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बीआरआई योजना के मुकाबले के लिए बाइडेन की 3BW योजना को करना पड़ेगा सख्त चुनौतियों का सामना

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Published : Jun 15, 2021, 6:56 PM IST

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अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने चीन की बीआरआई योजना को रोकने के लिए बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड योजना शुरू की है. इसका उद्देश्य बीआरआई में शामिल राष्ट्रों को एक ढांचागत विकल्प प्रदान करना है. पढ़िए वरिष्ठ संवाददाता संजीब कुमार बरुआ की रिपोर्ट.

नई दिल्ली : दुनिया के सात सबसे धनी लोकतंत्रों के एक महत्वपूर्ण समूह G-7 द्वारा ब्रिटेन के कॉर्नवाल में एक कार्बिस बे रिसॉर्ट (Carbis Bay resort) में शनिवार को चीन के एक आर्थिक और सैन्य शक्ति (economic and military power) के रूप में उदय करने पर एक विश्व व्यवस्था परिभाषित करने के लिए स्पष्टीकरण कॉल जारी किया गया था. साथ ही यूरोपीय संघ के प्रतिनिधियों (European Union representatives) ने चीन को घेरने के लिए आवाज उठाई थी.

इस बीच अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन ने 'बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड (Build Back Better World) नामक एक दिलचस्प योजना सामने रखी है, जिसके दो उद्देश्य हैं- पहला चीन की महत्वाकांक्षी और बड़े पैमाने पर चीन की विशाल बेल्ट एंड रोड इनिशिएटिव (Belt and Road Initiative) का मुकाबला करना और चीन के बीआरआई में शामिल राष्ट्रों को एक ढांचागत विकल्प प्रदान करना.

हालांकि अभी BRI योजना का विवरण सामने आना बाकी है, जनवरी 2021 तक, चीन ने BRI के लिए 140 देशों के साथ समझौता ज्ञापन (MoU) पर हस्ताक्षर किए हैं, जिसमें उप-सहारा अफ्रीका , यूरोप और मध्य एशिया, पूर्वी एशिया के देश शामिल हैं.

इसके अलावा प्रशांत, पश्चिम एशिया और उत्तरी अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और कैरिबियन और दक्षिण पूर्व एशिया के देश भी BRI का हिस्सा हैं. जाहिर है, चीन ने प्रस्ताव का दोनों हाथों से फायदा उठाया है.

बीआरआई चीन के प्राचीन सिल्क रोड व्यापार मार्ग (Silk Road trade route) की प्रतिकृति है, जो चीन को एशिया और यूरोप से जोड़ता था, लेकिन अब रेलवे, सड़क, बंदरगाह और राजमार्ग के अलावा अन्य बुनियादी ढांचे को जोड़ा जाएगा.

रणनीतिक दृष्टि ( strategic point of view) से जहां कहीं भी बीआरआई का विस्तार होता है, चीन का प्रभाव फैलेगा. इसलिए पश्चिम की ओर से इसे नियंत्रित करने के प्रयास किए जाएंगे.

बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड योजना से निहित है कि चीन का तेजी से उदय (China's rapid rise) को रोकेगा और इसकी मदद से यूरोपीय संघ और 30-सदस्यीय नाटो को अपने साथ ले जाने के लिए अमेरिका हर संभव कोशिश करेगा, इतनी ही नहीं उसे बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड से मिलने वाली कुछ कड़ी चुनौतियों से पार पाना होगा.

इसकी प्रमुख बाधा अमेरिका और यूरोपीय संघ और नाटो के सहयोगियों के बीच मतभेद है कि कैसे चीन का सामना किया जाए.

सबसे पहली चुनौती जर्मनी, फ्रांस और इटली जैसी प्रमुख यूरोपीय संघ की अर्थव्यवस्थाएं चीनी अर्थव्यवस्था के साथ घनिष्ठ रूप से जुड़ी हुई हैं. इसके अलावा कठिनाइयों को बढ़ावा देते हुए चीन ने लगभग 18 यूरोपीय संघ के देशों के साथ बीआरआई समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर किए हैं.

