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खेती से आय बढ़ाने के लिए बजट में कृषि अवसंरचना निधि का प्रावधान

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Published : Feb 23, 2021, 9:05 PM IST

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बजट में एक महत्वपूर्ण उपाय कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट सेस (AIDC) की घोषणा है. इस उपकर का उद्देश्य कृषि बुनियादी ढांचे में सुधार करना है ताकि हम कृषि उत्पादन को कुशलता से संरक्षित और प्रसंस्करण कर सकें. इसके निहितार्थ बता रहे हैं आईजीआईडीआर मुंबई के कुलपति एस. महेंद्र देव.

मुंबई : केंद्रीय बजट में कई महत्वपूर्ण बातें हैं जिनमें पहला यह कि बजट में राजकोषीय घाटा इस वित्त वर्ष में 9.5 प्रतिशत है और अगले वित्त वर्ष में 6.8 प्रतिशत अनुमानित है. दूसरा, बजट में सुधारों के साथ दिशात्मक परिवर्तन किया गया है. परिसंपत्ति मुद्रीकरण, बैंकों का निजीकरण, बीमा में एफडीआई वृद्धि, परिसंपत्ति पुनर्निर्माण कंपनी की स्थापना का प्रावधान है. तीसरा, बजट ने पूंजीगत व्यय और बुनियादी ढांचे को आगे बढ़ाया है. इस वर्ष के बजट में पूंजीगत व्यय 4.4 लाख करोड़ रुपये से बढ़कर अगले वर्ष के लिए 5.5 लाख करोड़ रुपये (लगभग 35% वृद्धि) हो गया है.

राज्यों और स्वायत्त निकायों को उपयोग करने के लिए 2 लाख करोड़ पूंजीगत व्यय आवंटित किए गए हैं. बजट में निवेश को बढ़ावा देने के लिए विकास वित्तीय संस्था डीएफआई की भी घोषणा की गई. वित्त मंत्री का कहना है कि बुनियादी ढांचे और स्वास्थ्य को बढ़ावा देना, इस बजट की परिभाषित विशेषताएं हैं. चौथा, बजट में कोई अतिरिक्त कर नहीं है. व्यय को बाजार से या विनिवेश के माध्यम से उधार लिया जाएगा. वित्त मंत्री ने यह भी उल्लेख किया कि कृषि बुनियादी ढांचे को भी इस बजट में जगह दी गई है. कृषि आय बढ़ाने के लिए बुनियादी ढांचे के मुद्दे को देखना महत्वपूर्ण है.

कोविड से आय-रोजगार को क्षति

कृषि और ग्रामीण क्षेत्रों पर कोविड-19 का प्रतिकूल प्रभाव शहरी क्षेत्रों की तुलना में कम रहा है. जबकि कोविड के कारण लॉकडाउन ने गैर-कृषि क्षेत्र के प्रदर्शन पर प्रतिकूल प्रभाव डाला है. 2020-21 में कृषि में विकास दर लगभग 3.4% होगी. हालांकि कृषि और ग्रामीण आय अभी भी कम है क्योंकि व्यापार की शर्तें कृषि के पक्ष में नहीं हैं. रिवर्स माइग्रेशन के कारण ग्रामीण मजदूरी में कम वृद्धि हुई जिससे ग्रामीण क्षेत्रों में आय कम हुई है. अनौपचारिक क्षेत्र और श्रमिकों को कोविड अवधि के दौरान आय और रोजगार के नुकसान का सामना करना पड़ा है.

कृषि के बुनियादी ढांचे का विकास

बजट में कृषि योजनाओं, कृषि और ग्रामीण बुनियादी ढांचे के लिए अधिक आवंटन की उम्मीद की गई ताकि विकास और रोजगार में सुधार हो सके. कृषि और संबद्ध गतिविधियों के लिए आवंटन में 2020-21 में 145355 करोड़ रूपये से 2021-22 में 148301 करोड़ यानि 2 फीसदी की मामूली वृद्धि हुई है. यदि आप बजट की तुलना दो वर्षों के बजट अनुमानों से करते हैं तो 4.2 % की गिरावट आई है. हालांकि इस बजट ने ग्रामीण अवसंरचना विकास फंड (RIDF) को इस वित्तीय वर्ष में 30000 करोड़ रूपये से अगले साल के लिए 40000 करोड़ रूपये तक बढ़ा दिया गया है.

