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सुप्रीम कोर्ट का बड़ा फैसला, जबरन संबंध बनाने से प्रेग्नेंट हुई पत्नी गर्भपात की हकदार

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Published : Sep 29, 2022, 11:18 AM IST

Updated : Sep 29, 2022, 5:34 PM IST

Supreme Court judgement on abortion
सुप्रीम कोर्ट

सुप्रीम कोर्ट ने गर्भपात पर अपने ऐतिहासिक फैसले में कहा है कि सभी महिलाओं को गर्भपात का अधिकार (supreme court on abortion) है, चाहे विवाहित हों या अविवाहित. शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर जबरन संबंध बनाने की वजह से पत्नी गर्भवती होती है तो उसे सुरक्षित और कानूनी गर्भपात कराने का हक है.

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गर्भ का चिकित्सकीय समापन (एमटीपी) अधिनियम के तहत विवाहित या अविवाहित सभी महिलाओं को गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक सुरक्षित व कानूनी रूप से गर्भपात कराने का अधिकार (supreme court on abortion) देते हुए गुरुवार को कहा उनके वैवाहिक होने या न होने के आधार पर कोई भी पक्षपात संवैधानिक रूप से सही नहीं है. शीर्ष अदालत ने कहा कि बलात्कार के अपराध की व्याख्या में वैवाहिक बलात्कार को भी शामिल किया जाए, ताकि मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी (MTP) एक्ट का मकसद पूरा हो.

न्यायमूर्ति डीवाई चंद्रचूड़, न्यायमूर्ति जेबी पारदीवाला और न्यायमूर्ति एएस बोपन्ना की एक पीठ ने कहा कि प्रजनन स्वायत्तता के नियम विवाहित या अविवाहित दोनों महिलाओं को समान अधिकार देता है. पीठ ने कहा कि गर्भपात कानून के तहत विवाहित या अविवाहित महिला के बीच पक्षपात करना प्राकृतिक नहीं है एवं संवैधानिक रूप से भी सही नहीं है और यह उस रूढ़िवादी सोच को कायम रखता है कि केवल विवाहित महिलाएं ही यौन संबंध बनाती हैं.

एमटीपी अधिनियम के प्रावधानों के तहत विवाहित महिला को गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक वह गर्भपात कराने की अनुमति दी गई है, बलात्कार की पीड़िता, दिव्यांगग और नाबालिग लड़की को विशेष श्रेणी में गर्भपात कराने की अनुमति दी जाती है. वहीं कानून के तहत अविवाहित तथा विधवा गर्भावस्था के 20 सप्ताह तक ही गर्भपात करा सकती हैं, जिन्होंने सहमति से संबंध बनाए हैं या बनाए थे. शीर्ष अदालत ने कहा कि अगर जबरन संबंध बनाने की वजह से पत्नी गर्भवती होती है तो उसे सुरक्षित और कानूनी गर्भपात कराने का हक है.

पीठ ने एमटीपी अधिनियम की व्याख्या पर फैसला सुनाते हुए कहा कि चाहे महिला विवाहित हो या अविवाहित, वह गर्भावस्था के 24 सप्ताह तक वह गर्भपात करा सकती हैं. पीठ ने 23 अगस्त को एमटीपी अधिनियम के प्रावधानों की व्याख्या पर अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था, जिसमें विवाहित और अविवाहित महिलाओं के गर्भपात कराने को लेकर अलग-अलग प्रावधान हैं. शीर्ष अदालत ने पाया कि एमटीपी अधिनियम के प्रावधानों में 'बदलाव' की जरूरत है. उसने कहा कि वह उन सात श्रेणियों में विवाहित ना होने बावजूद छोड़ दी गईं महिलाओं के लिए एक श्रेणी जोड़ना चाहेंगे, जिसमें 24 सप्ताह की गर्भावस्था तक महिलाएं गर्भपात करा सकती हैं.

पढ़ें: मेक्सिको में गर्भपात के अधिकार को लेकर महिलाओं का विरोध

केंद्र की ओर से अदालत में पेश हुईं अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने शीर्ष अदालत से कहा था कि पक्षपात, यदि कोई है तो संसद द्वारा पारित अधिनियम में नहीं है और यदि अदालत हस्तक्षेप करने को तैयार है तो उसे एमटीपी अधिनियम 2003 में करना चाहिए. उन्होंने कहा कि इन मुद्दों पर विशेषज्ञों की अलग-अलग राय है और उनके अनुसार इसे विभिन्न श्रेणियों में इसलिए बांटा गया है, ताकि 'गर्भधारण पूर्व और प्रसवपूर्व निदान-तकनीक' (लिंग चयन प्रतिषेध) अधिनयम (पीसी-पीएनडीटी) जैसे कानूनों का दुरुपयोग ना हो. अदालत ने कहा, 'हम एक बात स्पष्ट करना चाहेंगे कि हम ऐसा आदेश पारित करेंगे, जिससे पीसी-पीएनडीटी अधिनियम के प्रावधान प्रभावित नहीं होंगे.'

शीर्ष अदालत ने 21 जुलाई को अविवाहित महिलाओं के लिए एमटीपी अधिनियम के दायरे का विस्तार करते हुए 25 वर्षीय एक युवती को 24 सप्ताह गर्भवती होने के बावजूद गर्भपात कराने की अनुमति दे दी थी. महिला सहमति से बनाए संबंधों के बाद गर्भवती हुई थी.

Last Updated :Sep 29, 2022, 5:34 PM IST
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