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सीमा पर सेना की तीसरी आंखे हैं यह चरवाहे

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Published : Jun 22, 2020, 11:08 PM IST

Updated : Jun 23, 2020, 11:38 AM IST

चमोली में स्थित भारत-चीन बॉर्डर रोड पर भेड़ और बकरी चरवाहों की आवाजाही लगातार बनी हुई है. सरकार से अनुमति मिलने के बाद भेड़पालक मलारी से होते हुए बाड़ाहोती, नीति घाटी से गयालडूंग तक भी बकरियों को चुगाते पहुंच जाते हैं. कभी-कभी गलती से सीमा पार कर जाने पर चरवाहों का सामना चीनी सैनिकों से भी हो जाता है. ऐसे में चरवाहे वापस लौटने पर भारतीय सेना को जरूरी सूचनाएं मुहैया कराते हैं.

डिजाइन फोटो
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देहरादून : पूर्वी लद्दाख के गलवान घाटी में चीन की कायराना हरकत के बाद दोनों देशों के बीच सीमा विवाद तल्ख हो चुका है. भारत और चीन के बीच सीमा को लाइन ऑफ एक्‍चुअल कंट्रोल कहते हैं. पूरा LAC करीब 3,488 किलोमीटर की है, उत्तराखंड 345 किलोमीटर लंबी भारत-चीन सीमा साझा करता है. LAC का मिडिल सेक्टर हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड है.

चीन कई बार चमोली के बाड़ाहोती और माणापास में घुसपैठ की हिमाकत कर चुका है. भारत-चीन बॉर्डर पर तल्खी के बाद उत्तराखंड में गढ़वाल और कुमाऊं सेक्टर में सैन्य बल बढ़ा दिया गया है.

उत्तराखंड में केंद्रीय आर्मी कमांड के बड़ी संख्या में सैनिक तैनात हैं. वहीं, उत्तरकाशी के चिन्यालिसौर में एयरफोर्स ने हवाई पट्टी को एक्टिव कर दिया है. चीन की नजर यहां भी हमेशा रही है तो इस मोर्चे पर भारत पूरी तरह तैयार हो चुका है. उत्तराखंड के बाड़ाहोती के मैदानी भू-भाग को लेकर भी चीन अक्सर घुसपैठ करता रहता है. सीमावर्ती इलाकों में चरवाहे सेना के लिए आंख, नाक और कान का भी काम करते हैं.

चमोली में स्थित भारत-चीन बॉर्डर रोड पर भेड़ और बकरी चरवाहों की आवाजाही लगातार बनी हुई है. सरकार से अनुमति मिलने के बाद भेड़पालक मलारी से होते हुए बाड़ाहोती, नीति घाटी से गयालडूंग तक भी बकरियों को चुगाते पहुंच जाते हैं. कभी-कभी गलती से सीमा पार कर जाने पर चरवाहों का सामना चीनी सैनिकों से भी हो जाता है. ऐसे में चरवाहे वापस लौटने पर भारतीय सेना को जरूरी सूचनाएं मुहैया कराते हैं.

ईटीवी भारत की रिपोर्ट

ईटीवी भारत से बातचीत में चरवाहे रूप सिंह बताते हैं कि उनका कई बार चीनी सैनिकों से सामना हो चुका है. LAC के करीब बकरियां घास चुगते-चुगते कई बार चीन की सीमा में भी प्रवेश कर जाती है. ऐसे में नाराज चीनी सैनिक चरवाहों के सामानों को नष्ट कर देते हैं. इसके साथ ही परेशान करने के लिए चीनी सैनिक आटे में नमक और मसाला मिला देते है और वापस लौट जाने की चेतावनी देते हैं. रूप सिंह बताते हैं कि चीनी सैनिकों का उन्हें खौफ नहीं सताता है. आज भी वे बेखौफ होकर बाड़ाहोती बॉर्डर जाते हैं और जरूरत पड़ने पर सेना की हरसंभव मदद करने की बात कहते हैं.

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उत्तराखंड में चीनी सेना का उल्लंघन

  • 2014 में सीमा क्षेत्र के अंतिम चौकी रिमखिम के पास चीनी हेलीकॉप्टर काफी देर तक मंडराते रहे.
  • 2015 में चीनी सैनिकों ने भारतीय सीमा में घुसकर स्थानीय चरवाहों का सामान नष्ट कर दिया था.
  • 2016 में सीमा के नजदीक इलाकों के निरीक्षण के दौरान चमोली जिला प्रशासन की टीम का चीनी सैनिकों से सामना हुआ था.
  • 3 जून वर्ष 2017 को बाड़ाहोती में दो चीनी हेलीकॉप्टर 3 मिनट तक मंडराते रहे.
  • 25 जुलाई वर्ष 2017 को सीमा क्षेत्र में चीनी सेना के 200 जवान भारतीय सीमा में एक किलोमीटर अंदर तक घुस आए.
  • 10 मार्च 2018 को बाड़ाहोती में चीनी सेना के तीन हेलीकॉप्टर भारतीय सीमा में 4 किलोमीटर अंदर तक घुस आए.
  • जुलाई 2018 में चीनी सैनिक भारतीय सीमा में घुस आए थे, तब भारतीय सेना ने उन्हें खदेड़ा था.

अलर्ट पर ITBP, सेना

आईटीबीपी ने एलएसी से लगे अपने सभी पोस्ट को अलर्ट कर चुकी है. इसके साथ ही भारतीय सेना ने चमोली में इंडो-चीन बॉर्डर पर सतर्कता बढ़ा दी है. चमोली जिले में माणा, नीति, मलारी और बाड़ाहोती घाटी की दर्जनों फॉरवर्ड पोस्ट पर आईटीबीपी के जवान तैनात हैं. आईटीबीपी के जवान पहाड़ों पर पेट्रोलिंग करके चीन की हर हरकत पर नजर रखते हैं. माणा में सेना और आईटीबीपी की यूनिट तैनात है.

वहीं, भारत-चीन सीमा विवाद के बीच बीआरओ उत्तराखंड में सीमा से सटे इलाकों में सड़कों का जाल बिछाने में जुटा हुआ है, जो रणनीतिक तौर पर भारत के लिए काफी अहमियत रखती है. उत्तराखंड की 345 किलोमीटर सीमा चीन से लगी है. जिसमें 122 किलोमीटर अकेले उत्तरकाशी जिले में आता है.

करगिल में चरवाहे ने दी थी सूचना

पहाड़ियों में अपनी याक खोजने गए ताशी नाम के चरवाहे ने 2 मई 1999 को सबसे पहले आतंकियों के भेष में आई पाकिस्‍तानी सेना को करगिल की पहाड़ियों पर देखा. 3 मई 1999 को ताशी ने इसकी जानकारी रास्‍ते में मिले सेना के जवानों को दी. जिसके बाद हुए युद्ध में भारत ने पाकिस्तान को करारी मात दी थी.

Last Updated : Jun 23, 2020, 11:38 AM IST
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