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चीन में बढ़ी हिमालयी सीबकथॉर्न फल की मांग

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Published : Aug 4, 2021, 9:36 PM IST

सीबकथोर्न फल
सीबकथोर्न फल

किसी समय में लोग सीबकथोर्न फल को हिमालय में पाई जाने वाली झाड़ी भर समझते थे,बाद में पता लगा कि इसके फल समेत इसकी पत्तियां, तना, इसकी जड़ें और इसमें लगे कांटे भी काफी फायदेमंद हैं. इस फल का ज्‍यादातर प्रयोग दवाइयों (Medicines), सप्‍लीमेंट्स (Supplements) बनाने तक में किया जाता है.

कुल्लू: भारत के पश्चिमी हिमालयी इलाकों में जंगली फल के रूप में विख्यात सीबकथोर्न (Seabuckthorn) अब लोगों की तस्वीर बदल रहा है. सीबकथोर्न जहां पहले जंगली इलाकों में झाड़ियों के रूप में ही पाया जाता था तो वहीं, कुछ जगहों पर इसकी खेती भी की जा रही है. छोटे से फल के इतने फायदे हैं कि इसका उपयोग कई गंभीर बीमारियों के इलाज में भी किया जा रहा है. वहीं, इसके औषधीय गुणों को देखते हुए चीन में भी इसकी काफी डिमांड है.

भारत में भी अब कई दवा कंपनियों के द्वारा सीबकथोर्न के उत्पाद तैयार किए जा रहे हैं. इसमें सीबकथोर्न के फलों का जूस और पाउडर शामिल है. इतना ही नहीं बीपी (Blood Pressure) और मोटापा कम करने के लिए इसकी पत्तियों की चाय भी अब बाजारों में उपलब्ध है. करीब दो दशक पहले हिमाचल प्रदेश के हिमालयी इलाकों में खास प्रकार के बेरी फ्रूट को खोजा गया था. इस फल का नाम है. सीबकथॉर्न आज दो दशक बाद यही फल यहां के लोगों की जिंदगियां बदल रहा है.

सीबकथोर्न फल यहां पर लाहौल-स्‍पीति में बहुत ऊंचाई पर ठंडे रेगिस्‍तान में भरपूर मात्रा में पाया जाता है. लाहौल स्पीति की आबादी और पर्यावरण के लिए सीबकथोर्न को वरदान माना जाने लगा है और स्थानीय बोली में इसे छरमा भी कहा जाता है. यह फल एक ऐसा फल है जो शरीर में मिनरल्स, प्रोटीन और विटामिन (Mineral, protein and vitamin) सहित कई पोषक तत्वों (Nutrients) की कमी को भरी पूरा करता है.

किसी समय में लोग सीबकथोर्न को हिमालय में पाई जाने वाली झाड़ी भर समझते थे, मगर बाद में पता लगा कि इसके फल समेत इसकी पत्तियां, तना, इसकी जड़ें और इसमें लगे कांटे भी काफी फायदेमंद हैं. इस फल का ज्‍यादातर प्रयोग दवाइयों (Medicines), सप्‍लीमेंट्स (Supplements) बनाने तक में किया जाता है. हिमालयी इलाकों में होने वाला यह फल -43 डिग्री तापमान से लेकर +40 डिग्री के तापमान में भर पनप जाता है. इसकी जड़ें इतनी फायदमेंद हैं कि वो पर्यावरण में नाइट्रोजन गैस (nitrogen gas) के संतुलन को बरकरार रखती हैं और मिट्टी को खत्‍म होने से बचाती हैं.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस फल को एनर्जी ड्रिंक बताया

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी साल 2019 में हुए एक कार्यक्रम में बताया था कि कैसे इस फल का प्रयोग हर्बल टी (herbal tea) से लेकर एनर्जी ड्रिंक (energy drink) तक में किया जा रहा है. एक कार्यक्रम में उन्‍होंने बताया था कि ऊंचाई वाले इलाकों में तैनात सेना के जवानों को भी चुस्‍त-दुरुस्‍त रखने के लिए इस फल का प्रयोग किया जाता है. जम्मू कश्मीर के लेह लद्दाख इलाके में सी बकथॉर्न बेरी को वंडर बेरी, लेह बेरी और लद्दाख गोल्‍ड के नाम से भी जाना जाता है. इस फल में ऐसे पोषक तत्‍व पाए जाते हैं जो बाकी फलों और सब्जियों में नहीं मिलते हैं. इसमें प्रो-विटामिन जैसे ए, बी2 और सी के अलावा ओमेगा ऑयल भी होता है. इसलिए इस बेरी को यहां के लोग पौष्टिक फल के तौर पर मानते हैं. लाहौल स्पीति और किन्नौर में इस फल को ड्रिल्‍बू और चारमा के नाम से जाना जाता है.

