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बिहार में चुनाव के बाद कश्मीर की राजनीति से हटेगी धुंध

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Published : Oct 18, 2020, 7:17 PM IST

Updated : Oct 19, 2020, 6:25 AM IST

एक साल पहले गुपकार घोषणा पर हस्ताक्षर करने के बाद कांग्रेस फिलहाल इससे दूरी बनाती दिख रही है. जम्मू और कश्मीर के दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदलने और विशेष स्थिति की बहाली के बारे में बोलते हुए कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व बहुत सावधानी से शब्दों को चुन रहा है. पढ़िए पूरी रिपोर्ट.

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कश्मीर की राजनीति

नई दिल्ली : गुपकार घोषणा पर हस्ताक्षर करने के एक साल बाद 15 अक्टूबर को श्रीनगर में नेशनल कांफ्रेंस के संरक्षक डॉ. फारूक अब्दुल्ला के आवास पर जम्मू और कश्मीर के छह क्षेत्रीय दलों और एक राष्ट्रीय दल के नेताओं ने मुलाकात की. जम्मू-कश्मीर कांग्रेस कमेटी (जेकेपीसीसी) के अध्यक्ष गुलाम अहमद मीर को भी इस बैठक में आना था, मगर वह गैर-हाजिर रहे. कांग्रेस पार्टी ने 4 अगस्त 2019 को गुपकार घोषणा पर हस्ताक्षर किए थे. कांग्रेस का प्रतिनिधित्व पार्टी के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री ताज मोहिउद्दीन ने किया था. कुछ रिपोर्टों के अनुसार मीर बीमार होने के कारण 15 अक्टूबर की बैठक में अनुपस्थित रहे. हालांकि, इस बात का कोई स्पष्टीकरण नहीं मिला कि ताज या जेकेपीसीसी के किसी अन्य नेता ने 15 अक्टूबर की बैठक में पार्टी का प्रतिनिधित्व क्यों नहीं किया. जाहिर है, कांग्रेस खुलकर नहीं आना चाहती.

नई दिल्ली कांग्रेस मुख्यालय से नहीं मिली हरी झंडी

14 अक्टूबर की देर रात मीर ने इस पत्रकार को बताया कि डॉ. अब्दुल्ला ने उन्हें गुपकार घोषणा की बैठक के लिए आमंत्रित किया है. मीर ने बताया कि मैंने फारूक से कहा कि मैं श्रीनगर पहुंचने की पूरी कोशिश करुंगा, क्योंकि मैं अपने वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री मोहम्मद शारिज नियाज के स्मरण समारोह में शामिल होने डोडा आया हूं. उन्होंने दावा किया कि वह श्रीनगर से डोडा जाने के रास्ते बटोट में थे, लेकिन उन्होंने बीमारी का उल्लेख नहीं किया. जेकेपीसीसी के अंदरूनी सूत्रों ने बाद में खुलासा किया कि नई दिल्ली कांग्रेस मुख्यालय से कोई हरी झंडी नहीं मिलने के कारण मीर और पार्टी के अन्य नेताओं ने अनुपस्थित रहने का फैसला किया. सूत्रों में से एक के अनुसार, कांग्रेस आलाकमान बदलते हालात और बिहार में विधानसभा चुनाव के समय अनुच्छेद 370 और 35-ए को उठाने पर सहज नहीं है.

कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व बहुत सावधानी से शब्दों को चुन रहा

कांग्रेस सूत्रों ने कहा कि गुपकार घोषणा के हस्ताक्षरकर्ता जब तक अगस्त 2019 में छीन लिए गए अधिकारों की बहाली की बातें करते हैं, हमें कोई समस्या नहीं है. इस पर कांग्रेस उनके साथ है. अनुच्छेद 370 की वापसी की बात हमारे लिए हानिकारक होगी. यह केवल भाजपा की मदद करेगा. जम्मू और कश्मीर के दो केंद्र शासित प्रदेशों में बदलने और विशेष स्थिति की बहाली के बारे में बोलते हुए कांग्रेस का शीर्ष नेतृत्व बहुत सावधानी से शब्दों को चुन रहा है. यहां तक ​​कि अगस्त 2019 में गृहमंत्री अमित शाह के जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक पर बहस के दौरान कांग्रेस के नेताओं ने विधेयक के असंवैधानिक मार्ग से आने पर जोर देते हुए विरोध किया. जम्मू-कश्मीर पुनर्गठन विधेयक का विरोध नहीं किया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने, तो कांग्रेस को चुनौती तक दी थी कि अगर कांग्रेस में हिम्मत है तो वह चुनावों में अपने घोषणापत्र में अनुच्छेद 370 को बहाल करने की बात लिखकर दिखाए.

