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SC on Contractual Teachers In NLU : संविदा शिक्षकों के भरोसे चल रहा एनएलयू, SC ने कहा, 'बड़ी चिंता का विषय'

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Sep 14, 2023, 1:34 PM IST

सुप्रीम कोर्ट राजस्थान उच्च न्यायालय के एक फैसले से जुड़े एक मामले में सुनवाई कर रही है. यह मामला नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, राजस्थान से जुड़ा है. मामले की सुनवाई के दौरान कोर्ट ने टिप्पणी की कि संविदा शिक्षकों के भरोसे लॉ यूनिवर्सिटी का चलना चिंता का विषय है. पढ़ें पूरी खबर...

SC on Contractual Teachers In NLU
प्रतिकात्मक तस्वीर

नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी को केवल संविदा शिक्षकों के सहारे चलाने पर चिंता व्यक्त की है. शीर्ष अदालत मंगलवार को संविदा शिक्षकों की नियुक्ति पर राजस्थान उच्च न्यायालय के 2019 के फैसले से जुड़े एक मामले की सुनवाई कर रही थी.

इस मामले में अधिवक्ता ऋषभ संचेती और अन्य वकील ने प्रतिवादी शिक्षकों का प्रतिनिधित्व किया. उन्होंने शीर्ष अदालत के समक्ष उच्च न्यायालय के फैसले का बचाव किया. उच्च न्यायालय ने नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी में शिक्षकों को संविदा पर रखने और एक महीने का नोटिस देकर अनुबंध समाप्त करने के सेवा नियमों को रद्द कर दिया था.

उच्च न्यायालय ने कहा था कि यह स्पष्ट रूप से मनमाना और अनुचित है और संविधान के अनुच्छेद 14, 16 और 21 को स्पष्ट रूप से नकारता है. सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान कहा कि यह बहुत चिंता का विषय है कि कानूनी शिक्षा में अग्रणी संस्थान नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी केवल संविदा शिक्षकों के साथ काम करे. न्यायमूर्ति संजय किशन कौल और न्यायमूर्ति सुधांशु धूलिया की पीठ यह जानकर आश्चर्यचकित रह गई कि नेशनल लॉ यूनिवर्सिटी, जोधपुर का प्रबंधन केवल संविदा शिक्षण कर्मचारियों द्वारा किया जा रहा है. पीठ ने कहा कि यह अस्वीकार्य और अवांछनीय है.

पीठ ने 12 सितंबर को पारित आदेश में कहा कि हालांकि, हमें सूचित किया गया है कि वर्तमान में एक भी कुलपति नहीं है और नियुक्ति की प्रक्रिया जारी है. इसके साथ ही रजिस्ट्रार भी संविदा पर ही हैं. पीठ ने कहा कि हमें यह बड़ी चिंता का विषय लगता है कि एक राष्ट्रीय विधि विश्वविद्यालय, जो कानूनी शिक्षा में अग्रणी संस्थान हैं, को केवल संविदा शिक्षकों के साथ काम चलाना पड़ रहा है.

शीर्ष अदालत को सूचित किया गया कि अब नियमों में कुछ संशोधन किए गए हैं जो 50 प्रतिशत स्थायी कर्मचारियों और 50 प्रतिशत संविदा कर्मचारियों का प्रावधान करते हैं. वह भी अभी तक लागू नहीं हुआ है! जबकि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग के नियमों के अनुसार, यहां केवल 10 प्रतिशत संविदा कर्मचारी होने चाहिए.

संस्थान का प्रतिनिधित्व कर रहे वरिष्ठ अधिवक्ता ध्रुव मेहता ने अदालत को सूचित किया कि वे सहायता प्राप्त संस्थान नहीं हैं. हालांकि, मुद्दा यह है कि ये उत्कृष्टता के संस्थान माने जाते हैं और आप उन संस्थानों में उत्कृष्टता की उम्मीद नहीं कर सकते हैं जहां शिक्षण कर्मचारियों का निरंतर आना-जाना लगा रहता है. क्योंकि वे संविदा पर नौकरी कर रहे हैं. पीठ ने कहा, कि अब समय आ गया है जब स्थिति को सुधारा जाये.

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शीर्ष अदालत ने इस बात पर जोर दिया कि वह चाहेगी कि एक शैक्षणिक संस्थान खुद स्थिति को सुधारे न कि हमें स्थिति को सुधारने के लिए कहा जाए. मेहता ने अपने ग्राहकों को उचित सलाह देने के लिए समय की मांग की. इस दलील पर विचार करते हुए शीर्ष अदालत ने मामले की अगली सुनवाई 31 अक्टूबर, 2023 को निर्धारित की.

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