सीबकथॉर्न पूरी सर्दी जीरो से भी कम तापमान में झाड़‍ियों से लगा रहता है. इसकी वजह से ये यहां के पक्षियों का भोजन भी होता है. इसकी पत्तियों में काफी प्रोटीन होता है और ये यहां के जानवर जैसे भेड़, बकरी, घोड़ों के खाने के काम आता है. कहा जाता है कि इस फल के औषधीय गुणों के बारे में 8वीं सदी में पता लगा था. तिब्‍बत के मेडिकल लिट्रेचर सीबू येदिया 7 के पूरे 30 पेज पर सीबकथोर्न के औषधीय गुणों से भरे पड़े हैं. माना जाता है कि चंगेज खान ने इस फल का प्रयोग ही अपनी याददाश्‍त, ताकत और फिटनेस के लिए इसी फल का प्रयोग करता था.

साल 2010 में पर्यावरण मंत्रालय और डिफेंस रिसर्च एंड डेवलपमेंट ऑर्गेनाइजेशन (डीआरडीओ) ने एक विशाल राष्‍ट्रीय पहल की शुरुआत की थी. इसके तहत हाई-ऑल्‍टीट्यूड वाले 5 जिलों में सी बकथॉर्न की खेती बड़े पैमाने पर की गई. लाहौल स्‍पीति गांव के लोग भारी बर्फबारी की वजह से पूरे छह माह तक बाहरी दुनिया से कटे रहते हैं. ऐसे में उन्‍हें एक ऐसे विकल्‍प की तलाश थी. जो उन्‍हें मुश्किल समय के साथ नियमित तौर पर रोजगार मुहैया कराता रहे. इस बीच जब सी बकथॉर्न की खोज हुई तो उन्‍हें वो विकल्‍प मिल गया.

डीआरडीओ और पर्यावरण मंत्रालय के प्रोजेक्‍ट के तहत टेरीटोरियल आर्मी ने मिलकर किया काम

डीआरडीओ और पर्यावरण मंत्रालय के प्रोजेक्‍ट के तहत टेरीटोरियल आर्मी (टीए) और महिलाओं के कुछ एनजीओ को साथ लाया गया. इसका मकसद जीवनयापन के अवसर पैदा करना और इकोसिस्‍टम को संरक्षित करना था. कई तरह की ट्रेनिंग जिसमें पल्पिंग, प्रोडक्‍ट डिजाइन और पैकेजिंग शामिल थी वो स्‍थानीय युवाओं और किसानों को मुहैया कराई गई. इसमें डिफेंस इंस्‍टीट्यूट ऑफ हाई ऑल्‍टीट्यूट रिसर्च (DIHAR) की मदद भी ली गई. इंस्‍टीट्यूट ने एक ऐसी टेक्‍नोलॉजी को विकसित किया जिसके तहत एसिडिक एसिड की सबसे ज्‍यादा मात्रा वाले इसे फल का जूस तैयार किया गया.

इस फल का जूस सियाचिन या फिर द्रास या फिर कारगिल जैसे इलाकों में जमता नहीं है. इस पेटेंट टेक्‍नोलॉजी को सेल्‍फ-हेल्‍प ग्रुप, कुछ एनजीओ और स्‍थानीय उद्यमियों को ट्रांसफर किया गया. इसके बाद कुछ और उत्‍पाद जैसे हर्बल टी, एंटी-ऑक्‍सीडेंट सप्‍लीमेंट, सीप्रिकॉट जूस, जैम, जैली, सी बकथॉर्न ऑयल सॉफ्ट जेल कैप्‍सूल, यूवी प्रोटेक्टिव ऑयल, बेकरी प्रॉडक्‍ट्स और जानवरों का चारा तैयार किया गया. सरकार की पहल से अलग कुछ और लोग भी यहां पर लोगों की मदद कर रहे हैं. इनकी मदद से लाहौल स्‍पीति के लोगों ने सी बकथॉर्न फल को अलग-अलग प्रकार से जैसे सीरियल्‍स, सब्जी, दालों के तौर पर बेचना शुरू कर दिया है. DRDO ने पहले सीबकथोर्न से जूस तैयार किया और इसके पत्तों से चाय बनाई गई जो काफी लोकप्रिय होने के साथ-साथ सियाचिन जैसी ऊंचाई वाली जगहों पर सैनिकों को काफी मददगार साबित हुई. बीते सालों में योगगुरु राम देव की संस्था पतंजलि ने DRDO के साथ करार करके सीबकथोर्न के उत्पाद तैयार करने के लिए करार किया है.

