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चीन के मीडिया ने कहा- हमारे उत्पादों के बहिष्कार से भारत को होगा ज्यादा नुकसान

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Published : Jun 22, 2020, 5:39 PM IST

Updated : Jun 22, 2020, 7:24 PM IST

चीन के ग्लोबल टाइम्स अखबार में छपे 'भारत को चीन के साथ सीमावर्ती आर्थिक संबंधों को खराब नहीं होने देना चाहिए' शीर्षक के एक लेख में लिखा है कि 'केवल अपनी सीमाओं पर अमन और शांति को बहाल करके ही दो बडे़ और उभरते एशियाई देशों के बीच घनिष्ठ व्यापार संबंधों और आर्थिक संबंधों को मजबूत किया जा सकता सकता है, जो दोनों को ही लाभान्वित करेंगे.'

Boycotting Chinese products
चीनी उत्पाद बहिष्कार

चीन विरोधी बयानबाजी और पिछले हफ्ते सीमा पर हुई हिंसक झड़प में 20 भारतीय सेना के जवानों की मौत के बाद भारत में चीनी सामानों के बहिष्कार की मांग उफान पर है, ऐसे में चीन के राज्य के मुखपत्र ने रविवार को यह कहते हुए शांत रहने का आह्वान किया कि भारतीय एशियाई विशालकाय उद्योग में निर्मित उत्पादों के बिना जीने की कल्पना नहीं कर सकते हैं.

चीन के ग्लोबल टाइम्स अखबार में 'भारत को चीन के साथ सीमावर्ती आर्थिक संबंधों को खराब नहीं होने देना चाहिए' शीर्षक के साथ छपे एक लेख में लिखा है कि 'केवल अपनी सीमाओं पर अमन और शांति को बहाल करके ही दो भारी भरकम उभरते एशियाई देशों के बीच घनिष्ठ व्यापार संबंधों और आर्थिक संबंधों को मजबूत किया जा सकता सकता है, जो दोनों को ही लाभान्वित करेंगे.'

इसमें कहा गया है कि 'दोनों देशों को अपनी पूरी ताकत लगाकर सीमा पर घटित हाल की घटनाओं को आगे और बिगड़ने और इसका असर द्विपक्षीय संबंधों पर गंभीर रूप पड़ने से रोकना चाहिए.'

15-16 जून की दरमियानी रात में लद्दाख की गलवान घाटी में चीनी सैनिकों के साथ एक हिंसक झड़प के दौरान एक कर्नल समेत 20 भारतीय सेना के जवान मारे गए थे. हालांकि नई दिल्ली और बीजिंग तनाव को कम करने के लिए सैन्य और कूटनीतिक स्तर पर बातचीत में व्यस्त हैं. भारत में चीन के खिलाफ गुस्सा बढ़ता जा रहा है यहां तक कि एक केंद्रीय मंत्री ने चीन के भोजन पर प्रतिबंध लगाने की हिमायत तक कर डाली है!

सोशल मीडिया में तमाम चीज़ों के साथ चीन में निर्मित टेलीविजन सेटों को तोड़ने वाले भारतीयों के वीडियो वायरल हो रहे हैं.

45 वर्षों में यह पहली बार है कि 3,488 किलोमीटर लंबी भारत-चीन की सीमा पर इस तरह के घातक हमले हुए हैं.

रविवार के ग्लोबल टाइम्स के लेख में लद्दाख में हुए टकराव को 'दुर्भाग्यपूर्ण संघर्ष' बताते हुए कहा गया कि इसका इस्तेमाल भारत के अन्दर और बहार 'राजनेताओं और षड्यंत्र के सिद्धांतकारों द्वारा नहीं किया जाना चाहिए, जिससे देश में राष्ट्रवाद और चीन के प्रति घृणा और ज्यादा बढ़े- चीन भारत का एक विशाल पड़ोसी जिसपर भारत 'अपनी अर्थव्यवस्था को आगे बढ़ाने के लिए' निर्भर करता है.'

उसमें यह खा गया है कि 'हालांकि, कई भारतीय टेलीविजन एंकर और अखबार के राय देने वाले स्तंभकार चीन को मुंहतोड़ जवाब देने के लिए ललकार कर सीमा पर चल रही तनातनी को औउर ज्यादा बढ़ाना चाहते हैं.'

'हम ये आशा करते हैं कि अपने देश में भारतीय इन कट्टरपंथी तत्वों द्वारा मूर्ख नहीं बनेंगे. भारत को आर्थिक और भूराजनैतिक तौर पर चीन की जरूरत है.'

