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मप्र के आदिवासी बच्चों की पुकार: 100 किमी का पैदल चलकर कलेक्टर के पास पहुंचे नौनिहाल, स्कूल बिल्डिंग और शिक्षक की मांग

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Published : Jul 22, 2023, 11:04 AM IST

Updated : Jul 22, 2023, 11:43 AM IST

मध्यप्रदेश के छिंदवाड़ा के एक स्कूल के बच्चे 2 दिन में करीब 100 किलोमीटर चलकर कलेक्टर के पास पहुंचे, जहां उन्होंने स्कूल भवन और शिक्षक की मांग की.

tribal children walking 100 km in 2 days
स्कूल बिल्डिंग और शिक्षक की मांग

100 किमी का पैदल चलकर कलेक्टर के पास पहुंचे नौनिहाल

छिंदवाड़ा। जिस आदिवासी को सौगात देने के नाम पर मप्र में राजनीति फैलाई जा रही है, उसी आदिवासी को बुनियादी अधिकार देने की स्थिति क्या है इसका अंदाजा छिंदवाड़ा में 100 किलोमीटर की दूरी का सफर 2 दिनों में पैदल पूरा कर कलेक्टर के पास गुहार लगाने पहुंचे बच्चों की मांग से पता चल सकता है. बच्चों का कहना है कि उनके स्कूल में शिक्षक नहीं है, जिसकी वजह से उनका जीवन अंधकार में है और स्कूल की बिल्डिंग ऐसी है कि किस दिन ढह जाए पता नहीं.

कलेक्टर से मिलने के लिए 2 दिन में 100 किमी चले मासूम: दरअसल आदिवासी विकासखंड अमरवाड़ा के कहुआ गांव के ग्रामीण और स्कूली विद्यार्थी छात्रों की बात जब जिम्मेदारों के कानों तक नहीं पहुंची तो वे करीब 100 किलोमीटर का सफर 2 दिन में पूरा कर के कलेक्टर के दरवाजे पर पहुंचे, जिससे उनके गांव में पढ़ाने के लिए शिक्षक की व्यवस्था हो सके और बैठने के लिए स्कूल बिल्डिंग बन सके. इन बच्चों की सिर्फ एक ही मांग थी कि प्राथमिक माध्यमिक शाला होने के बावजूद स्कूल भवन नहीं है, एक तकरीबन 50 साल पुराना भवन है जो कच्चा और जर्जर हो चुका है जिसमें बैठकर पढ़ना मुश्किल है.

चटनी-रोटी के साथ लेकर पहुंचे बच्चे: बच्चों ने बताया कि स्कूल में पढ़ाने के लिए शिक्षक भी नहीं है, बच्चों ने अपने हाथ में तख्तियां ली हुई थी, जिसमें भवन बनाओ, भवन बनाओ.. हम बच्चों की जान बचाओ... शिक्षक भेजो, शिक्षक भेजो.. अंधकार से जीवन बचाओ जैसे नारों के साथ जिम्मेदार अधिकारियों से स्कूल भवन और शिक्षक की डिमांड कर रहे थे. सरपंच, उपसरपंच और ग्रामीणों के साथ आए इन बच्चों ने बताया कि "वे(बच्चे) गांव से लंबा सफर पैदल तय करके यहां पहुंचे हैं और अपने साथ चटनी रोटी भी लाए हैं."

demanding school building and teacher
इस जर्जर बिल्डिंग में संचालित हो रहा स्कूल

कलेक्टर अपनी आंखों से देखें स्कूल के हालात: ग्रामीणों ने बताया कि "मिडिल स्कूल में शिक्षक नहीं होने की वजह से पिछले 1 साल से ताला लगा रहता है, स्कूल में पढ़ाई नहीं होती इसलिए बच्चे खेतों में काम कर रहे हैं." उन्होंने कलेक्टर से गुहार लगाते हुए ग्रामीणों ने कहा है कि एक बार आप (कलेक्टर) स्कूल का दौरा कर लें, उसके बाद दूध का दूध पानी का पानी हो जाएगा.अगर स्कूल में शिक्षक की व्यवस्था हो जाती है, तो बच्चे खेतों में काम ना करना पड़े, इसलिए पढ़ाई करने लगेंगे. कुछ लोग तो अपने बच्चों को अब पड़ोस के गांवों में पढ़ने के लिए भेजने लगे हैं."

मिडिल स्कूल में नहीं है परमानेंट शिक्षक: जिला शिक्षा केंद्र के अधिकारी जेके इड़पाची ने बताया कि "कहुवा में कुल 132 विद्यार्थी हैं, जिसमें प्राइमरी स्कूल में 1 शिक्षक पदस्थ हैं, तो वहीं मिडिल स्कूल में फिलहाल कोई भी शिक्षक पदस्थ नहीं है. लेकिन वहां पर अतिथि शिक्षक की व्यवस्था की जा रही है, माध्यमिक शाला में एक भी शिक्षक नहीं है और वहां तकरीबन दो सौ के आसपास विद्यार्थी हैं. माध्यमिक शाला भवन को डिसमेंटल कर दिया गया है."

