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शराबबंदी पर शिक्षा विभाग का फरमान बना बिहार सरकार के गले की फांस

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Published : Jan 31, 2022, 9:27 PM IST

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प्रतीकात्मक फोटो

बिहार में शिक्षा विभाग के फरमान पर घमासान मचा हुआ है. शिक्षकों को शराब माफिया की जानकारी देने का निर्देश (Education Department Order on Prohibition) देने को लेकर क्या पक्ष और विपक्ष, चौतरफा विरोध हो रहा है. हालांकि अब तक शिक्षा विभाग की तरफ से इसे वापस लेने का कोई संकेत नजर नहीं आया है, लेकिन विपक्ष के साथ-साथ शिक्षकों ने भी सरकार के इस आदेश को पूरी तरह नकार दिया है. पढ़ें खास रिपोर्ट.

पटना : बिहार में शराबबंदी कानून (Liquor Prohibition Law in Bihar) को सख्ती से लागू कराने के लिए जब से शिक्षा विभाग का नया फरमान आया है, तब से बिहार में घमासान मच गया है. शराबबंदी पर शिक्षा विभाग का फरमान (Education Department Order on Prohibition) न तो शिक्षकों को पसंद आ रहा है और न ही सियासी दलों के नेताओं को रास आ रहा है. विपक्ष के साथ-साथ बीजेपी के भी नेता इस पर सवाल उठा रहे हैं.

दरअसल सबसे पहले हमें समझना होगा कि बिहार में सरकारी स्कूल के शिक्षक पठन-पाठन के अलावे कितने अन्य तरह के काम करते हैं. जनगणना और मतगणना, चुनाव कार्य, मिड डे मील का संचालन, बाजार से मिड डे मील की सामग्रियों की खरीद, बूथ लेवल ऑफिसर का काम, गांव में बच्चों के नामांकन को लेकर जागरूकता बढ़ाना, सरकार के द्वारा विभिन्न तरीके के काम को लेकर प्रभात फेरी निकालना, बच्चों में अल्बेंडाजोल की दवा का वितरण, मलेरिया फाइलेरिया की दवा का वितरण, आयरन की गोली का वितरण, छात्रवृत्ति का वितरण करना और रिपोर्ट तैयार करना शामिल है.

देखें यह रिपोर्ट

साथ ही सेनेटरी नैपकिन का वितरण करना और उपयोगिता देना, पोशाक का वितरण और रिपोर्ट तैयार करना, मेधा सॉफ्ट में छात्रों की एंट्री शिक्षा समिति का चुनाव करवाना, शिक्षा समिति के चुने हुए सदस्यों का प्रशिक्षण, साइकिल का वितरण करना, छात्रों का सूचीकरण करना, इंस्पायर अवार्ड के लिए ऑनलाइन नामांकन करवाना, दहेज बंदी के लिए शपथ लेना और जन जागरण करना, जल जीवन हरियाली के लिए शपथ और जनजागरण कराना, बाल विवाह रोकने के लिए काम करना, मानव श्रृंखला बनाने के लिए जन जागरण और सहयोग करना, कोरोनावायरस काल में बच्चों के बीच चावल वितरण करना, इलेक्शन में गाड़ी पकड़ने से लेकर बूथ के सारे काम और मतगणना तक और उसके बाद सर्टिफिकेट देने तक का काम करना, राशन की दुकान पर बैठकर कम राशन का वितरण ना हो, उसके लिए ड्यूटी करना शामिल है.

इसके अलावे अनामांकित छात्रों की गणना करना, अनपढ़ और निरक्षरों की गणना करना, अनपढ़ों को शिक्षा देने का काम करना, कोरोना काल में क्वारंटीन सेंटर पर ड्यूटी, कोरोना जांच केंद्र पर ड्यूटी, प्रवासी मजदूरों का लिस्ट बनाकर उनके पुनर्वास की व्यवस्था करना, राशन कार्ड का वितरण करना और हाउसहोल्ड सर्वे करना शामिल है. इतने सारे काम के बाद अब सरकार ने उन्हें एक और टास्क सौंप दिया है.

हालांकि शिक्षा विभाग के अधिकारी इसे टास्क नहीं बल्कि एक अपील बता रहे हैं लेकिन जो निर्देश शिक्षा विभाग की तरफ से सभी जिला शिक्षा पदाधिकारियों को जारी हुआ है, उसमें स्पष्ट तौर पर लिखा गया है कि यह निर्देश शिक्षकों को जारी किया जाए कि उन्हें टोल फ्री नंबर पर शराब पीने वाले और शराब का उपयोग किसी भी तरह करने वाले की जानकारी देनी होगी.