विदेश मंत्रालय के आंकड़ों के अनुसार, कुल 95.54 बिलियन डॉलर के भारत-चीन द्विपक्षीय व्यापार की राशि में, भारत का निर्यात $ 18.84 बिलियन था. भारत चीनी उत्पादों के लिए सातवां सबसे बड़ा निर्यात गंतव्य है, और चीन के लिए 27 वां सबसे बड़ा निर्यातक है. जनवरी से जुलाई 2019 की अवधि के दौरान भारत-चीन व्यापार 53.3 बिलियन डॉलर रहा. चीन को भारत का निर्यात 10.38 बिलियन डॉलर रहा, जिसमें 5.02 प्रतिशत की गिरावट थी, और भारत में चीन का निर्यात 42.92 बिलियन डॉलर था, 2.51 प्रतिशत की गिरावट दर्ज की गई थी. भारत के प्रमुख निर्यात की जाने वाली वस्तुओं में कपास, तांबा और हीरे/प्राकृतिक रत्न शामिल हैं, जबकि प्रमुख चीनी निर्यात में मशीनरी, दूरसंचार और बिजली से संबंधित उपकरण, जैविक रसायन और उर्वरक शामिल हैं.

ग्लोबल टाइम्स के लेख में कहा गया है कि 'चीन भारत को बहुतायत अवसर प्रदान करता है.' भारत में शीर्ष 30 तथाकथित यूनिकॉर्न स्टार्टअप उद्यमों में से 18 में चीनी कंपनियों द्वारा निवेश किया गया है. और घरेलू रंगीन टीवी, माइक्रोवेव ओवन और एयर कंडीशनर से लेकर सबसे फैशनेबल मोबाइल फोन और लैपटॉप तक भारतीयों द्वारा रोज़ इस्तेमाल किए जाने वाले जरूरत के कई सामान चीन द्वारा उत्पादित किए जाते हैं. सस्ती कीमतों और अच्छी गुणवत्ता के कारण, चीनी वस्तुओं को बदलना मुश्किल है.

भारत से 'एशिया में भूराजनीतिक तनावों को न भड़काने' का सुझाव देते हुए, लेख में कहा गया है कि 'नई दिल्ली के पास चीन के साथ अच्छे और पारस्परिक रूप से लाभप्रद संबंधों के पोषण के 100 कारण हैं, क्योंकि वे दोनों अपने क्षेत्र को एक दूसरे से दूर नहीं ले जा सकते हैं.'

हालिया भारत औरचीन की सेना के बीच का टकराव, 2017 में, डोकलाम में दोनों पक्षों की सेनाओं के बीच भारतीय-भूटान-चीन अंतरराष्ट्रीय सीमा पर हुए 73 दिनों की तनाव के फ़ौरन बाद का है इसके बाद, प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी और चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने कजाकिस्तान में शंघाई सहयोग संगठन (एससीओ) शिखर सम्मेलन में समय निकाल कर मुलाकात की और उसी वर्ष दोनों नेताओं ने सहमति व्यक्त की कि दोनों देशों के बीच मतभेदों को विवाद बनने की अनुमति नहीं दी जानी चाहिए. इस समझौते को कूटनीतिक रूप से 'अस्ताना आम सहमति' का नाम दिया गया था.

द्विपक्षीय संबंधों को और अधिक मजबूती देने के लिए, 2018 में शी ने वुहान में मोदी के लिए अनौपचारिक शिखर सम्मेलन आयोजित किया, यह वही शहर है जहां मौजूदा कोविड -19 महामारी का प्रकोप था, और प्रधानमंत्री ने पिछले साल चेन्नई के पास ममल्लापुरम में इसी तरह के शिखर सम्मेलन का आयोजन कर चीनी राष्ट्रपति की मेजबानी की थी.

लद्दाख में हाल में हुए संघर्ष के मद्देनज़र, आलोचक मोदी और शी के बीच व्यक्तिगत रिशोतों पर सवाल उठा रहे हैं यह कहते हुए कि दोनों के बीच में प्रचारित 'वुहान स्पिरिट' और 'चेन्नई कनेक्ट' अब कहां गया है?

कोरोनोवायरस के प्रकोप को लेकर चीन के रवय्ये की वैश्विक आलोचना के अलावा, चीन-अमेरिका व्यापार युद्ध के दरमियान वाशिंगटन और नई दिल्ली के बीच बढ़ती नजदीकियों से भी चीन नाराज़ है.

जापान और ऑस्ट्रेलिया के साथ भारत और अमेरिका भी एक ऐसे चतुष्कोण का हिस्सा हैं जो भारत-प्रशांत, (जो जापान के पूर्वी तट से अफ्रीका के पूर्वी तट तक फैला है) के क्षेत्र में शांति और समृद्धि सुनिश्चित करने का प्रयास कर रहा है.

यह तब और भो महत्वपूर्ण हो जाता है जबकि इस क्षेत्र में चीन के बढ़ते पदचिह्न और दक्षिण चीन सागर में उसका वर्चस्व कायम है.

(अरुनिम भुयान)

Last Updated : Jun 22, 2020, 7:24 PM IST
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