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जैविक विविधता पर होता है सभ्यता का निर्माण

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Published : May 22, 2020, 5:55 PM IST

प्रतीकात्मक चित्र
प्रतीकात्मक चित्र

जैविक विविधता संसाधन वे स्तंभ हैं, जिन पर हम सभ्यताओं का निर्माण करते हैं. वह मानव जाति की सभ्यताओं के निर्माण में अहम किरदार निभाती है.अकेले मछलियां लगभग तीन अरब लोगों को 20 प्रतिशत प्रोटीन प्रदान करती हैं. 80 प्रतिशत से अधिक मानव आहार पौधों द्वारा प्रदान किया जाता है. इसके अलावा विकासशील देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 80 फीसदी लोग बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पारंपरिक पौधों पर आधारित दवाओं पर निर्भर रहते हैं.

हैदराबाद : जैविक विविधता, संसाधन वे स्तंभ हैं, जिन पर हम सभ्यताओं का निर्माण करते हैं. वह मानव जाति की सभ्यताओं के निर्माण में अहम किरदार निभाती है. अकेले मछलियां लगभग तीन अरब लोगों को 20 प्रतिशत प्रोटीन प्रदान करती हैं. 80 प्रतिशत से अधिक मानव आहार पौधों द्वारा प्रदान किया जाता है. इसके अलावा विकासशील देशों के ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले 80 फीसदी लोग बुनियादी स्वास्थ्य सेवाओं के लिए पारंपरिक पौधों पर आधारित दवाओं पर निर्भर रहते हैं.

प्रत्येक वर्ष 22 मई को जैविक विविधता अंतरराष्ट्रीय दिवस मनाया जाता है. यह दिन जैविक संसाधनों की रक्षा के महत्व और हमारे पर्यावरण को आकार देने वाली वैश्विक जैव विविधता के बारे में वैश्विक जागरूकता बढ़ाने के लिए समर्पित है.

जैविक विविधता को पौधों, जानवरों और सूक्ष्मजीवों की विस्तृत विविधता के संदर्भ में अक्सर जाना जाता है, लेकिन इसमें प्रत्येक प्रजाति के भीतर आनुवांशिक अंतर भी शामिल हैं - उदाहरण के लिए, फसलों की किस्मों और पशुधन की नस्लों के बीच पारिस्थितिक तंत्र की विविधता (झीलों, जंगल, रेगिस्तान, कृषि परिदृश्य) है, जो उनके सदस्यों (मनुष्यों, पौधों, जानवरों) के बीच पाई जाती है.

2020 थीम : हमारे समाधान प्रकृति में हैं

एक अमेरिकी जीव विज्ञानी, प्रकृतिवादी और लेखक ई.ओ. विल्सन के मुताबिक यह जीवन की एक महफिल है, जिसे विकसित होने में एक अरब साल लग गए. इसने तूफानों को मिटा दिया और उन्हें अपने जीन में बदल दिया. इसने दुनिया को बनाया है, जिसने हमें बनाया है. यह दुनिया को स्थिर रखता है.

यह थीम दिखाती है कि लोग प्रकृति से अलग होने के बजाय प्रकृति का हिस्सा हैं और प्रकृति के साथ सद्भाव में भविष्य बनाने के लिए सभी स्तरों पर एकजुटता और एक साथ काम करने के महत्व पर जोर देते हैं.

प्रोद्योगिकी के बढ़ने के बावजूद हम आज भी पानी, भोजन, दवाओं, कपड़े, ईंधन, आश्रय और ऊर्जा के लिए पूरी तरह से स्वस्थ और जीवंत पारिस्थितिकी तंत्र पर निर्भर हैं.

मोटे तौर पर यूएस $44 ट्रिलियन का आर्थिक मूल्य सृजन करता है, जो वैश्विक जीडीपी के आधे से ज्यादा है — यह जीडीपी प्रकृति या उससे संबंधित सेवाओं पर निर्भर है.

कंस्ट्रक्शन, कृषि, और खाद्य इंडस्ट्रीज पूरी तरह से प्रकृति पर निर्भर करती हैं. इसके अलावा 10 करोड़ लोगों में से 70 प्रतिशत लोग प्राकृतिक संसाधनों पर ही निर्भर करते हैं. इनमें खेती, फिशिंग, वन और अन्य संसाधन शामिल हैं.

