश में कोयले की किल्लत के कारण बिजली संकट शुरू हुआ है. देश के कुल 135 पावर प्लांट्स में बिजली का उत्पादन कोयले से होता है. इन प्लांट्स से ही देश की 70 फीसदी बिजली का उत्पादन होता है. हालत यह है कि अभी 72 प्लांट के पास सिर्फ 3 तीन का कोयला स्टॉक है. 50 प्लांट के पास सिर्फ 10 दिनों का भंडार है.

पूरी दुनिया में कोयला अचानक महंगा हो गया

भारत के पास 300 अरब टन का कोयला भंडार है. फिर भी पावर हाउस के लिए इंडोनेशिया, ऑस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों से 2.22 करोड़ टन कोयले का आयात किया जाता है. पिछले दो महीनों में देश में कोयला का उत्पादन कम हुआ. मॉनसून सीजन में अक्सर भारत में भी कोयले का उत्पादन कम होता है, क्योंकि भारत के कोयला खादानों में अब भी पुराने तरीकों से ही खनन होता है.

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भारत के कोयला खादानों में अभी भी ट्रडिशनल तरीके से खनन होता है. मॉनसून सीजन में कोयले का उत्पादन कम हो जाता है.

दूसरी ओर बिजली की ख़पत 2019 के मुकाबले में 17 प्रतिशत बढ़ गई है. इस बीच दुनियाभर में कोयले के दाम 40 फ़ीसदी तक बढ़ गए. 2021 की शुरुआत का आंकड़ा देखें, इंडोनेशिया में कोयले की कीमत 60 डॉलर प्रति टन थी जो अब बढ़कर 200 डॉलर प्रति टन हो गई है. इस कारण भारत का कोयला आयात दो साल के निचले स्तर पर पहुंच गया. कुल मिलाकर पावरहाउस को कोयले की आपूर्ति में गड़बड़ी हुई.

अचानक भारत में क्यों बढ़ी बिजली की डिमांड

लॉकडाउन खत्म होने के बाद उद्योग फिर पटरी पर आए. गर्मी के कारण घरों की बिजली की मांग बढ़ी. इससे बिजली की डिमांड और सप्लाई का बैलेंस लड़खड़ाने लगा. ऊर्जा मंत्रालय के अनुसार 2019 में अगस्त-सितंबर महीने में बिजली की कुल खपत 10 हजार 660 करोड़ यूनिट प्रति महीना थी, जो 2021 में बढ़कर 12 हजार 420 करोड़ यूनिट प्रति महीने तक पहुंच गया है. अभी फेस्टिव सीजन शुरू हो गए हैं. माना जा रहा है कि अभी डिमांड और बढ़ेगी.

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लॉकडाउन के बाद भारत के उद्योगों में भी बिजली की मांग बढ़ी है.

नैचुरल गैस की कीमत भी बढ़ी, बिजली महंगी होगी!

भारत में एनटीपीसी के प्लांट में नैचुरल गैस से बिजली बनती है. एनटीपीसी के अन्ता प्लांट से बिजली पावर ग्रिड कॉरपोरेशन के माध्यम से राजस्थान, यूपी, हरियाणा, दिल्ली, हिमाचल समेत कई राज्यों में भेजी जाती है. मगर अभी नैचुरल गैस की वैश्विक कमी है. COVID-19 प्रतिबंधों में ढील के बाद विश्व के कई देश एक साथ ईंधन का स्टॉक करने में जुटे हैं. इस कारण नैचुरल गैस की कीमत भी बढ़ी है. बिजली के लिए इसका उपयोग अभी महंगा साबित हो रहा है.

चीन की डिमांड ने भी कोयले को बनाया 'काला सोना'

इसके अलावा चीन भी पिछले मार्च से ही कोयले की कमी से जूझ रहा है. उसने अपने खादानों में उत्पादन कर दिया . वहां भी बिजली संकट के कारण पूर्वोत्तर चीन के कुछ हिस्सों में बिजली कटौती की जा रही है. इसके अलावा उद्योगों को भी राशन के तहत सप्ताह में चार दिन बिजली सप्लाई हो रही है. शहरों में लोगों को घरों में वॉटर हीटर और माइक्रोवेव के उपयोग नहीं करने की सलाह दी गई है. इस संकट से निपटने के लिए चीन भी अंतरराष्ट्रीय बाजार से कोयला खरीद रहा है. दो बड़ी अर्थव्यवस्था जब कोयले की पीछे पड़ी है तो उसके रेट बढ़ना स्वाभाविक है.

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हाइड्रो पावर और सोलर पावर से बिजली का उत्पादन अभी भी कम ही हो रहा है.

वैकल्पिक ऊर्जा पर सरकारों का सुस्त रवैया

अभी तक भारत में हाइड्रो प्रोजेक्टस से 12 फीसद बिजली ही बनती है. परमाणु ऊर्जा से दो फीसदी डिमांड पूरी होती है. 21 फीसदी सौर और गैस के जरिये उत्पादन होता है. यानी सारा दारोमदार कोयले पर ही टिका है. अगर वैकल्पिक ऊर्जा के उपाय नहीं किए गए तो भारत में वर्ष 2023 तक कोयले की मांग एक अरब टन पार हो जाएगी. कोल इंडिया के अनुसार, 2030 तक भारत को 175 करोड़ टन कोयले की जरूरत होगी. पावर कॉरपोरेशन के अधिकारियों के मुताबिक 15 अक्टूबर से पहले कोयले की सप्लाई में किसी भी तरह का सुधार होता नहीं दिख रहा है.

हालात सुधरने के लिए सर्दी का इंतजार करना होगा. सर्दियों में बिजली की घरेलू मांग कम हो जाती है. इस बीच भारतीय खादानों से कोयले का उत्पादन भी पटरी पर आ जाएगा. फिलहाल एक महीने कटौती के लिए तैयार रहना ही बेहतर है.

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