कृषि अवसंरचना विकास सेस

हाल के बजट में एक महत्वपूर्ण उपाय कृषि इन्फ्रास्ट्रक्चर एंड डेवलपमेंट सेस (AIDC) की घोषणा है. इस उपकर का उद्देश्य कृषि बुनियादी ढांचे में सुधार करना है ताकि हम कृषि उत्पादन को कुशलता से संरक्षित और प्रसंस्करण कर सकें. साथ ही अधिक उत्पादन पा सकें. यह हमारे किसानों के लिए संवर्धित पारिश्रमिक सुनिश्चित करेगा. हालांकि इस उपकर को लागू करते समय सरकार ने इस बात का ध्यान रखा है कि अधिकांश उपभोक्ताओं वस्तुओं पर अतिरिक्त बोझ न डाला जाए.

उपभोक्ता पर अतिरिक्त बोझ नहीं

बजट दस्तावेजों से पता चलता है कि कई वस्तुओं पर बेसिक सीमा शुल्क (BCD) को कम कर दिया गया है. जबकि सोने और चांदी पर 2.5% की दर से उपकर लगाया गया है. सोयाबीन तेल का ही मामला लें तो बजट पूर्व बीसीडी 35 प्रतिशत थी. जिस पर 10 प्रतिशत सामाजिक कल्याण उपकर लगाया गया. इसलिए बजट से पहले कच्चे सोयाबीन पर प्रभावी आयात शुल्क 38.50 प्रतिशत था. हालांकि बजट के बाद कच्चे सोयाबीन तेल पर मूल सीमा शुल्क वर्तमान 35 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत कर दिया गया. अतिरिक्त 20 प्रतिशत एआईडीसी लगाया गया है जो 10 प्रतिशत सामाजिक कल्याण उपकर के साथ लागू होगा. इसलिए यहां की दर में कोई बदलाव नहीं हुआ है.

वित्त मंत्री ने ऐसे किया प्रबंधन

इसी तरह बजट से पहले दालों पर 60 फीसदी का बीसीडी आकर्षित किया लेकिन 1 फरवरी को यह 10 प्रतिशत तक कम किया गया. पल्स पर 50 प्रतिशत एआईडीसी लगाया गया था. जबकि प्रभावी सीमा शुल्क को 60 प्रतिशत या पहले की तरह ही रखा गया है. पेट्रोल और डीजल के मामले में पेट्रोल पर 2.5 रुपये प्रति लीटर का एआईडीसी और डीजल पर 4 रुपये प्रति लीटर लगाया गया है. पेट्रोल और डीजल पर कृषि अवसंरचना और विकास उपकर (AIDC) लगाने के परिणामस्वरूप उन पर मूल उत्पाद शुल्क (BED) और विशेष अतिरिक्त उत्पाद शुल्क (SAED) की दरें घटा दी गई हैं. ताकि समग्र उपभोक्ता को कोई अतिरिक्त बोझ न उठाना पड़े. परिणामस्वरूप अनब्रांडेड पेट्रोल और डीजल क्रमशः 1.4 रुपये और 1.8 रुपये प्रति लीटर के मूल उत्पाद शुल्क पर जारी है.

इसे लेकर कुछ चिंताएं भी हैं

यद्यपि उपभोक्ता कोई अतिरिक्त बोझ नहीं पड़ा लेकिन उपकर से जुड़े कई अन्य मुद्दे हैं जो कुछ चिंताओं को जन्म देते हैं. सबसे बड़ा मुद्दा यह है कि कर तंत्र राजस्व में राज्यों की हिस्सेदारी को प्रभावी ढंग से नियंत्रित करता है क्योंकि उपकर के केंद्रीय पूल का हिस्सा नहीं बनता है. वित्त आयोग की सिफारिशों के अनुसार इसे राज्यों के साथ साझा नहीं किया जाता है. इससे पहले इन वस्तुओं पर सीमा शुल्क के रूप में जो एकत्र किया जा रहा था वह केंद्रीय पूल में आया होगा और इसलिए इसे केंद्र और राज्यों के बीच साझा किया जाएगा. लेकिन इसके बाद एआईडीसी के पूरी तरह से केंद्र के साथ निहित होने के साथ ही केवल कम बीसीडी पूल में प्रवेश करने से वह हिस्सा नीचे चला जाएगा. मान लेते हैं कि बजट से पहले किसी उत्पाद ने 100 प्रतिशत शुल्क आकर्षित किया है. जिसमें से बीसीडी 95 प्रतिशत था और उपकर 5 प्रतिशत था. इसलिए 5 प्रतिशत केंद्र सरकार के खजाने में चला गया. शेष 95 प्रतिशत केंद्र सरकार और राज्यों के बीच साझा किया गया. यदि 95 प्रतिशत बीसीडी को 93 प्रतिशत तक लाया जाता है तो उपकर घटक बढ़कर 7 प्रतिशत हो जाता है. इससे अतिरिक्त 2 प्रतिशत केंद्र सरकार के खातों में स्थानांतरित हो जाता है. राज्यों को इस घटक से कुछ भी नहीं मिलता.