एक सरकारी हाई स्कूल की शिक्षिका अर्चना ने ईटीवी भारत को बताया कि सरकार ने शिक्षकों को बेहद खतरनाक काम सौंप दिया है, यह कहीं से भी उचित नहीं है. इससे शिक्षकों की जान को खतरा है. उन्होंने कहा कि सरकार के पास पहले से शराब माफिया को पकड़ने के लिए एक सिस्टम बना हुआ है और सरकार को उसी सिस्टम के तहत यह काम करना चाहिए. अर्चना ने कहा कि शिक्षकों को लेकर जारी इस आदेश को अविलंब वापस लेना चाहिए.

बीजेपी विधान पार्षद नवल किशोर यादव (BJP MLC Naval Kishore Yadav) तो पहले से ही शिक्षकों के पक्ष में खड़े हैं. इस आदेश को लेकर सरकार पर सीधे-सीधे निशाना साध रहे हैं. उन्होंने स्पष्ट कहा कि यह आदेश बिल्कुल गैर जिम्मेदाराना है. अब बालू माफिया को पकड़ने के लिए क्या सरकार विश्वविद्यालयों के वीसी को लगाएगी. उन्होंने शिक्षकों से अपील की है कि वह इस निर्देश को मानने से इंकार कर दें.

वहीं, इस पूरे मामले पर पूर्व मंत्री और आरजेडी प्रदेश अध्यक्ष जगदानंद सिंह (RJD State President Jagdanand Singh) ने कहा कि नीतीश कुमार के इस निर्देश से सिर्फ बिहार की जगहंसाई होगी और कुछ नहीं होगा. अगर सरकार के पास शराबबंदी लागू करने के लिए पुलिस कम पड़ रही है तो बड़ी संख्या में पुलिस की नियुक्ति कर लें. अगर एक्साइज अधिकारी कम पड़ रहे हैं तो उनकी नियुक्ति करें. वे शिक्षकों से पढ़ाई के अलावा दूसरा काम कैसे करा सकते हैं, वह भी तब जब ये अत्यंत खतरनाक काम है और जिसे पकड़ने में अक्सर पुलिस भी कितना नाकाम रह रही है.

जेडीयू एमएलसी संजीव कुमार सिंह ने भी शिक्षकों से पियक्कड़ों की जासूसी करने वाले सरकारी आदेश को बेतुका बताते हुए शिक्षा मंत्री से इस आदेश को तुरंत रद्द करने की मांग की है. उन्होंने अपने पत्र में सुप्रीम कोर्ट के एक आदेश का हवाला भी दिया गया है कि शिक्षकों से गैर शैक्षणिक कार्य नहीं कराया जा सकता. इधर शिक्षा विभाग के अपर मुख्य सचिव संजय कुमार ने कहा है कि यह कोई आदेश नहीं है. यह तो नैतिकता का मामला है. अगर किसी अपराध की जानकारी आप नैतिकता के आधार पर नहीं देते तो इसे क्राइम नहीं माना जाता है.

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कुल मिलाकर देखा जाए तो कोर्ट का यह आदेश स्पष्ट है कि शिक्षकों को पढ़ाई के अलावा सिर्फ चुनाव ड्यूटी, आपदा के किसी काम या जनगणना में लगाया जा सकता है. अन्य किसी दूसरे काम में नहीं लेकिन बिहार में शिक्षकों के जिम्मे तमाम काम सौंप दिए गए हैं. अब इस नए आदेश को लेकर भी शिक्षा विभाग पीछे हटने को तैयार नहीं है. शिक्षा विभाग की मंशा है कि बिहार में फिलहाल काम कर रहे करीब चार लाख शिक्षक और नए बहाल होने वाले शिक्षकों को मिलाकर लाखों शिक्षक अवैध शराब पर नजर रखेंगे तो शराबबंदी को जड़ से खत्म करने में मदद मिलेगी लेकिन विरोध को देखते हुए कहीं न कहीं सरकार इस मामले में उलझती नजर आ रही है. अब देखना होगा कि आने वाले दिनों में इस मामले का पटाक्षेप कैसे होता है.

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