यहां तक कि कोरोना वायरस जैसी महामारियों के प्रकोप ने हमें बार-बार पुनर्विचार करने के लिए मजबूर किया है कि प्राकृतिक विविधता हमारे जीवन के लिए कितनी मूल्यवान है. यह संक्रामक रोगों से सुरक्षा के लिए कितना अहम किरदार निभाती है.

यह सबूत सुझाव देने के लिए काफी हैं कि जैव विविधता के नुकसान से जूनोसिस के मामलों की संख्या बढ़ सकती है, दूसरे शब्दों में, रोग जानवरों से मनुष्य में पहुंच सकते हैं.

हाल के वर्षों में उभरते संक्रामक रोगों में से 70 प्रतिशत जूनोसिस से उपजी हैं. चूंकि कई प्रजातियां अक्सर संक्रमण के प्रसार में शामिल होती हैं, उन प्रजातियों में से कई की जैव विविधता और विलुप्त होने से रोगजनकों के मनुष्यों तक पहुंचने की संभावना बढ़ जाती है.

इसलिए, जब डब्ल्यूएचओ हमें संभावित अप्रत्याशित परिदृश्यों के लिए तैयार करने के लिए कहता है.

पढ़ें - विश्व जैविक विविधता दिवस– प्रकृति में ही छिपे हैं हमारे समाधान

वहीं वैज्ञानिक इस बात पर जोर देते हैं कि हमारा जीवन स्वस्थ, कार्यात्मक और प्रजातियों से समृद्ध पारिस्थितिकी तंत्र से घिरा हुआ है और यह मानव जाति और हमारे ग्रह की स्थिरता के लिए सबसे अच्छा है.

जैव विविधता के लिए एक बड़ा खतरा है जलवायु
भारत 17 मेगा जैव विविधता संपन्न देशों में से एक है, जहां दुनिया की दर्ज प्रजातियों में 7 से 8 प्रतिशत प्रजातियां मौजूद हैं.

जैविक विविधता की सबसे बड़ी सांद्रता हिमालय, अंडमान और निकोबार द्वीप समूह और पश्चिमी घाट क्षेत्रों में पाई जाती है, जहां पिछले कुछ दशकों में भारत ने कम से कम आधे जंगलों को काट दिया है और 70 प्रतिशत से अधिक जलाशयों को प्रदूषित कर दिया गया है. आज वनीय क्षेत्रों में खेती हो रही है और वहां घास के मैदान बना दिए गए हैं.

आज कोई भी यह नहीं कह सकता कि हम कितनी प्रजातियों को खो चुके हैं. चीता (एसिनोनिक्स जुबेटस) और गुलाबी सिर वाला बत्तख (रोडोडेना कैरोफिलैसिया) उन कुछ विशिष्ट प्रजातियों में से एक हैं, जिनके बारे में हर कोई बात करता है.

दुनियाभर में कई प्रजातियां हैं, जो पहले ही अपरिवर्तनीय परिणाम भुगत चुकी हैं. आज हर घंटे तीन प्रजातियां गायब हो जाती हैं, प्रतिदिन 100 से 150 प्रजातियां लुप्त हो जाती हैं. हर साल 15,000 से 80,000 प्रजातियां विलुप्त हो जाती हैं.

जलवायु परिवर्तन के परिणामस्वरूप कनाडा में ध्रुवीय भालू की आबादी पिछले तीस वर्षों में 22 प्रतिशत कम हो गई है.

ग्लोबल वार्मिंग के कारण की 74 प्रजातियां पहले ही गायब हो चुकी हैं.

30 साल पहले, जहां अंटार्कटिका में एडेली पेंगुइन के 320 जोड़े थे. आज वहां घटकर 54 जोड़े रह गए हैं.

'फ्लाइकैचर' प्रजाति के पक्षी की, जो नीदरलैंड में रहता है, आबादी पिछले कुछ दशकों में 90 प्रतिशत कम हो गई है. इसका एकमात्र कारण जलवायु परिवर्तन के और खाद्य आपूर्ति में व्यवहार का परिवर्तन होना है.

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