ब्रिटेन के प्रधानमंत्री बोरिस जॉनसन (PM Boris Johnson) ने ऑन रिकॉर्ड कहा है कि नाटो (NATO) के सदस्य चीन के साथ 'एक नए शीत युद्ध में उतरना' नहीं चाहेंगे.

इसके विपरीत, उन्होंने कहा कि एशियाई दिग्गज (Asian giant) के साथ संलग्न होने के अधिक अवसर होंगे.

जॉनसन के लहजे और तेवर को लेकर नाटो के प्रमुख (NATO chief) जेन्स स्टोलटेनबर्ग (Jens Stoltenberg) ने कहा था कि जब उन्होंने कहा कि यह बढ़ती सैन्य क्षमताओं और प्रभाव पश्चिम के लिए व्यवस्थित चुनौतियां पेश कर रहा है, तो चीन नाटो का विरोधी या दुश्मन नहीं था.

बाद में फ्रांस के राष्ट्रपति (French President ) इमैनुएल मैक्रां (Emmanuel Macron) ने सोमवार को ब्रसेल्स में कहा 'मुझे लगता है कि यह बहुत महत्वपूर्ण है कि हम अपने प्रयासों को न बिखेरें और चीन के साथ अपने संबंधों को लेकर पक्षपात न करें. यह सैन्य विषय की तुलना में बहुत व्यापक है. यह आर्थिक, रणनीतिक, मूल्यों और तकनीकी से जुड़ा है.'

दूसरी चुनौती यह है कि दूसरे, G-7 देश सभी विशिष्ट देश हैं, जिनकी अपनी अनूठी ताकत और कमजोरियां हैं. उन सभी को एक साथ चीन विरोधी गाड़ी में सवार (bandwagon) में समूहित करना मुश्किल होगा.

तीसरी चुनौती है कि व्हाइट हाउस (White House) ने बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड योजना को निम्न और मध्यम आय वाले देशों की जबरदस्त बुनियादी ढांचे की जरूरतों को पूरा करने के लिए सकारात्मक पहल के रूप में वर्णित किया है. मौजूदा वायरल महामारी ने अधिकांश पश्चिमी अर्थव्यवस्थाओं को पस्त कर दिया है, ऐसे में बिल्ड बैक बेटर वर्ल्ड के लिए वित्तीय प्रतिबद्धता कहां से आएगी?

इसके अलावा एक चुनौती यह भी है कि G-7 का दबदबा या नाटो की एकीकृत ताकत अब पहले जैसी नहीं रही. 1975 से जब G-7 का जन्म हुआ, दुनिया के सकल घरेलू उत्पाद में सात सबसे अमीर लोकतंत्रों की हिस्सेदारी 80 प्रतिशत से घटकर 40 प्रतिशत हो गई है, जबकि इसमें चीन की हिस्सेदारी अभी भी18 प्रतिशत से अधिक है.

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इस मामले में दिल्ली विश्वविद्यालय के एक कॉलेज में इतिहास के पढ़ाने वाले प्रो कुमार संजय सिंह (Prof Kumar Sanjay Singh) कहते हैं कि इन घटनाक्रमों से स्पष्ट है वह है 'क्वाड' या ' क्वाड सुरक्षा संवाद' को बैकबर्नर पर रखना जिसमें कोई कर्षण नहीं है. साथ ही, यूरोपीय संघ और नाटो द्वारा चीन के खिलाफ अमेरिका के नेतृत्व वाले ग्रुप की नरम स्थिति का भारत पर भी प्रभाव पड़ेगा.

चीन के खिलाफ नाटो ने खुद को अभी के लिए एक रक्षात्मक समूह (efensive grouping ) के रूप में तैनात किया है, जो दर्शाता है कि आर्थिक संबंध (economic ties) जारी रहेंगे और बातचीत पसंद का पहला उपकरण होगा. इसलिए यह स्पष्ट है कि भारत को इससे कुछ हासिल नहीं होगा. अगर भारतीय सीमा पर कुछ होता है, तो हमें खुद को संभालना होगा.

उन्होंने कहा कि कुल मिलाकर, जो बाइडेन का एक वर्ष यूएस-ईयू-नाटो संबंधों में जटिलता को पूर्ववत करने के लिए पर्याप्त नहीं है, जो डोनाल्ड ट्रंप (Donald Trump) के नेतृत्व में काफी कम हो गया था.

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