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आजादी का अमृत महोत्सव : नेता बांट रहे तिरंगा, बता रहे डिज़ाइन करने वाले पिंगली वेंकय्या की कहानी

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Published : Aug 2, 2022, 10:25 PM IST

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आजादी का अमृत महोत्सव

15 अगस्त को देश के आजादी का 75 साल पूरा कर रहा है. इस मौके पर प्रधानमंत्री मोदी ने 'हर घर तिरंगा' अभियान के तहत जनता से अपने-अपने घरों में तिरंगा लगाने की अपील की है. दिल्ली बीजेपी नेता और कार्यकर्ता इस अभियान की शुरुआत कर चुके हैं. इसी कड़ी में बीजेपी के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल लोदी गार्डन में सैर के लिए आए लोगों के बीच तिरंगे का वितरण किया और उन्हें तिरंगे के बारे में बताया.

नई दिल्ली: देश आजादी का अमृत महोत्सव मना रहा है. 15 अगस्त को आजादी के 75 वर्ष पूरे होने पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी देशवासियों से स्वतंत्रता दिवस के अवसर पर अपने-अपने घरों में तिरंगा लगाने की अपील कर रहे हैं. बीजेपी ने भी 'हर घर तिरंगा' नाम से अभियान शुरू किया है. इसके लिए कार्यकर्ताओं व पार्टी के वरिष्ठ नेताओं को लोगों को तिरंगा की महत्ता बताने, उसे लोगों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी दी गयी है. इसी कड़ी में बीजेपी के वरिष्ठ नेता व पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल लोदी गार्डन पहुंच वहां सैर के लिए आए लोगों के बीच तिरंगे का वितरण किया और उन्हें तिरंगे के बारे में विस्तार से बताया.

तिरंगे को लेकर आज का दिन भी बेहद खास है. क्योंकि जो तिरंगा हर साल स्वतंत्रता दिवस और गणतंत्र दिवस को राष्ट्रीय ध्वज के तौर पर फहराते हैं, उसका डिजाइन करने वाले महान स्वतंत्रता सेनानी पिंगली वेंकय्या का जन्मदिन भी है. इस वर्ष केंद्र सरकार उनके जन्मदिन को भी विशेष रूप से मना रही है. तो आइए जानते हैं कि कौन थे पिंगली वेंकय्या और तिरंगे को तैयार करने के पीछे की बातें.

आजादी का अमृत महोत्सव

2 अगस्त 1876 को भटलापेनुमरु, मद्रास प्रेसीडेंसी, ब्रिटिश भारत (आज का आंध्र प्रदेश में मछलीपट्टनम) में जन्मे पिंगली वेंकय्या ने तिरंगा डिजाइन किया था. पिंगली वेंकैया का जन्म एक तेलुगु ब्राह्मण परिवार में हुआ था. पिंगली वेंकय्या एक स्वतंत्रता सेनानी थे जिन्होंने 31 मार्च 1921 को भारत का राष्ट्रीय ध्वज डिजाइन किया था. मार्च 2022 में भारतीय ध्वज तिरंगे के अपने 101 साल पूरे कर लिए हैं.

पिंगली वेंकय्या की शिक्षा कैम्ब्रिज में हुई थी जिसके बाद वे बड़े होकर पॉलीमैथ बन गए. पिंगली भूविज्ञान, कृषि, शिक्षा और यहां तक कि अन्य भाषाओं में रुचि रखते थे. 1913 में उन्होंने बापटला में जापानी में एक पूर्ण भाषण दिया, जिससे वे 'जापान वेंकय्या' के रूप में मशहूर हुए. मछलीपट्टनम तब मछली पकड़ने और वस्त्रों का एक बड़ा केंद्र था. कपास, विशेष रूप से कंबोडिया कपास नामक एक विशेष किस्म पर शोध करने में उनकी रुचि ने उन्हें एक और उपनाम 'पट्टी (कपास) वेंकय्या' दिया.

पूर्व केंद्रीय मंत्री विजय गोयल बताते हैं कि वर्ष 1918 और 1921 के बीच कांग्रेस के सभी सत्रों के दौरान उन्होंने भारत के लिए राष्ट्रीय ध्वज रखने का विचार अथक रूप से सामने रखा. उन्होंने उन वर्षों में मछलीपट्टनम में आंध्र नेशनल कॉलेज में व्याख्याता के रूप में काम किया. एक साथी व्याख्याता की मदद से उन्होंने भारत के अपने ध्वज को डिजाइन करने की अपनी खोज जारी रखी. वेंकय्या ने विजयवाड़ा में गांधी से मुलाकात की और खादी बंटवारे पर स्वराज ध्वज का एक मूल डिजाइन प्रस्तुत किया. इसमें क्रमशः हिंदुओं और मुसलमानों के प्रतीक के लिए दो लाल और हरे रंग के बैंड शामिल थे. उस समय देश में दो प्रमुख धार्मिक समुदाय और चरखा स्वराज का प्रतिनिधित्व करता था.

