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मॉनसून सत्र में चीन मुद्दे पर विपक्ष को जवाब देने की तैयारी में जुटी भाजपा

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Published : Jul 9, 2020, 7:47 PM IST

केंद्र सरकार संसद का मॉनसून सत्र 15 अगस्त के बाद कभी भी बुला सकती है. सरकार इस दौरान भारत-चीन सीमा विवाद के मुद्दे पर कांग्रेस पार्टी को जवाब देने की तैयार कर रही है. इसे लेकर भाजपा सांसदों और मंत्रियों को तैयारी करने के निर्देश दिए गए हैं. विस्तार से पढ़ें विशेष रिपोर्ट...

pm modi
नरेंद्र मोदी-अमित शाह

नई दिल्ली : भारत-चीन सीमा विवाद को लेकर अब केंद्र सरकार सशक्त तरीके से विपक्ष को जवाब देने की तैयारी कर रही है. सरकार अगले महीने 15 अगस्त के बाद कभी भी मॉनसून सत्र बुला सकती है. मॉनसून सत्र में भारत-चीन सीमा विवाद पर संसद में चर्चा करने के लिए सरकार तैयारी कर रही है. इस सत्र में चीन के साथ तनाव के अलावा कोरोना वायरस पर भी विस्तार से चर्चा की तैयारी अंदर खाने की जा रही है.

सूत्रों के मुताबिक, मोदी सरकार संसद के आगामी मॉनसून सत्र में पूर्वी लद्दाख में गलवान घाटी में चीन के साथ हुई हिंसक झड़प और विपक्ष के आरोपों का जवाब देने की तैयारी कर रही है. इसकी तैयारी पार्टी के सांसदों और केंद्रीय मंत्रियों ने अभी से शुरू कर दी है.

चीन के साथ कब-कब भारत सरकार की नीति क्या रही है और नेहरू के समय से वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के समय में चीन के फ्रंट पर क्या-क्या बदलाव आए हैं, इन तमाम बातों को लेकर भाजपा सांसदों को तैयार रहने की सलाह दी गई है.

सूत्रों का कहना है कि सरकार गलवान घाटी में भारतीय और चीनी सैनिकों के बीच हुई हिंसक झड़प से संबंधित सवालों पर ऐसे जवाब तैयार कर रही है, जिसमें पूर्व प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू व इंदिरा गांधी के समय में चीन के खिलाफ उठाए गए कदम और वर्तमान प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यकाल में चीन के साथ संबंध की तुलना की गई है.

इतना ही नहीं, इस मुद्दे पर अंदर खाने भाजपा का आईटी सेल अभी से तमाम तथ्यों को सोशल मीडिया पर पोस्ट करना शुरू कर चुका है. पार्टी कांग्रेस नेता राहुल गांधी के 'सरेंडर मोदी' के बयान को लेकर भी अगले सत्र में आक्रामक तरीके से जवाब देने की तैयारी की जा रही है.

राजीव गांधी फाउंडेशन को मिले दान का मुद्दा उठाएगी भाजपा
सरकार के जवाब में कई बातों को शामिल किया जाएगा. इसमें तिब्बत में चीन के सामने सरेंडर का मुद्दा, अक्साई चिन में लगभग 40,000 वर्ग किलोमीटर जमीन चीन को सरेंडर करने का मुद्दा, यूपीए शासनकाल में सैकड़ों वर्ग किलोमीटर जमीन सरेंडर करने का मुद्दा और चीन की कम्युनिस्ट पार्टी के साथ समझौते कर सरेंडर करने के मुद्दे शामिल होंगे. आजादी के बाद से 2014 तक कांग्रेस पार्टी और इसकी सरकारों ने चीन के सामने क्या किया, यह सब सरकार के जवाब में तो होगा ही, साथ ही भाजपा चीन द्वारा राजीव गांधी फाउंडेशन को दिए गए दान मामले को भी जोर-शोर से संसद के पटल पर उठाएगी.

सरकार के सूत्रों के अनुसार, इस मुद्दे पर संभावित बहस का जवाब सरकार के स्तर से दिया जाएगा और संसद का आने वाला मॉनसून सत्र भी लंबा होगा. हालांकि संविधान के अनुसार, संसद के दो सत्रों के बीच 6 महीने से ज्यादा अंतराल नहीं हो सकता. ऐसे में संसदीय नियमों के अनुसार संसद का मॉनसून सत्र 23 सितंबर तक स्थगित हो जाना चाहिए. इस मॉनसून सत्र में सरकार को 11 अध्यादेशों को भी संसद के दोनों सदनों से पास कराना जरूरी है.

इस संबंध में 'ईटीवी भारत' के सवाल पर पूर्व वित्त राज्यमंत्री और भाजपा के राज्यसभा सांसद शिव प्रताप शुक्ला ने कहा कि अगर विपक्ष चीन को लेकर कोई सवाल उठाता है तो निश्चित रूप से सरकार उसका जवाब देगी.

भाजपा के राज्यसभा सांसद शिव प्रताप शुक्ला का बयान.

शिव प्रताप ने कहा, 'वैसे प्रमुख विपक्षी पार्टी कांग्रेस और राहुल गांधी प्रत्येक दिन कोई न कोई सवाल करते रहते हैं. जनता भी हंसती है और शायद मीडिया भी हंसता होगा, फिर भी उनकी आदत है सवाल उठाने की. हम यह जरूर जानना चाहेंगे कि कांग्रेस के किस-किस खाते में चीन से पैसा आया, किसके खाते में उसने 45,000 किलोमीटर जमीन चीन को दे दिया.'

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भाजपा सांसद ने कहा, 'गलवान घाटी में जो कुछ भी हुआ, प्रधानमंत्री ने उसके बाद वहां जाकर जवानों को संबोधित किया, उनका मनोबल बढ़ाया. विश्व की कोई भी ताकत आज भारत से टकराने की हिम्मत नहीं करेगी. हम पूरी तरह से तैयार हैं. भारतीय जनता पार्टी तैयार है. सरकार तैयार है, वह विपक्ष को उसके सवालों का जवाब देगी. जब विपक्ष को सकारात्मक होना चाहिए था तो वह नकारात्मक भूमिका अदा कर रही है.'

उन्होंने कहा कि राहुल गांधी को चाहिए कि वह भी शरद पवार की तरह सकारात्मक भूमिका में आएं और अगर नहीं आते तो हंसी का पात्र बनने के अलावा उनकी कोई भूमिका नहीं रह जाएगी.

जाहिर तौर पर सत्ताधारी पार्टी भाजपा संसद में चीन के मुद्दे पर जवाब देने, कांग्रेस को इस मुद्दे पर घेरने और उसकी नकारात्मक भूमिका को उजागर करने के लिए पूरी रणनीति तैयार कर रही है. अब देखना है कि आने वाले संसद सत्र में ज्यादा आक्रामक कौन होता है, विपक्ष या सत्ताधारी पार्टी.

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