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हिमाचल की धरोहर : चिट्ठियों से लेकर ई-मेल तक..., जानें शिमला जनरल पोस्ट ऑफिस की कहानी

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Published : Feb 19, 2020, 12:22 PM IST

Updated : Mar 1, 2020, 8:05 PM IST

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शिमला जनरल पोस्ट ऑफिस

हिमाचल की धरोहर घोषित हो चुकी शिमला के स्कैंडल प्वाइंट के पास स्थित शिमला जनरल पोस्ट ऑफिस भी कुछ ऐसी ही कहानी बयां करता है. जानें इसकी पूरी कहानी...

शिमला : हिमाचल प्रदेश की राजधानी और अंग्रेजी शासन काल के समय की समर कैपिटल शिमला आज सिर्फ साफ सुथरी आब-ओ-हवा और बर्फ से ढकी वादियों के लिए ही नहीं बल्कि अपने आप में समेटे हुए कइ ऐतिहासिक लम्हों के लिए भी मशहूर है. हिमाचल की धरोहर घोषित हो चुकी शिमला के स्कैंडल प्वाइंट के पास स्थित शिमला जनरल पोस्ट ऑफिस भी कुछ ऐसी ही कहानी बयां करता है.

वर्तमान में धरोहर घोषित हो चुकी जीपीओ यानी जरनल पोस्ट ऑफिस की इमारत के स्थान पर कभी एक दर्जी की दुकान हुआ करती थी. ऐतिहासिक मॉल रोड पर स्कैंडल प्वाइंट स्थित जीपीओ का निर्माण 1883 किया गया था. मुख्य डाकघर की इस बिल्डिंग को पहले कॉनी लॉज के नाम से जाना जाता था. 1880 में डाक विभाग ने अंग्रेज पीटरसन से इस ऐतिहासिक भवन को खरीद लिया और उसके बाद 1883 में इस इमारत में डाकघर शुरू किया गया.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट...

जीपीओ से पहले थी यहां थी दर्जी की दुकान
शुरुआती दौर में इस जगह यूरोपियन टेलर इंगल बर्ग एंड कंपनी की दर्जी की दुकान हुआ करती थी. कपड़ों की सिलाई का काम बंद होने के बाद इसी इमारत में कुछ समय तक शिमला बैंक भी कार्यरत रहा, लेकिन बाद में इस इमारत को इसके मालिक पीटरसन से खरीद लिया गया. इसके बाद 1883 में कॉटेज के नाम से ही यहां डाकघर खुला जिसमें विलायती डाक आया करती थी.

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शिमला जनरल पोस्ट ऑफिस

ब्रिटिश काल में झंडा लहरा कर बांटी जाती थी डाक
ब्रिटिश काल में जब शिमला जीपीओ में विलायती डाक आती थी तो डाक घर पर लाल झंडा लहरा कर और घंटी बजाकर इसके बारे में जानकारी दी जाती थी. इससे संकेत मिलता था कि डाक आ गई है और ब्रिटिश अफसर अपने नौकरों को यहां भेज कर अपनी डाक मंगवा लेते थे.

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जीपीओ शिमला की निर्माण शैली.

शुरुआती दौर में सातों दिन काम करते थे डाक कर्मी
डाक से भी केवल चिठ्ठी ही नहीं आती थी मैग्जीन, अखबार, कपड़े व अन्य आवश्यक चीजें भी इसके माध्यम से शिमला पहुंचती थी. इतना ही नहीं जब डाक आती थी तो उसे रात में ही लालटेन की रोशनी में पोस्टमैन बांटते थे. रविवार की छुट्टी तक भी इन कर्मचारियों को नहीं मिलती थी.

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तांगे पर लाई जाने वाली कालका मेल
शिमला में रेल गाड़ी शुरू होने से पहले कालका से शिमला तक तांगे पर ही डाक लाई जाती थी. कालका से शिमला तक तीन बार तांगे के घोड़े बदले जाते थे. बड़ोग व क्यारी इसके स्टेशन थे जहां कालका से चल रहे घोड़ों को बड़ोग और बड़ोग से चले घोड़ों का आराम देने के लिए क्यारी जगह पर बदला जाता था, जहां एक डाक बंगला भी था.

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जीपीओ शिमला में स्तिथ पोस्टमैन का स्टेच्यू.

वायसराय भी रिक्शा मेल को देते थे रस्ता

इतना ही नहीं उस दौर के वायसराय भी रिक्शा मेल के आने पर उसे रास्ता देते थे. ग्रीष्मकालीन राजधानी होने के चलते शिमला राजनीति का मुख्य केंद्र था. कई गोपनीय पत्र भी डाक विभाग के माध्यम से वितरित होते थे. 1 जनवरी 1947 को एके हजारी ने इस ऑफिस में बतौर पहले भारतीय पोस्ट मास्टर जिम्मा संभाला था.

जीपीओ इमारत में चिमनी और हॉलो पिल्लर
जीपीओ इमारत की शैली की बात की जाए तो जिस तकनीक के साथ इसे बनाया गया है, उससे यह इमारत बड़े से बड़े भूकंप के झटकों को सहने की ताकत रखती हैं. 3 मंजिला इस इमारत में लकड़ी के 6 हॉलो पिल्लर लगाए गए हैं. ब्रिटिश काल में इमारत के बेसमेंट में एक चिमनी में आग जलाई जाती थी, जिससे पूरी इमारत के कमरे गरम रहते थे. वर्तमान में यह चौड़े पिल्लर तो हैं, लेकिन चिमनी को बंद कर दिया गया है.

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1883 में शुरू हुआ जनरल पोस्ट ऑफिस शिमला

आग की भेंट भी चढ़ी जीपीओ की इमारत
वहीं, जीपीओ की यह बिल्डिंग 1972 में आग की भेंट भी चढ़ी थी. उस समय स्टाफ के लोगों ने खिड़कियों से जरूरी दस्तावेज, फाइल और कैश बॉक्स बाहर फेंक दिए थे. जिसके बाद जहां-जहां नुकसान हुआ उसकी मरम्मत कर दी गई है और भवन को उसी पुरानी शैली में तैयार किया गया है. 1992 में इस इमारत को हेरिटेज का दर्जा दिया गया है. शुरूआत से लेकर अब तक, जीपीओ ने चिट्ठियों को ई-मेल में बदलते हुए सब कुछ देखा है.

Last Updated :Mar 1, 2020, 8:05 PM IST
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