सीबकथोर्न बेरीज फल विटामिन से भरा है

सीबकथोर्न बेरीज में सीमित तापमान के बावजूद सर्दियों के महीनों में झाड़ी पर बरकरार रहने की एक विशिष्ट विशेषता है. यह फल सबसे अधिक पौष्टिक फलों में से एक है. इनमें विटामिन भरपूर मात्रा में पाए जाते हैं. इसमें प्रो– विटामिन E, विटामिन C, विटामिन A, विटामिन – बी1, बी2 और फ्लेवोनोइड और ओमेगा तेलों की मात्रा अन्य फलों और सब्जियों जैसे नारंगी, गाजर और टमाटर की तुलना में काफी अधिक है. इनमें विटामिन- सी की मात्रा 300 – 2000 मिलीग्राम/100 ग्राम बेरीज है, जो कि कई अन्य समृद्ध फलों जैसे आवंला, नारंगी, कीवी फलों से अधिक है. इसलिए इसे सुपरफ्रूट के रूप में बताया गया है. इसे प्रकार लेह में पाए जाते हैं बेरी में विटामिनों का भंडार है जहां अन्य विटामिन युक्त फलों की उपलब्धता सीमित है. इस पौधे के बेरीज में विटामिन– E (162 – 255 मिलीग्राम /100 ग्राम बेरीज), विटामिन- K (100 – 200 मिलीग्राम/100 ग्राम), विटामिन– A (11 मिलीग्राम/100 ग्राम) पाया जाता है. इसके अलावा इसमें विभिन्न प्रकार के अमीनो एसीड और विटामिन अधिक मात्रा में फ्लूवोनोइडस, प्लांट स्तेरोल्स, कार्टोनोइड्स, लिपिड्स, तेल और शूगर है. इन बेरीज में मुख्य मिनरल जैसे Fe, Mnj, Cu, Zn, Ca और Mg होते हैं. सीबकथोर्न के तेलों को ग्रीन और ऑर्गेनिक फूड की मान्यता मिली है. इसके अलावा स्थानीय चिकित्सा पद्धति आमची में इसका औषधीय गुणों के कारण अनके रोगों के उपचार में लाया जाता है.

सीबकथोर्न फल से कोरोना की दवा बनाने को लेकर हो रहा काम

सीबकथोर्न से कोरोना की दवा बनाने पर भी बीते साल काम किया जा रहा है. इस प्रोजेक्ट में आईआईटी रुड़की, आईआईटी मंडी, कृषि विश्वविद्यालय पालमपुर, आयुर्वेद अस्पताल पपरोला, नाइपर चंडीगढ़ के अलावा एक दिल्ली और एक निजी संस्थान मिलकर काम कर रहे हैं. सीबकथोर्न एसोसिएशन ऑफ इंडिया के सचिव डॉ. वीरेंद्र सिंह ने दावा किया है कि दक्षिण कोरिया की अवहा वोमन यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कोविड-19 वायरस को शरीर में वृद्धि को रोकने में सफलता पाई है. अब चीन, जर्मनी, रूस और फिनलैंड ने भी छरमा पर अनुसंधान शुरू कर दिया है. ऐसे में भारत में भी छरमा के फल और पत्तियों से इम्युनिटी बूस्टर और ड्रग तैयार करने के लिए एक प्रोजेक्ट तैयार किया है. इस प्रोजेक्ट के लिए छरमा की मांग को देखते हुए लाहौल-स्पीति और किन्नौर जिला में करीब छह हजार हेक्टेयर बंजर भूमि पर छरमा लगाना होगा. इससे जहां स्थानीय युवाओं को रोजगार मिलेगा, वहीं छरमा पर आधारित उद्योग भी स्थापित होंगे.

कुल्लू जिले के आयुर्वेदिक चिकित्सा अधिकारी डॉ. मनीष सूद का कहना है कि सीबकथोर्न में विटामिन और अन्य पोषक तत्वों की भरमार है और अब कई उत्पाद भी बाजारों में मिल रहे हैं. ऐसे में सीबकथोर्न का उपयोग लोगों को कई बीमारियों से बचाने में काफी सहायक है.

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