जर्जर स्कूल के भवन के लिए बिल्डिंग स्वीकृत, लेकिन नहीं मिला पैसा: शिक्षा विभाग के अधिकारी ने बताया कि "पिछले साल ही स्कूल भवन बनाने के लिए राज्य शिक्षा केंद्र से अनुमति मिल गई है, लेकिन स्कूल बनाने के लिए बजट अभी तक नहीं मिला है. इस कारण काम शुरू नहीं कराया गया है, यहां वर्षों पुराना प्राथमिक शाला भवन कच्चे कवेलू वाला है और दीवार भी कच्ची हैं. वर्तमान में स्कूल भवन जर्जर हो चुका है और हर जगह पानी टपकता है. हालात ऐसे हैं कि बारिश के इस मौसम में कभी भी यह भवन दुर्घटनाग्रस्त हो सकता है."

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100 किमी पैदल चलकर पहुंचे बच्चे, अधिकारी बोले- हमें जानकारी नहीं: गांव के उपसरपंच रघुनाथ सिंह बंजारा ने बताया कि 10 साल पहले गांव में मिडिल स्कूल तो खोल दिया गया लेकिन आज तक परमानेंट शिक्षक की नियुक्ति नहीं की गई है. कभी अटैचमेंट के भरोसे, तो कभी अतिथि शिक्षक के भरोसे स्कूल संचालित होता है. करीब 200 बच्चे इस स्कूल में है, लेकिन अब शिक्षक नहीं है इसलिए ताला लगा रहता है. इस बारे में हमने विकासखंड के सभी अधिकारियों से चर्चा की थी, लेकिन किसी ने मेरी बात नहीं सुनी. फिलहाल अब मजबूरन बच्चों को लेकर कलेक्टर कार्यालय तक पहुंचना पड़ा." मामले पर अधिकारियों का कहा कि "हमें जानकारी ही नहीं लगी कि बच्चे पैदल यहां पहुंच रहे हैं, वरना यह नौबत ही नहीं आती."

जिले के 169 सरकारी स्कूलों में शिक्षक ही नहीं: अधिकारियों का कहना है कि "साल 2022 के सरकारी आंकड़ों पर नजर डालें तो जिले के 169 स्कूलों में परमानेंट शिक्षकों की नियुक्ति नहीं थी, लेकिन इस साल के आंकड़े ट्रांसफर प्रक्रिया के बाद आएंगे. पिछले साल 2022 में हरई विकासखंड के 63, जुन्नारदेव विकासखंड के 83, तामिया में 43 स्कूल ऐसे थे, जहां पर एक भी शिक्षक पदस्थ नहीं थे. जिले में सहायक शिक्षक या वर्ग तीन (एलडीटी/ पीएसटी) के शिक्षकों के कुल 3 हजार 360 पद स्वीकृत हैं, जिसके एवज में 3 हजार 902 शिक्षक पदस्थ हैं, यानी 542 शिक्षक ज्यादा पदस्थ हैं इसके बावजूद इन शिक्षकों को माध्यमिक शाला में पढ़ाने की जिम्मेदारी नहीं दी गई है."

अधिकारियों का कहा कि "जिले में उच्च श्रेणी या माध्यमिक शाला शिक्षक के कुल 2 हजार 967 पद स्वीकृत हैं, जबकि जिले में 1 हजार 329 शिक्षक ही पदस्थ हैं. ऐसे में 1 हजार 638 शिक्षकों के पद रिक्त होने पर प्राथमिक शाला के शिक्षकों को कुछ माध्यमिक शाला की जिम्मेदारी सौंप दी गई है. आदिवासी विकास खंडों के ग्रामीण इलाकों में शिक्षक जाना पसंद नहीं करते, इसलिए अधिकतर लोग अपना अटैचमेंट दूसरी स्कूल या शहर के नजदीक करा लेते हैं."

आदिवासियों के नाम पर सरकार बनाने की जुगत में लगी है पार्टियां: भले ही आदिवासियों को आज भी बुनियादी सुविधाओं के लिए तरसना पड़ रहा है, लेकिन राजनीतिक दल इन्हीं के नाम पर सरकार बनाने की जुगत में लगे हैं. एक तरफ जहां पूर्व सीएम कमलनाथ छिंदवाड़ा के आदिवासियों को विकसित बताकर जिले को विकास मॉडल बताकर प्रदेश भर में ढिंढोरा पीट रहे हैं, तो वहीं प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और भाजपा के दिग्गज नेता अमित शाह ने भी छिंदवाड़ा के आदिवासियों के विकास का गुणगान कर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की पीठ थपथपाई थी, लेकिन हकीकत बताने के लिए इन बच्चों की पुकार काफी है.

Last Updated : Jul 22, 2023, 11:43 AM IST
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