केंद्र व राज्य के बीच समन्वय

कच्चे पाम तेल के मामले में पहले 27.5 प्रतिशत की बीसीडी से आय केंद्र और राज्यों के बीच साझा की जाती थी. नए नियमों के तहत दोनों के बीच केवल 15 प्रतिशत की हिस्सेदारी होगी. जबकि 37.75 प्रतिशत में से करीब 27.5 प्रतिशत पूरी तरह से केंद्र सरकार के साथ बना रहेगा. एआईडीसी के साथ दूसरा बिंदु इसकी अंतर दर संरचना है. अब तक उपकर को आमतौर पर एक समान दर पर लगाया जाता है. लेकिन यह शायद पहली बार है कि विभिन्‍न उत्‍पादों पर 2.5 प्रतिशत से लेकर 50 प्रतिशत तक के अंतर तक उपकर दरों को लगाया गया है. वैसे AIDC का कुल संग्रह बहुत स्‍पष्‍ट नहीं है. हालांकि ऐसी रिपोर्टें हैं जो दिखाती हैं कि यह सालाना 30,000 करोड़ रुपये की सीमा तक हो सकता है.

किस तरह होगा क्रियान्वयन

एआईडीसी संग्रह का उपयोग कहां किया जाएगा, इस बारे में कई प्रश्न हैं. क्योंकि अतीत में भी इस पर सवाल उठ चुके हैं कि क्या उपकर का उपयोग उस उद्देश्य के लिए किया जाएगा जिसके लिए इसे एकत्र किया गया है. उदाहरण के लिए 2018-19 में भारत के नियंत्रक और महालेखा परीक्षक की रिपोर्ट इंगित करती है कि 2018-19 में 35 सेस और अन्य शुल्कों से 274592 करोड़ रुपये जुटाए गए. भले ही उपकर का उपयोग कृषि अवसंरचना के विकास के लिए किया जाता है लेकिन जल वितरण या फसल विविधीकरण के लिए या कृषि बाजारों को विकसित करने के लिए इसका वास्तव में क्या मतलब है.

एक लाख करोड़ का एआईएफ

बजट में यह भी घोषणा की गई है कि 1 लाख करोड़ के कृषि अवसंरचना कोष (एआईएफ) का उपयोग एपीएमसी (कृषि उपज विपणन समितियों) द्वारा उनकी बुनियादी सुविधाओं को बढ़ाने के लिए किया जा सकता है. जो कि एक अच्छा निर्णय है. बेहतर बुनियादी ढांचे के साथ एपीएमसी को मजबूत किया जाना चाहिए. कृषि बुनियादी ढांचे के फंड को तेजी से उपयोग करने के लिए प्रोत्साहित किया जाना चाहिए. इसी तरह छोटे और सीमांत किसानों की मदद के लिए खेत उत्पादक संगठनों में तेजी से वृद्धि की जानी चाहिए.

ग्रामीण एमएसएमई को बढ़ावा

लगभग 51 फीसदी MSME ग्रामीण क्षेत्रों में हैं और उन्हें पुनर्जीवित किया जाना है. कोविड -19 MSMEs के लिए एक बड़ा झटका है. इस उद्देश्य के लिए कृषि अवसंरचना निधि का भी उपयोग किया जाना चाहिए. भारत गतिशील MSME के बिना आत्मानिर्भर नहीं बन सकता. घोषित उपायों का प्रभाव सफल निष्पादन पर निर्भर करता है. समग्र अर्थव्यवस्था की मांग के लिए कृषि और ग्रामीण पुनरुद्धार भी महत्वपूर्ण हैं. कृषि राज्य का विषय है और केंद्र को सहकारी केंद्रीय ढांचे में काम करना है. AIDC के डिजाइन को राज्यों के परामर्श से अंतिम रूप दिया जाना है.

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केंद्र सरकार को विकास, इक्विटी और स्थिरता के लक्ष्यों को ध्यान में रखते हुए कृषि और ग्रामीण बुनियादी ढांचे को बदलने में राज्यों के साथ मिलकर काम करना होगा. यह देखना होगा कि कृषि अवसंरचना और विकास उपकर निधि किसानों की आय बढ़ाने के वांछित परिणाम को पूरा करती है या नहीं. इस फंड का उपयोग कैसे किया जाता है, यह भी एक महत्वपूर्ण मुद्दा है. जिस पर आगे ध्यान देने की आवश्यकता है.

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