फारूक अब्दुल्ला और उमर 370 पर बोलने से बच रहे

पिछले दो-तीन महीनों में मीडिया को दिए नाराजगी भरे साक्षात्कारों के बावजूद डॉ. फारूक अब्दुल्ला और उमर ने सिर्फ 5 अगस्त 2019 को छीन लिए गए 'हमारे अधिकारों के लिए लड़ाई' वाक्य का इस्तेमाल किया. मीडिया ने जब उनसे अनुच्छेद 370 पर सवाल किए तभी उन्होंने 'अनुच्छेद 370' का नाम लिया. यह बात उनके पार्टी के सहयोगी आगा रूहुल्लाह के ट्वीट और बयानों के ठीक विपरीत है. आगा ने पार्टी के प्रवक्ता के रूप में इस्तीफा दे दिया है और स्पष्ट रूप से कहा है कि वह राज्य की बहाली और अनुच्छेद 370 की बहाली तक कोई चुनाव नहीं लड़ेंगे. स्थानीय समाचार एजेंसियों को दिए कुछ साक्षात्कारों में उमर ने भी यह स्पष्ट कहा है कि वह चुनाव तब तक नहीं लड़ेंगे, जब तक अनुच्छेद 370 और 35-ए को बहाल नहीं किया जाता.

महबूबा मुफ्ती ने जरूर कश्मीर मुद्दे पर तीखी टिप्पणी की

सार्वजनिक सुरक्षा कानून के तहत नजरबंदी से रिहा होने के बाद नेकां के उपाध्यक्ष और पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला ने कहा है कि राष्ट्रीय स्तर पर किसी भी प्रमुख विपक्षी दल ने घाटी आधारित विपक्षी सम्‍मेलन को पूरी तरह से समर्थन नहीं दिया है. पूर्व गृहमंत्री पी. चिदंबरम ने भले ही अपनी ओर से कभी-कभार कुछ बयान दिए थे. रिहाई के बाद उमर ने खुद को ट्विटर पर रीट्वीट करने तक सीमित कर लिया है. वह महबूबा मुफ्ती द्वारा इस सप्ताह की शुरुआत में जारी किए गए वीडियो की तरह बयान देने से बचते रहे हैं. 14 महीनों बाद रिहा हुई महबूबा मुफ्ती ने जरूर कश्मीर मुद्दे पर तीखी टिप्पणी की. नई दिल्ली ने इसे पाकिस्तानी सोच कहा है.

फारूक अब्दुल्ला के चीन पर दिए बयान का पार्टी ने किया खंडन

नेकां ने यह भी स्पष्ट किया कि डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने अनुच्छेद 370 की बहाली में चीन से कोई समर्थन नहीं मांगा था. एक टेलीविजन साक्षात्कार में डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने कहा था कि अनुच्छेद 370 को निरस्त करना और जम्मू-कश्मीर, लद्दाख के संघ का निर्माण करना चीन को स्वीकार्य नहीं है. भगवान तैयार हैं. वे हमारे लोगों को अनुच्छेद 370 वापस लाने में मदद कर सकते हैं. नेकां ने दावा किया कि डॉ. फारूक अब्दुल्ला के साक्षात्कार की गलत व्याख्या कर चीन से मदद मांगने की बात जोड़ दी गई.

पीपुल्स एलायंस के रूप में नया गठबंधन

गुरुवार को सात दलों की बैठक में नेकां, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी), पीपुल्स कॉन्फ्रेंस, सीपीआई (एम), अवामी नेशनल कॉन्फ्रेंस, जेएंडके पीपुल्स मूवमेंट और पीपुल्स डेमोक्रेटिक फ्रंटेडेक ने गुपकार घोषणा के लिए पीपुल्स एलायंस के रूप में अपने संयोजन का नाम दिया. डॉ. फारूक अब्दुल्ला ने कहा कि हम जम्मू, कश्मीर और लद्दाख से जो छीन लिया गया था, उसकी बहाली के लिए संघर्ष करेंगे. हमारी संवैधानिक लड़ाई है. हम चाहते हैं कि भारत सरकार 5 अगस्त, 2019 से पहले मिले राज्य के लोगों के अधिकारों को वापस करे. बिहार में चुनाव के बाद यह स्पष्ट होगा कि माकपा और कांग्रेस घाटी आधारित दलों के 370 पर दिए बयानबाजी का समर्थन करेंगे या उनसे दूरी बनाएंगे.

Last Updated : Oct 19, 2020, 6:25 AM IST
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