मार्च 1921 में महात्मा गांधी ने पहली बार विजयवाड़ा में भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की एक बैठक में राष्ट्रीय ध्वज की आवश्यकता का प्रस्ताव रखा. वेंकय्या ने वहां विक्टोरिया संग्रहालय में गांधी से मुलाकात की और खादी बंटवारे पर स्वराज ध्वज का एक मूल डिजाइन प्रस्तुत किया. इसमें क्रमशः हिंदुओं और मुसलमानों के प्रतीक के लिए दो लाल और हरे रंग के बैंड शामिल थे. उस समय देश में दो प्रमुख धार्मिक समुदाय और चरखा स्वराज का प्रतिनिधित्व करता था. उनके डिजाइन ने भारत और उसके लोगों को एक पहचान दी थी.

प्रमुख इतिहासकार रामचंद्र गुहा कहते हैं कि 1931 में एक कांग्रेस कमेटी ने लाल पट्टी को भगवा रंग में बदल दिया था. इसने बैंड को फिर से ऊपर केसर के साथ सफेद और फिर हरे रंग के साथ फिर से तैनात किया. चरखे को बीच में सफेद पट्टी पर रखा गया था. इन परिवर्तनों का समर्थन करते हुए, गांधी ने देखा कि राष्ट्रीय ध्वज अहिंसा का प्रतीक है और राष्ट्रीय एकता को सख्ती से सत्य और अहिंसा के माध्यम से लाया जाना है. गांधी की सलाह पर, पिंगली ने लाल और हरे रंग के ऊपर एक सफेद पट्टी जोड़ दी. गोरे शांति और भारत में रहने वाले बाकी समुदायों का प्रतिनिधित्व करते थे. हालांकि इस पहले तिरंगे को अखिल भारतीय कांग्रेस कमेटी द्वारा आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया गया था, लेकिन इसे सभी खास अवसरों पर फहराया जाने लगा. गांधीजी की स्वीकृति ने स्वराज ध्वज को पर्याप्त रूप से लोकप्रिय बना दिया था और यह 1931 तक उपयोग में था, जब एक कांग्रेस कार्य समिति ने ध्वज के डिजाइन में कुछ बदलाव किए. समिति ने एक नया तिरंगा बनाया जिसमें लाल को केसरिया से बदल दिया गया और रंगों के क्रम को बदल दिया गया, जिसमें सबसे ऊपर केसरिया था, उसके बाद सफेद और फिर हरा था. चरखे को बीच में सफेद पट्टी पर रखा गया था. स्वतंत्रता के बाद, राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद के नेतृत्व में एक राष्ट्रीय ध्वज समिति ने चरखे को अशोक चक्र से बदल दिया.

पिंगली की मृत्यु 4 जुलाई 1963 को हुई थी. उन्हें भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में उनके योगदान के लिए मरणोपरांत 2009 में एक डाक टिकट से सम्मानित किया गया था. 2014 में उनका नाम भारत रत्न के लिए भी प्रस्तावित किया गया था. 2016 में तत्कालीन शहरी विकास मंत्री एम वेंकैया नायडू ने ऑल इंडिया रेडियो स्टेशन विजयवाड़ा का नाम वेंकय्या के नाम पर रखा और इसके परिसर में उनकी प्रतिमा का अनावरण किया.

गत रविवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रेडियो पर प्रसारित मन की बात कार्यक्रम में भी इस बार आज़ादी के अमृत महोत्सव व तिरंगे को लेकर विशेष बातें कही और पिंगली वेंकय्या को नमन किया था. उन्होंने कहा था कि भारतीय ध्वज देश के संप्रभु राज्य, उसके इतिहास और संस्कृति का प्रतीक है. फिर भी, उस व्यक्ति के बारे में बहुत कम जानकारी है जिसने तिरंगे को डिजाइन किया था. जबकि पिछले दशकों में ध्वज में बदलाव आया है, लेकिन इसके मूल ढांचे का श्रेय पिंगली वेंकैया को दिया जाता है.

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